सिद्धार्थनगर में पल्टा देवी मंदिर, नेपाल से आते हैं श्रद्धालु:मान्यता पांडवों ने स्थापित किया था, नवरात्रि पर उमड़ रही श्रद्धालुओं की भीड़
नवरात्रि के तीसरे दिन सिद्धार्थनगर स्थित प्राचीन मां पल्टा देवी मंदिर भक्ति, श्रद्धा और आस्था का अद्भुत संगम बना हुआ है। मंदिर परिसर में सुबह से ही ढोल-नगाड़ों की गूंज, घंटों की ध्वनि और भक्तों के जयकारे गूंजते रहे। मां के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की लंबी कतारें मंदिर की ऐतिहासिकता और आध्यात्मिक महत्ता को बखूबी दर्शा रही थीं। यह मंदिर न सिर्फ भारत के बल्कि पड़ोसी देश नेपाल के भी हजारों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। मान्यता है कि मां पल्टा देवी मंदिर की स्थापना महाभारत काल में पांडवों ने की थी। पांडवों के वनवास के दौरान वे इस क्षेत्र में आए और उन्होंने मां की शक्ति की साधना कर इस मंदिर की नींव रखी। मंदिर परिसर में स्थित विशालकाय वृक्ष आज भी उस ऐतिहासिक युग का मूक साक्षी बना खड़ा है। इस वृक्ष के नीचे बैठकर साधना करने वाले पांडवों की गाथा लोककथाओं और बुजुर्गों की कहानियों में आज भी सुनाई देती है।
जीवंत चमत्कार स्थल मानते हैं , जो भाग्य पलटने वाली देवी के रूप में जानी जाती हैं l
मंदिर के उत्तराधिकारी चंदन गिरी बताते हैं कि यह मंदिर सिद्ध शक्तिपीठ के रूप में जाना जाता है। यहां आने वाले श्रद्धालुओं की हर मनोकामना मां पूरी करती हैं और यही कारण है कि भक्तगण इसे जीवंत चमत्कार स्थल मानते हैं। नवरात्रि के मौके पर मंदिर में भक्तों की भीड़ अपने चरम पर होती है। हर तरफ माता रानी के जयकारे गूंजते हैं और श्रद्धालु भक्ति में डूबे दिखाई देते हैं। स्थानीय श्रद्धालु अंकित तिवारी ने कहा कि वे नियमित रूप से मां के दरबार में आते हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती रही हैं। इसी तरह श्रद्धालु सुमेर चौधरी ने भावुक होकर बताया कि उनके माता-पिता ने उन्हें मां के दर्शन के लिए भेजा और उनका विश्वास है कि जैसे माता ने अब तक उनके परिवार का कल्याण किया है, वैसे ही उन्हें नौकरी का आशीर्वाद भी मिलेगा। महाराजगंज निवासी सनी चौधरी ने कहा कि वे हर साल नवरात्रि में मां पल्टा देवी के दर्शन के लिए आते हैं। उनके अनुसार मां से जो कुछ भी मांगा, वह सबकुछ मिला है। मां का दरबार उनके जीवन का सबसे बड़ा सहारा है और वे यहां आकर हमेशा शक्ति और सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव करते हैं। वहीं, नेपाल से आए भक्तों ने भी अपनी आस्था व्यक्त की। उनका कहना था कि मां पल्टा देवी का आशीर्वाद सीमाओं से परे है। नेपाल से बड़ी संख्या में लोग नवरात्रि के अवसर पर यहां पहुंचते हैं और मां से अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की प्रार्थना करते हैं। महाराजगंज के ही रहने वाले श्रद्धालु राहुल ने बताया कि मां का चमत्कार अद्भुत है। वे हर महीने यहां दर्शन करने आते हैं। उनका कहना था कि मां से मांगी गई मन्नत कभी खाली नहीं जाती। नवरात्रि जैसे विशेष अवसर पर यहां की भव्यता और आस्था का वातावरण देखते ही बनता है। इस मंदिर की खास बात यह है कि केवल दर्शन ही नहीं बल्कि यहां जीवन के विभिन्न मांगलिक संस्कार भी संपन्न किए जाते हैं। कान छेदन, मुंडन संस्कार, विवाह और अन्य मांगलिक कार्यों के लिए लोग विशेष रूप से मां के दरबार आते हैं। