51 शक्तिपीठों में से एक प्रयागराज का अलोप शंकरी मंदिर:देवी की मूर्ति नहीं, फिर भी अटूट श्रद्धा, लकड़ी के पट्टे की होती है पूजा
प्रयागराज स्थित अलोप शंकरी देवी मंदिर अपनी अनूठी परंपरा और गहरी आस्था के लिए जाना जाता है। यह मंदिर श्रीपंचायती महानिर्वाणी अखाड़े की देखरेख में संचालित होता है। मान्यता है कि यहीं पर माता सती का हाथ अलोप हुआ था, इसी कारण इसे अलोप शंकरी देवी मंदिर कहा जाता है। मंदिर की सबसे खास बात यह है कि यहां देवी की कोई मूर्ति नहीं है। इसके बजाय एक लकड़ी का चौकोर पट्टा रखा गया है। श्रद्धालु इसी पट्टे पर नारियल, चुनरी और प्रसाद चढ़ाते हैं। इस अनूठी परंपरा ने इसे अन्य मंदिरों से अलग बनाया है। तीर्थ और मेला
प्राचीन काल से यह स्थल शक्ति उपासना का केंद्र रहा है। नवरात्र और चैत्र-आश्विन मास में यहां विशेष मेले लगते हैं। इन मेलों में हजारों श्रद्धालु दूर-दूर से आते हैं। संगम स्नान के बाद कई तीर्थयात्री इसे दर्शन के लिए प्राथमिकता देते हैं। आस्था और विश्वास
स्थानीय लोग मानते हैं कि यहां सच्चे मन से की गई प्रार्थना अवश्य पूरी होती है। मंदिर केवल धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि प्रयागराज की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत का प्रतीक भी है। अलोप शंकरी देवी मंदिर न केवल श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है, बल्कि यह शहर की धार्मिक विविधता और प्राचीन परंपराओं को जीवित रखने का प्रतीक भी है।
Source: उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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