इलाहाबाद विश्वविद्यालय में जन्मशती स्मरण समारोह:डॉ. जगदीश गुप्त व अमरकांत की कृतियों पर चर्चा

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के राजभाषा अनुभाग की ओर से आयोजित जन्मशती स्मरण समारोह के दूसरे दिन शुक्रवार को कवि-चित्रकार डॉ. जगदीश गुप्त और कथाकार अमरकांत की कृतियों पर चर्चा हुई। आयोजन के पहले सत्र में दृश्य कला विभाग के अध्यक्ष प्रो. अजय जैतली ने कहा कि जगदीश गुप्त के चित्रों से उनका प्रथम परिचय धर्मयुग से हुआ। वहीं से चित्रों में रहस्यमयता व कथ्य तथा शिल्प के बीच द्वंद्व को समझना शुरू हुआ। प्रो. जैतली ने कहा कि रंग भ्रमित कर सकते है रेखाएं सत्य हैं। रेखाएं हमें मूल तक पहुंचाती हैं। प्रो. श्रीप्रकाश शुक्ल ने कहा कि डॉ. जगदीश गुप्त ने पूरा जीवन कविता को मनुष्य की मातृभाषा माना। जगदीश चित्रकला को मनुष्य की आंख मानते थे। जगदीश गुप्त के शोधार्थी रहे डॉ. ओंकारनाथ द्विवेदी ने कहा कि डॉ. गुप्त शुरुआत में ब्रजभाषा में कविता लिखते थे। जगदीश की बेटी गीता गुप्त ने कहा कि पिताजी को 24 घंटे का समय कम पड़ता था। बीएचयू के प्रो. प्रभाकर सिंह, आलोचक डॉ. अविनाश कुमार सिंह, हिंदी विभाग की पूर्व अध्यक्ष प्रो. शैल पांडेय, जगदीश गुप्त के पुत्र विभु गुप्त, डॉ.वीरेंद्र कुमार मीणा, डॉ. जयदेव आदि ने विचार रखे। जगदीश गुप्त की पौत्री फाल्गुनी ने उनकी कविता पाठ किया। दूसरा सत्र में आलोचक प्रो. नीरज खरे ने कहा कि नई कहानी के दौर में अमरकांत को उपेक्षित किया जा रहा था। कथाकार अखिलेश ने कहा कि अमरकांत ऐसे कथाकार थे जिनकी रचनाओं में आदि मध्य अंत का पता नहीं चलता, हर अंश में कहानी होती है। अखिलेश ने कहानियों की चर्चा करते हुए कहा कि अमरकांत को विडंबना बोध का बड़ा कथाकार कहा। कथाकार पंकज मित्र, शिवानंद मिश्र, अमरकांत के पुत्र अरविंद विंदु, डॉ. रवि सोनकर आदि ने विचार रखे।

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