10 फोटों में देखें सीएम योगी की अयोध्या यात्रा:उत्तर-दक्षिण का सांस्कृतिक सेतु बनेगा वृहस्पति कुंड,3 संतों की प्रतिमाओं का अनवारण
सीएम योगी बुधवार को अयोध्या में करीब चार घंटे रहे।इस दौरान उन्होंने हनुमानगढ़ी और रामलला का दर्शन और आरती किया। सरयू आरती कर अयोध्या और दक्षिण भारत के संबंधों पर भी प्रकाश डाला।वृहस्पति कुंड में दक्षिण भारत के 3 संतों की प्रतिमाओं का अनावरण भी किया।अब माना जा रहा है कि यह कुंड उत्तर-दक्षिण का सांस्कृतिक सेतु बनेगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ के संकल्प को और सुदृढ़ करने की राह में अयोध्या धाम में देवताओं के गुरु के नाम पर बना प्राचीन ‘वृहस्पति कुंड’ मील का पत्थर साबित होगा| यहाँ लगीं दक्षिण के त्यागराज स्वामी गल, पुरन्दर दास व अरुणाचल कवि की प्रतिमाएं यही संदेश प्रसारित कर रही हैं। इन तीनों महान भक्त संगीतज्ञों ने प्रभु का गुणगान व लेखन में सम्पूर्ण जीवन लगा दिया। 17 दिसंबर 2023 को काशी-तमिल संगमम को वाराणसी में संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि काशी और तमिलनाडु के बीच अनादि काल से भावनात्मक और रचनात्मक संबंध रहे हैं। संगमम के माध्यम से ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ का विचार सुदृढ़ हो रहा है। राम गाथा के रचनाकारों के अनुसार वनवास के मध्य लंका की ओर प्रस्थान के समय श्रीराम जी सुदूर दक्षिण के रामेश्वरम, धनुषकोडी, देवीपट्टिनम, थिरुप्पुल्लानी आदि स्थानों पर भी गए, जहाँ आज भी पूजन की परम्परा गतिमान है|
ऐसे में श्रीराम की जन्मभूमि इन क्षेत्रों के लिए और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। तमिलनाडु में श्रीराम की विभिन्न लीलाएं हुईं, इसी लिए ये स्थान उत्तर भारतीयों के लिए भी वैसे ही पूजनीय हैं|
इस अटूट बंधन को मजबूत करने के लिए आवश्यक हो जाता है कि दोनों क्षेत्रों के बीच निरन्तर संवाद और आवागमन बढ़े तथा इन क्षेत्रों के लोग आपस में दोनों संस्कृतियों को जानें व समझें| जिन तीन भक्ति संगीतज्ञों की प्रतिमाओं का अनावरण हुआ उन्होंने भी श्रीराम के गुणगान व प्रचार प्रसार में स्वयं का जीवन समर्पित कर दिया।
अयोध्या में वृहस्पति कुंड पर इनकी प्रतिमाओं की स्थापना से माना जा रहा है कि उत्तर और दक्षिण का सेतु और मजबूत होने के साथ अयोध्या वैश्विक पटल पर ‘एक भारत-श्रेष्ठ भारत’ की अपनी अलग छाप छोड़ेगा।
प्रतिमा के रूप में प्रतिष्ठित त्यागराज स्वामीगल (4 मई 1767–6 जनवरी 1847) कर्नाटक संगीत के एक महान संगीतकार, संत और भक्ति कवि थे, जिन्हें भगवान राम के प्रति अपार भक्ति के लिए जाना जाता है। उनका जन्म तमिलनाडु के तंजावुर जिले में तिरुवरुर में हुआ था। वे तेलुगु ब्राह्मण समुदाय से थे और उनके पिता परम विद्वान थे, जिन्होंने बालक त्यागराज में रामभक्ति का बीज बोया| उनके लिए संगीत भक्ति का एक पवित्र माध्यम था, न कि कोई व्यवसाय। संगीत को भक्ति के साथ एकीकृत कर उन्होंने एक ऐसी शैली विकसित की, जिसने कर्नाटक संगीत को गहराई और सच्चा आध्यात्मिक अर्थ दिया। उन्होंने प्रभु राम की स्तुति में सैकड़ों भक्ति गीतों की रचना की, जिनमें प्रसिद्ध ‘पंचरत्न कृति’ शामिल है, जो कर्नाटक संगीत के खजाने का एक अहम हिस्सा हैं।