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि मां के आशीर्वाद से इन शुभ कार्यों का फल और अधिक मंगलकारी होता है। यही कारण है कि पूरे साल यहां संस्कारों और धार्मिक अनुष्ठानों की धूम बनी रहती है। मंदिर उत्तराधिकारी चंदन गिरी ने नवरात्रि के अवसर पर श्रद्धालुओं को मंदिर के इतिहास से अवगत कराते हुए बताया कि पांडवों ने इस स्थल पर आकर शक्ति साधना की थी। तभी से यह मंदिर आस्था और विश्वास का केंद्र बना। उन्होंने कहा कि यहां आने वाला कोई भी भक्त खाली हाथ नहीं लौटता। मां हर किसी की झोली खुशियों से भर देती हैं। नवरात्रि में मंदिर का श्रृंगार विशेष रूप से आकर्षक होता है। तीसरे दिन मां का रूप चंद्रघंटा के स्वरूप में सजाया गया। माता का यह स्वरूप सौंदर्य और शांति का प्रतीक माना जाता है। मंदिर परिसर में दिनभर भजन-कीर्तन, हवन और आरती की धूम रही। श्रद्धालु ढोल-नगाड़ों और शंख-घंटियों के साथ मां की आराधना में लीन दिखाई दिए। महिलाओं ने कलश और नारियल चढ़ाकर मां से परिवार की खुशहाली की प्रार्थना की। नेपाल से आए श्रद्धालुओं में गहरी भक्ति और भावुकता देखने को मिली। उनका कहना था कि सीमा चाहे जैसी भी हो, आस्था के मार्ग में कोई बाधा नहीं आ सकती। मां पल्टा देवी का आशीर्वाद उन्हें जीवन की हर कठिनाई में सहारा देता है। इस वजह से वे हर साल यहां पहुंचते हैं और अपने जीवन के हर महत्वपूर्ण अवसर पर मां के चरणों में मत्था टेकते हैं। पल्टा देवी मंदिर की व्यवस्था महंत घनश्याम गिरि जी महाराज के अधीन सुचारू रूप से चल रही है l नवरात्रि के दौरान मंदिर परिसर में स्थानीय प्रशासन भी विशेष इंतजाम करता है। सुरक्षा व्यवस्था, प्रसाद वितरण और श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए हर स्तर पर प्रयास किए जाते हैं। मंदिर के पुजारियों और सेवा समितियों की ओर से भंडारे का आयोजन भी किया गया, जिसमें हजारों श्रद्धालुओं ने प्रसाद ग्रहण किया। इतिहास और आस्था से जुड़ा यह मंदिर सिद्धार्थनगर ही नहीं बल्कि पूरे पूर्वांचल की पहचान है। लोगों का विश्वास है कि यहां की आध्यात्मिक ऊर्जा हर भक्त को सकारात्मकता से भर देती है। बुजुर्गों के अनुसार, जिन्होंने भी मां के दरबार में सच्चे मन से प्रार्थना की, उनकी हर इच्छा पूर्ण हुई। यही कारण है कि इस मंदिर की ख्याति केवल भारत ही नहीं, बल्कि नेपाल समेत पड़ोसी क्षेत्रों तक फैली हुई है। नवरात्रि के तीसरे दिन मां पल्टा देवी मंदिर में जो श्रद्धा और आस्था का उत्सव देखने को मिला, वह अनोखा था। पांडवों द्वारा स्थापित यह प्राचीन शक्तिपीठ आज भी जीवंत चमत्कारों का प्रतीक है। मंदिर की पौराणिकता, भक्तों की गवाही और मां की कृपा का अनुभव यह बताने के लिए पर्याप्त है कि आस्था की डोर कितनी मजबूत है। नेपाल से लेकर भारत के विभिन्न हिस्सों तक से आए भक्तों ने अपने-अपने तरीके से मां के प्रति भक्ति व्यक्त की और यह संदेश दिया कि जब तक आस्था है, तब तक मां पल्टा देवी का दरबार यूं ही जगमगाता रहेगा।
Source: उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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