शरद पूर्णिमा आज, चंद्रमा रहेगा पृथ्वी के निकट:मीन राशि में प्रवेश करेंगे, षोडश कलाओं से होंगे परिपूर्ण

शरद पूर्णिमा इस वर्ष 6 अक्टूबर सोमवार को मनाई जाएगी। आश्विन मास में वर्षा और शीत ऋतु के संधि काल में आने वाली यह पूर्णिमा ज्योतिषीय दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होंगे और अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण दिखाई देंगे। ग्रहों और नक्षत्रों के अनुसार, यह शरद पूर्णिमा विशेष है क्योंकि चंद्रमा मीन राशि में प्रवेश करेंगे। इसके साथ ही, उत्तर भाद्रपद नक्षत्र और वृद्धि योग का शुभ संयोग भी बन रहा है। इस दौरान चंद्रमा की किरणें शीतलता और पोषक शक्ति की अमृत वर्षा करेंगी, जिसे अमृत काल माना जाता है। बलिया के थम्हनपुरा निवासी ज्योतिषाचार्य डॉ. अखिलेश उपाध्याय के अनुसार, इस दिन चंद्र दर्शन करने और चंद्रमा की धवल चांदनी में रखे चांदी के सिक्के के साथ खीर को सुबह खाली पेट ग्रहण करने से व्यक्ति को आरोग्य मिलता है। यह बुद्धि को भी आलोकित करता है, जिससे भाग्योदय होता है। इस खीर का सेवन ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण और भाद्रपद मास में शरीर में संचित त्रिदोषों का शमन करने वाला होता है। इस दिन प्रातःकाल अपने इष्टदेव की पूजा का भी विशेष महत्व है। मां लक्ष्मी का पूजन करने का विधान है, जिसमें श्वेत पुष्प और पान अर्पित किए जाते हैं, श्री सूक्त का पाठ किया जाता है और घी का अखंड दीपक प्रज्वलित किया जाता है। कुंवारी कन्याओं द्वारा भगवान कार्तिकेय की पूजा करने से उन्हें सुयोग्य वर की प्राप्ति होती है। ब्रह्म मुहूर्त में चंद्रकिरणों के बीच गंगा स्नान करने से मनुष्य के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है। मानसिक शांति के लिए चंद्रोदय के बाद कच्चा दूध, चावल, मिसरी, चंदन और सफेद फूल का अर्घ्य देना लाभकारी माना गया है। शरद पूर्णिमा के दिन धन का लेनदेन करना, काले वस्त्र धारण करना और मांस-मदिरा का सेवन करना निषिद्ध माना गया है। इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए और संभव हो तो तवा का उपयोग न करें। सात्विक आहार के तौर पर केवल तली हुई चीजों का ही सेवन करने की सलाह दी जाती है। मान्यता है कि इस दिन मां लक्ष्मी धरती पर भ्रमण करती हैं। इसके अलावा, भगवान श्रीकृष्ण ने इसी रात गोपियों के साथ ‘महारास’ रचाया था। इसलिए, इस रात को जागकर माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। हर साल शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की रोशनी से अमृत की वर्षा होती है, और चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है, जिससे यह रात चंद्र पूजा के लिए अत्यंत विशेष बन जाती है।

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