“त्यागराज आराधना”, हर साल उनके सम्मान में आयोजित की जाती है, जो विश्व के बड़े संगीत समागमों में से एक है, जहाँ संगीतकार और भक्त उनके प्रति अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं।
वहीं, पुरन्दर दास कर्नाटक के सोने, चांदी व विविध आभूषणों के एक धनी व्यापारी थे, जिन्होंने हरिदास (कृष्ण सेवक) बनने के लिए अपनी सारी भौतिक संपत्ति छोड़ दी| वे एक भक्त गायक थे जिन्होंने भागवत पुराण के कठिन संस्कृत सिद्धांतों को सरल और मधुर गीतों में पिरोया। वह मध्यकालीन भारत के सबसे महत्वपूर्ण संगीत विद्वानों में से एक थे।
उन्होंने स्वरावली और अलंकार के रूप में पहचाने जाने वाले श्रेणीबद्ध अभ्यासों की संरचना करके कर्नाटक संगीत सिखाने के बुनियादी पाठ तैयार किए| साथ ही उन्होंने राग मायामालवगोला को क्षेत्र में शुरुआती लोगों द्वारा सीखे जाने वाले प्रथम सोपान के रूप में प्रस्तुत किया।
इसके अलावा पुरन्दर दास की प्रसिद्धि भक्ति आंदोलन के गायक और संगीत विद्वान के रूप में है। दास साहित्य की रचना के लिए विख्यात हैं। उनके समकालीन कनकदास ने उनकी कला का अनुसरण किया। पुरन्दर दास की कर्नाटक संगीत रचनाएँ अधिकांशतः कन्नड़ में हैं, यद्यपि कुछ संस्कृत में भी हैं । उन्होंने अपनी रचनाओं पर नाम “पुरन्दर विट्ठल” अंकित किया और विष्णु का यही रूप उनके आराध्य हैं। उनके कार्यों की उनके समय के कई विद्वानों और बाद के विद्वानों ने सराहना की।
अरुणाचल कवि (1711-1779) एक प्रसिद्ध तमिल कवि और कर्नाटक संगीतकार थे, जिन्होंने प्रसिद्ध राम नाटकम् की रचना की और तमिल संगीत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
उनका जन्म तमिलनाडु के तंजावुर जिले के तिल्लैयाडी में हुआ था| पिता का नाम नल्लथम्बी पिल्लई और माता का नाम वल्लियाम्मल था| 12 साल की उम्र में पिता के निधन के बाद, उन्होंने संस्कृत और तमिल की शिक्षा के लिए धर्मपुरम अधीनम में प्रवेश लिया, लेकिन 18 साल की उम्र में मठ छोड़ दिया।
उन्होंने रामायण को तमिल में प्रस्तुत करते हुए राम नाटकम (जिसे राम-नाटक-कीर्तनई भी कहा जाता है) की रचना की|
यह संगीत नाटक सर्वप्रथम श्रीरंगम के रंगनाथ मंदिर में प्रदर्शित हुआ था और अत्यंत लोकप्रिय हुआ। उनकी कुछ अन्य कृतियों में सीरगाज़ी स्थल पुराणम, हनुमान पिल्लई तमिल, अजोमुखी नाटकम और अनेक कीर्तन शामिल हैं| कर्नाटक संगीत के विकास में उनके योगदान को महत्वपूर्ण माना जाता है| वे तंजावुर के महाराजा तुलजा और अन्य संरक्षकों द्वारा सम्मानित किए गए थे।
उनकी कुछ रचनाएं आज भी संगीत समारोहों और भजनों में लोकप्रिय हैं। हम हम आपको सीएम योगी की अयोध्या यात्रा को कुछ अन्य तस्वीरों के माध्यम से दिखाते हैं…
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