करोड़ों से बने बृहस्पति कुंड में कहां हैं देवगुरू बृहस्पति:आचार्य मिथिलेशनंदिनी शरण बोले- अयोध्या से उसकी अस्मिता छीनी जा रहा, अब कहां जाए

अयोध्या के विकास को लेकर अब संतों की चिंता सामने आने लगी है। बृहस्पति कुंड का करोड़ों से विकास होने के बावजूद वहां देवगुरु बृहस्पति की मूर्ति न होने पर सिद्ध पीठ हनुमान निवास के आचार्य डॉक्टर मिथिलेश नंदिनी शरण ने गहरी चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि है कि अयोध्या अपनी पहचान से विस्थापित होती जा रही है। उन्होंने कहा है कि अब अयोध्या मौन और सशंकित है। सिद्ध पीठ हनुमान निवास के आचार्य डॉक्टर मिथिलेश नंदिनी शरण देश ने अपने एफबी पोस्ट को पीएमओ इंडिया, वित्त मंत्रालय, भारत सरकार,महंत योगी आदित्यनाथ के साथ श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट को भी टैग किया है। उन्होंने लिखा है कि अयोध्या संवर रही है। बड़ी-बड़ी परियोजनाएं, चकित कर देने वाली धनराशियां तथा सामाजिक समरसता के अभूतपूर्व प्रयोगों से जगमगाती ऐसी अयोध्या तो कदाचित राजा रामचन्द्र जी स्वयं रामराज्य में भी न बना पाये हों। किन्तु, मौसमी हरियाली काटने अयोध्या आये कारोबारियों के अतिरिक्त मुझ जैसे औसत अयोध्या वासियों की तो आँखों की रोशनी भी इस चमक से छिनती हुई दिख रही है। उन्होंने कहा- अयोध्या के पौराणिक तीर्थ बृहस्पति कुण्ड का जीर्णोद्धार हुआ है। बड़े समारोह के साथ इसका लोकार्पण हुआ। इस कुण्ड के द्वार पर बुद्ध जैसी आकृतियां आपको दिखेंगी। अन्दर भी तीन अन्य प्रतिमाएं दिखेंगी पर देवगुरु बृहस्पति आपको यहाँ नहीं दिखेंगे। अयोध्या के पौराणिक तीर्थों में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण यह कुण्ड सरकारी/गैरसरकारी अतिक्रमण के बाद एक हवन कुण्ड जैसा बचा है जहाँ आपको बृहस्पति के दर्शन नहीं होंगे। यह एक बानगी भर है, अनेक प्रसंग हैं यहाँ बस एक का उल्लेख किया है। जातीय-प्रान्तीय और भाषायी राजनीति का उल्लू सीधा करने के लिये सारे आर्ष वाङ्मय, रामायण-महाभारत आदि को आग लगाकर उससे समरसता की भस्म बनाने का कार्य चल रहा है। देखना यह है कि यह चमत्कारी भस्म राजसत्ता को अक्षुण्ण कर पाती है या नहीं। पर हम अयोध्यावासी कहाँ जायें, किसके आगे रोएं और किससे पूछें पर हम अयोध्यावासी कहाँ जायें, किसके आगे रोएं और किससे पूछें। अयोध्या के सन्त नहीं बोलेंगे, वे इसके फल से सुपरिचित हैं। नागरिक अपने रोजमर्रा के दुखों से ही नहीं उबर पा रहे। श्रीरामजन्मभूमि तीर्थक्षेत्र की चिन्ताएं भी अब उसके निर्धारित लक्ष्यों तक सीमित प्रतीत होती हैं। कोई मार्ग नहीं दिखाई देता। अपनी निष्ठा के विरुद्ध अयोध्या छोड़ जाने का विकल्प आत्मघात जैसा लगता है और इस त्रासदी के बीच अयोध्या में दिन-ब-दिन अपनी आस्था की नगरी को (छीजते) समाप्त होते देखना भी जीने नहीं देता। कल्पना नहीं थी कि जिसे दल को समर्थन दिया वही अस्मिता छीनने लग जायेगा सिद्ध पीठ हनुमान निवास के आचार्य डाक्टर मिथिलेश नंदिनी शरण ने आगे कहा किअयोध्या ने, यहाँ के पूज्य सन्तों ने और यहाँ की त्याग-बलिदान-परम्परा ने कभी कल्पना भी न की होगी कि श्रीरामजन्मभूमि को साकार देखने की जिस उत्कट अभिलाषा में उन्होंने इससे युक्त एक राजनैतिक दल के चुनावी घोषणा-पत्र को अपना समर्थन दिया था, वही सत्ता में आकर अयोध्या से उसकी अस्मिता छीनने लग जायेगा। महन्तों को मैने इतना लाचार-बेबस और पेशो-पेश में पहले कभी नहीं देखा तीन दशकों से अधिक के अनुभव में अयोध्या के पूज्य महन्तों को मैने इतना लाचार-बेबस और पेशो-पेश में पहले कभी नहीं देखा था। अयोध्या को लेकर इतने आत्मविश्वासहीन अयोध्यावासी कभी न थे कि उनके माथे पर कोई अंतरंगी चिप्पक सटा दे और वे बिदकें भी नहीं। सिद्ध पीठ हनुमान निवास के आचार्य डाक्टर मिथिलेश नंदिनी शरण ने आगे कहा कि हमें श्रीरामजन्मभूमि मिल गयी है, इस प्रसन्नता का कोई मोल नहीं हो सकता। इस उद्यम में जिनका-जैसा भी सहयोग मिला हो, अयोध्यावासी बारम्बार कृतज्ञ हैं। पूज्य सन्तों के कठिन संघर्ष के साथ-साथ संघ, भाजपा और विहिप इस यात्रा के नायक रहे हैं, उनका महत्त्व स्वीकृत है। पर इस सबके बावजूद इस संघर्ष का मूल्य क्या अयोध्या की आत्म की आवाज को छीनकर चुकाया जाना चाहिए। क्या कभी यह कहा गया था कि राजनैतिक उद्यमों से श्रीरामजन्मभूमि का संघर्ष निपटाने के बाद अयोध्या को राजनैतिक खेल का मैदान बना दिया जायेगा। भाजपा सरकार ने श्रीरामजन्मभूमि और अयोध्या को लेकर जो योगदान किया है, वह स्तुत्य है और पीढ़ियों तक स्मरणीय है। पर क्या इससे अयोध्या को सत्ता का उपनिवेश बना दिया जाना चाहिए ! मुझे नहीं पता कि इसका कौन-क्या अर्थ समझेगा और उसे मेरी बात कितनी समझ में आएगी पर यह सब असहनीय है इसलिए कहना पड़ रहा है। बजट देकर, सड़कें बनाकर, रोजगार-बाजार विकसित करके अयोध्या से अयोध्या को छीन लेना सांस्कृतिक कैसे हो सकता है। इसके इतिहास-भूगोल को राजनीति और चुनावी कुंठा से लपेट देना कैसे स्वीकार्य हो सकता है। मैं इस टिप्पणी के अप्रिय स्वाद से अवगत हूँ। इसको पढ़ना सुखद नहीं है, लिखना भी नहीं.. पर क्या सुख ही अन्तिम मानक होना चाहिए। चौक-चौराहे, सड़कें-गलियां तो दूर अब हमारा इतिहास-भूगोल भी हमारा न रहेगा। यातायात प्रतिबंधों से पर भी नाराजगी जताई लगभग प्रति सप्ताह वीआईपी आवागमन से घंटों बन्द रास्ते, बड़ी राजनैतिक महत्त्वाकांक्षा में मंडराते और स्थानीय कठिनाइयों की सतत उपेक्षा करते नेता। अनियोजित निर्माण-प्रक्रिया में मनमानी करते ठेकेदार, बैटरी रिक्शा का अनियन्त्रित और असुरक्षित रेला..यही हमारी अयोध्या है। बने तो राम से बने चाहे सब बिगड़ जाए,हमें और कोई नहीं चाहिए उन्होंने कहा कि हमारे परम आचार्य गोस्वामी श्री तुलसी दास जी महाराज ने कहा था कि ‘ बनै तो रघुबर से बनै कै बिगरै भरपूर’ श्रीरघुनाथ जी बनाएँ तो हमारी बिगड़ी बने अन्यथा सब बिगड़-जाय, आग लग जाय। हमें अपने प्रभु के अतिरिक्त किसी से अपना हित नहीं चाहिए।स्पष्ट है कि यह तब कहा गया था, जब उनके पास उनका भला करने का प्रस्ताव लिए सक्षम लोग रहे होंगे। आज इस दोहे की विपरीत फलश्रुति अयोध्या के समक्ष है।

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