200 साल पुराना कंठी माता का मंदिर:आज भी कर रहा लोगो के रोगों का निवारण, हरिद्वार से आए साधुओं ने की थी स्थापना

मेरठ के बच्चा पार्क क्षेत्र में स्थित कंठी माता मंदिर करीब 200 साल पुराना प्राचीन सिद्ध स्थल है। माना जाता है कि यहां साधु-संत हरिद्वार से लौटते समय विश्राम और साधना करते थे। इसी कारण यह स्थान सिद्ध हो गया। बाद में बाबा चंचल गिरी महाराज ने यहां लंबे समय तक तपस्या की और मंदिर को स्थायी रूप दिया। उन्होंने रोग-निवारण से जुड़ी देवियों की प्रतिमाएं स्थापित कीं। आज यह मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का प्रमुख केंद्र है, जहां लोग अपनी बीमारियों और समस्याओं के समाधान की उम्मीद लेकर आते हैं। मंदिर परिसर में कंठी माता, शीतला माता, फूलवती माता, ललिता माता, मसानी माता और शिव परिवार, लक्ष्मी-नारायण, राधा-कृष्ण और दुर्गा माता की प्रतिमाएं विराजमान हैं। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि यहां स्थित सिद्ध धुना पर झाड़ा करने से रोग और कष्ट दूर हो जाते हैं।मेरठ के बच्चा पार्क क्षेत्र में स्थित कंठी माता मंदिर करीब 200 साल पुराना सिद्ध स्थल है। यह मंदिर देवी की आराधना और रोग-व्याधि से मुक्ति के लिए प्रसिद्ध है। ऐसे सिद्ध हुआ यह स्थान
करीब दो शताब्दी पहले हरिद्वार से यात्रा करने वाले साधु-संत मेरठ में रुकते थे। अलग-अलग ग्रुप में साधु यहां विश्राम करते और साधना में लीन हो जाते थे। लंबे समय तक रुकने वाले साधु अपनी भक्ति के लिए प्रतिमाएं भी बना लेते थे। लोगों की समस्याओं का समाधान
उस समय मेरठ शहर और पुराना शहर पास में था। लोग अपनी परेशानियां, रोग-व्याधियां साधु-संतों को बताते थे। साधु उन्हें आराधना बताते और समस्या दूर करने का उपाय सुझाते थे। धीरे-धीरे यह स्थान लोगों की आस्था का केंद्र बन गया। बाबा चंचल गिरी का योगदान
इसी बीच एक सिद्ध संत बाबा चंचल गिरी महाराज ने यहां अपना स्थायी स्थान बना लिया। उन्होंने लंबे समय तक यहां आराधना की। उनके अनुयायियों और स्थानीय श्रद्धालुओं ने मिलकर इस स्थान को दान में दिया और छोटे-छोटे मठों का निर्माण कराया। सिद्ध धुना की मान्यता
मंदिर में स्थित धुना को विशेष महत्व प्राप्त है। मान्यता है कि साधु-संतों की साधना से सिद्ध यह धुना आज भी लोगों की समस्याओं का समाधान करता है और रोग-व्याधियों से मुक्ति दिलाता है। त्योहार और विशेष पूजामंदिर में सबसे बड़ा पर्व फाल्गुन माह की होली है, जिसमें गुलाल से माता की पूजा होती है। मान्यता है कि इस दिन पूजा करने से परिवार रोग-व्याधि से दूर रहता है और सुख-शांति मिलती है। इसके अलावा चैत्र माह की सप्तमी को बासौड़ा पूजा भी बड़े भक्तिभाव से की जाती है। आज भी आस्था का केंद्रसमय के साथ मंदिर का विकास हुआ और आज यह स्थान न सिर्फ मेरठ बल्कि आसपास के इलाकों के श्रद्धालुओं के लिए भी आस्था और विश्वास का प्रमुख केंद्र बन चुका है।

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Source: उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर