‘I Love मोहम्मद’ मतलब भगवान मेरे दिल में हैं:महेंद्र दास महाराज बोले- धर्मांतरण के खिलाफ हर संतानी को खड़ा होना पड़ेगा

भारत की महानता उसकी विविधता में है और इस विविधता को बनाए रखने के लिए धर्म-स्वातंत्र्य की रक्षा जरूरी है। यह बात शनिवार को मेरठ महानगर के मदर स्थित बालाजी मंदिर में मीडिया को संबोधित करते हुए अखिल भारतीय की पत्र निर्माता खादा के श्री श्री 108 श्री महेन्द्र दास जी महाराज ने कही। उन्होंने कहा- हर व्यक्ति को अपनी आस्था में जीने का अधिकार है। लेकिन छल, बल और प्रलोभन से होने वाला धर्मांतरण इस स्वतंत्रता का हनन है। इतिहास गवाह है— जब-जब लालच और दबाव से धर्म परिवर्तन हुआ है, तब-तब समाज में विभाजन और संघर्ष पैदा हुए हैं। आज भी विदेशी धन और मिशनरियों द्वारा चलाए जा रहे धर्मांतरण अभियान हमारे गांवों, जंगलों और निर्धन बस्तियों को निशाना बना रहे हैं। धर्म-स्वातंत्र्य कानून आस्था की सुरक्षा के लिए महेन्द्र दास महाराज ने कहा कि देश के कई राज्यों ने धर्म-स्वातंत्र्य कानून बनाए हैं ताकि छल-बल से होने वाले धर्मांतरण को रोका जा सके। इनमें हिमाचल प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2019, मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अध्यादेश 2020, उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020 और उत्तराखंड का अधिनियम प्रमुख हैं। उन्होंने कहा— “ये कानून किसी की आस्था छीनने के लिए नहीं बल्कि हर आस्था को सुरक्षित रखने के लिए हैं।” यूपी में विवाह से धर्म परिवर्तन पर 20 साल तक की सजा का प्रावधान है, जिससे जबरन धर्मांतरण पर रोक लग सके। अनुच्छेद 25 देता है धर्म-स्वातंत्र्य की परिभाषा महेन्द्र दास महाराज ने संविधान का हवाला देते हुए कहा कि अनुच्छेद 25 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को अपने धर्म का प्रचार-प्रसार करने की स्वतंत्रता है, लेकिन यह स्वतंत्रता जन-व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के अधीन है।उन्होंने कहा, “आप अपनी आस्था रख सकते हैं, उसका प्रचार कर सकते हैं, लेकिन किसी को दबाव, छल या लालच से धर्म अपनाने को मजबूर नहीं कर सकते।” उनका कहना था कि धर्म-स्वातंत्र्य का अर्थ केवल धर्म बदलने की आज़ादी नहीं है, बल्कि अपने धर्म में सुरक्षित रहने का अधिकार भी है। जिसकी धार्मिक आस्था को बदलने का प्रयास किया जा रहा है, उसकी सुरक्षा करना प्रशासन का कर्तव्य है। महाराज ने कहा कि राज्यों को अपनी सामाजिक परिस्थितियों के अनुसार धर्मांतरण विरोधी कानून बनाने की छूट मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि मानवाधिकारों की रक्षा के लिए विश्व समुदाय और न्यायालयों को इस दिशा में सहयोगी भूमिका निभानी चाहिए, न कि हस्तक्षेपकारी।इस अवसर पर स्वामी प्रद्युम्न जी महाराज और जूना अखाड़ा के नांगा तरुण गिरी जी महाराज भी उपस्थित रहे।

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