लखनऊ में 5 साल बाद ताकत दिखाएंगी बसपा सुप्रीमो मायावती:कांशीराम की पुण्यतिथि पर करेंगी मेगा रैली, दलित-ओबीसी और अल्पसंख्यकों पर फोकस

कांशीराम की पुण्यतिथि पर 9 अक्टूबर को बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती लखनऊ में बड़ी रैली करने जा रही हैं। इसे पार्टी के पुनर्जीवन की शुरुआत के तौर पर देखा जा रहा है। बसपा कई वर्षों से उत्तर प्रदेश की सियासत में अपनी खोई पकड़ वापस पाने की जद्दोजहद कर रही है। राजनीति के जानकार इस रैली को उस दिशा में एक बड़ा कदम मान रहे हैं। कांशीराम स्मारक स्थल, आशियाना के मैदान में आयोजित इस रैली में मायावती 3 घंटे रहकर अपनी ताकत दिखाने की कोशिश करेंगी। 2025 में होने वाले पंचायत और 2027 विधान सभा चुनाव में पार्टी की मजबूती दिखाने का प्रयास करेंगी। मंच पर भतीजे आकाश आनंद के अलावा भाई आनंद कुमार और बसपा के प्रमुख नेता भी मौजूद रहेंगे। हो सकता है कि आकाश आनंद पहला भाषण मायावती के सामने भी दें। आगे पढ़ते हैं कि 5 साल के बाद मायावती की रैली की प्लानिंग और जुटाई गई भीड़ का क्या असर पड़ेगा? पहली बार मंच पर साथ बैठेंगे 5-7 नेता इस बार का सबसे बड़ा आकर्षण मंच होगा। बसपा प्रमुख मायावती पहली बार अपने साथ मंच पर आकाश आनंद और सतीश चंद्र मिश्रा सहित 5–7 शीर्ष नेताओं को बैठाने जा रही हैं। अब तक मायावती अकेले मंच पर रहती थीं, लेकिन इस बार वह 3 घंटे मंच पर रहेंगी। अन्य नेताओं को भी प्रमुख भाषण का मौका मिल सकता है। यह बदलाव पार्टी की नई कार्यशैली और साझा नेतृत्व को स्पष्ट करेगा। 2. 5 लाख लोगों को लाने की प्लानिंग पार्टी ने इस बार राज्य की सभी 403 विधानसभा सीटों से करीब 5 लाख समर्थकों को लाने का लक्ष्य तय किया है। हर विधानसभा क्षेत्र से 5 गाड़ियों में कार्यकर्ता और समर्थक आएंगे। जिला स्तर पर जिम्मेदारी बांटी गई है। प्रत्येक विधानसभा प्रभारी को न्यूनतम 5000 कार्यकर्ताओं की उपस्थिति सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी सौंपी गई है। सभी रूट्स को लेकर लॉजिस्टिक सेल बना है, जो ट्रैफिक और पार्किंग की मॉनिटरिंग करेगा। सोशल मीडिया से लेकर दीवारों तक-‘लखनऊ चलो’ का प्रचार अभियान बसपा ने इस बार मैदान और डिजिटल दोनों मोर्चों पर फोकस किया है। दीवारों पर पेंटिंग, नीले झंडों से सजी गलियां, और ग्राम स्तर पर नुक्कड़ सभाएं हो रही हैं। इस बार कई नए नारे गढ़े हैं। “दलित, पिछड़े, अल्पसंख्यक की आवाज बहुजन समाज का नया आगाज”। “राशन नहीं, शासन चाहिए, लखनऊ चलो” इन नारों के जरिए बसपा यह संदेश देना चाहती है कि वह सिर्फ कल्याण योजनाओं पर नहीं बल्कि सत्ता में भागीदारी चाहती है। इससे पार्टी का फोकस समाज के उस वर्ग तक पहुंचना है, जो हाल के वर्षों में उससे दूर हो गया था। रैली के बाद कार्यकर्ताओं से भी मिलेंगी मायावती रैली खत्म होने के बाद मायावती पहली बार चयनित कार्यकर्ताओं से अलग बैठक करेंगी। यह बसपा में संगठनात्मक पुनर्गठन की दिशा में बड़ा कदम माना जा रहा है। पार्टी सूत्रों के अनुसार, मायावती हर जिले से प्रतिनिधि स्तर पर सुझाव लेंगी ताकि आगे के रोडमैप में उनका इनपुट शामिल किया जा सके। 