558 मदरसों के खिलाफ जांच पर हाईकोर्ट की रोक:यूपी सरकार से मांगा जवाब, टीचर्स एसोसिएशन ने ईओडब्ल्यू जांच को दी थी चुनौती
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश के 558 अनुदानित मदरसों के खिलाफ आर्थिक अपराध शाखा (ईओडब्ल्यू) की जांच पर रोक लगा दी। साथ ही इस मामले में राज्य सरकार से जवाब तलब किया है। यह आदेश न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव व न्यायमूर्ति अमिताभकुमार राय की खंडपीठ ने वाराणसी के टीचर्स एसोसिएशन मदारिस अरबिया उत्तर प्रदेश और दो अन्य की याचिका पर दिया। याची का कहना था कि धारा 36(2)के तहत मानवाधिकार हनन की घटना के एक साल के भीतर ही आयोग जांच करा सकता है। शिकायतकर्ता ने अपनी शिकायत में तारीख नहीं लिखी है इससे पता करना कठिन है कि शिकायत एक साल के भीतर की गई है या नहीं। इसलिए एक साल बाद मानवाधिकार हनन के आरोप की जांच कराने का आयोग को अधिकार नहीं है। हालांकि सरकारी वकील ने कहा कि घटना की जांच जरूरी है।मामला आर्थिक अपराध से भी जुड़ा है। कोर्ट ने मुद्दा विचारणीय माना और जांच कार्यवाही पर रोक लगाते हुए मानवाधिकार आयोग व शिकायतकर्ता को नोटिस जारी की है। बाराबंकी निवासी मोहम्मद तलहा अंसारी ने मदरसों में पढ़ाई और अन्य अनियमितता का आरोप लगाते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को शिकायती पत्र लिखकर जांच की मांग की थी। इसके बाद आयोग के आदेश पर अनुदानित मदरसों के खिलाफ ईओडब्ल्यू ने जांच शुरू कर दी थी। कोर्ट के आदेश से सबसे बड़ी राहत कामिल और फाजिल प्रमाणपत्रों से नियुक्त शिक्षकों को मिली है। केंद्रीय मानवाधिकार आयोग ने इन शिक्षकों के वेतन भुगतान को वित्तीय भ्रष्टाचार माना था। क्योंकि, इन डिग्रियों को सर्वोच्च न्यायालय ने असांविधानिक घोषित कर दिया है। उन्होंने बताया कि सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय पांच नवंबर 2024 से प्रभावी है लेकिन शिकायत में सभी 558 अनुदानित मदरसों में नियुक्त सभी शिक्षकों के वेतन भुगतान पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया था। इसके लिए आयोग ने ईओडब्ल्यू जांच के आदेश दिए थे। वकीलों ने दलील दी कि मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के अनुसार आयोग किसी भी ऐसे मामले की जांच नहीं करा सकता जिसमें मानवाधिकार उल्लंघन की कथित घटना को एक साल से ज्यादा बीत चुका हो। शिकायत में किसी विशिष्ट तारीख का उल्लेख नहीं है जिससे यह पता चल सके कि शिकायत कब की गई थी। आयोग का जांच आदेश उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
Source: उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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