हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक देवा मेला:हाजी वारिस अली शाह की दरगाह पर आज से शुरू होगा, विदेशों से भी पहुंचते हैं लोग

बाराबंकी जिले में स्थित विश्व प्रसिद्ध देवा शरीफ मजार सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की दरगाह है। लखनऊ से लगभग 37 किलोमीटर दूर यह स्थान हिंदू-मुस्लिम एकता और गंगा-जमुनी तहजीब की अनूठी मिसाल है, जहां सभी धर्मों के लोग आते हैं। सूफी संत हाजी वारिस अली शाह का संदेश “जो रब है, वही राम है” इस दरगाह और यहां लगने वाले वार्षिक देवा मेले का मूल आधार है। मेले की सभी तैयारियां पूर्ण हो चुकी हैं और आज जिलाधिकारी शशांक त्रिपाठी की पत्नी शैलजा त्रिपाठी इसका उद्घाटन करेंगी। 2 तस्वीरें देखिए… सूफी संत हाजी वारिस अली शाह का जन्म 19वीं शताब्दी में एक हुसैनी सय्यद परिवार में हुआ था। उनके जीवन का प्रमुख संदेश हिंदू-मुस्लिम एकता था। 7 अप्रैल 1905 को उनका निधन हो गया और उनकी स्मृति में एक भव्य स्मारक बनाया गया, जो आज लाखों लोगों के आने का केंद्र है। देवा मेला सांस्कृतिक और धार्मिक कार्यक्रमों का एक अनूठा संगम है। मेले में ऑल इंडिया मुशायरा, कवि सम्मेलन, संगीत कार्यक्रम, मानस और सीरतुन-नबी जैसी विभिन्न प्रस्तुतियां आयोजित की जाती हैं। खेल प्रेमियों के लिए हॉकी, वॉलीबॉल, बैडमिंटन और एथलेटिक्स जैसे खेलों का भी आयोजन होता है। इसके अतिरिक्त, मेले में सर्कस, मौत का कुआं, बैलगाड़ी दौड़, घोड़ा-ऊंट दौड़, पतंगबाजी और राइफल शूटिंग जैसी रोमांचक गतिविधियां भी शामिल हैं। मेले में सैकड़ों दुकानें लगती हैं, जहां हस्तशिल्प, घरेलू वस्तुएं, मिट्टी के बर्तन, खिलौने और स्वादिष्ट व्यंजन उपलब्ध होते हैं, जो मेले की रौनक बढ़ाते हैं। पशु बाजार भी मेले का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जहां विभिन्न प्रकार के पशुओं की खरीद-बिक्री होती है। बाराबंकी जिला मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस दरगाह तक पहुंचने के लिए लखनऊ से बाराबंकी आने के बाद बस स्टॉप से बस, टेंपो और ऑटो आसानी से उपलब्ध होते हैं। यह दरगाह सूफी परंपरा और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है।

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