4 साल बाद काशीराम स्मारक में मायावती की मेगा रैली बसपा सुप्रीमो मायावती 4 साल बाद कांशीराम स्मारक स्थल पर रैली करने जा रही हैं। पिछली बार उन्होंने 9 अक्टूबर 2021 को रैली की थी, जो 2022 विधानसभा चुनाव से पहले हुई थी। उस चुनाव में बसपा को सिर्फ एक सीट मिली और वोट शेयर घटकर 12.8% रह गया। 403 सदस्यीय सदन में बसपा के केवल उमा शंकर सिंह (बलिया) ही विधायक हैं। 2024 लोकसभा चुनाव में पार्टी खाता भी नहीं खोल सकी। ऐसे में यह रैली मायावती के लिए राजनीतिक पुनर्स्थापना का अभियान मानी जा रही है। दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यकों पर फोकस, गांव-गांव तक पहुंच बीते कई हफ्तों से बसपा कार्यकर्ता ग्राम स्तर पर प्रचार और जनसंपर्क में जुटे हैं। पार्टी ने इस रैली को लेकर नई दीवार लेखन मुहिम, पोस्टर-बैनर और गीतों के जरिए जनता तक पहुंचने का अभियान चलाया है। फोकस खास तौर पर दलित, ओबीसी और अल्पसंख्यक वर्गों पर है। इन समुदायों को लखनऊ लाने के लिए हर जिले में कार्यकर्ता तैनात किए गए हैं। आजाद समाज पार्टी और कांग्रेस ने भी बढ़ाई सक्रियता मायावती की रैली से पहले चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) ने भी प्रदेशभर में कांशीराम की पुण्यतिथि कार्यक्रमों की घोषणा की है। पार्टी नेता सौरभ किशोर ने कहा कि “हर जिले में कार्यकर्ता एकत्र होकर काशीराम जी के योगदान को याद करेंगे।” कांग्रेस नेता उदित राज ने मायावती पर निशाना साधते हुए कहा कि “वह बाहर से आंबेडकर की बात करती हैं, लेकिन दिल में ‘कमल’ रखती हैं।” बसपा का पलटवार- ‘कांशीराम की असली वारिस सिर्फ बहनजी’ बसपा प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल ने कहा, “बहनजी ही कांशीराम की सच्ची उत्तराधिकारी हैं। उन्होंने खुद सार्वजनिक मंच से मायावती को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था, जो लोग उनके साथ चले भी नहीं, वे नाम जोड़कर उत्तराधिकारी नहीं बन सकते।” उन्होंने यह भी कहा कि मायावती इस रैली में सिर्फ दलितों को नहीं, बल्कि ओबीसी, अल्पसंख्यक और वंचित वर्गों को भी संबोधित करेंगी। ‘हम किसी की बी-टीम नहीं’- 2027 के लिए जमीन तैयार बसपा ने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि पार्टी किसी की बी-टीम नहीं है। विश्वनाथ पाल ने कहा, “हम 2007 की तरह फिर से जमीन पर काम कर रहे हैं, ताकि 2027 में बहुजन समाज पार्टी की सरकार बने।” राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, यह रैली बसपा के लिए री-एनर्जाइजेशन कैंपेन है। वरिष्ठ पत्रकार कमल जयन्त का कहना है- यह रैली मायावती की छवि को नए सिरे से गढ़ने की कोशिश है। वह अब खुद को सिर्फ दलित नेता नहीं, बल्कि सर्वसमाज की नेता के रूप में पेश करना चाहती हैं। राजनीति की शोधकर्ता डॉ. सीमा मिश्रा ने कहा- बसपा इस रैली से अपनी सामाजिक इंजीनियरिंग को फिर सक्रिय करना चाहती है। अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्ग की उपस्थिति इसकी सफलता तय करेगी।

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