यूपी में 22% दलित वोटर कितने निर्णायक:बसपा-सपा में होड़, भाजपा का वाल्मीकि दांव…कांग्रेस खुद को बता रही पुराना घर

यूपी के सियासी दलों में 22 फीसदी दलित वोट को लेकर जोर-आजमाइश हो रही है। सपा-बसपा में जहां दलितों को अपने पाले में लामबंद करने की होड़ मची है। वहीं, भाजपा ने भी वाल्मीकि जयंती पर पहली बार सार्वजनिक अवकाश घोषित कर बड़ा दांव चला। कांग्रेस का पहले से दावा रहा है कि दलितों का परंपरागत घर वही है। प्रदेश में आरक्षित 86 सीटों में दलितों के लिए 84 रिजर्व हैं। लेकिन, यूपी की 150 सीटों पर दलित निर्णायक प्रभाव रखते हैं। राजनीतिक विश्लेषक भी मानते हैं कि 2027 विधानसभा में जिसके पाले में दलित जाएंगे, सत्ता की कुंजी उसके पास ही होगी। ऐसे में भाजपा, सपा, कांग्रेस और बसपा दलित वोटबैंक को अपने पाले में लाने के लिए क्या-क्या दांव चल रहे हैं? पढ़िए पूरी रिपोर्ट… सबसे पहले जानिए यूपी में दलित वोटबैंक की ताकत
यूपी की 403 विधानसभा सीटों में 86 रिजर्व हैं। इनमें दलितों के लिए 84 सीटें और 2 आदिवासियों के लिए हैं। प्रदेश में दलितों की आबादी करीब 22 फीसदी है। 2024 के लोकसभा चुनाव में 15.4 करोड़ वोटर थे। इस आधार पर दलित वोटरों की आबादी करीब 3.20 करोड़ है। मतलब प्रदेश की हर सीट पर करीब 20 फीसदी दलित वोटर हैं। प्रदेश की 150 सीटों पर दलित वोटर 30 फीसदी से अधिक हैं। खासकर पूर्वांचल और बुंदेलखंड इलाके में दलितों की आबादी अच्छी-खासी है। 2017 से पहले तक दलित खासकर जाटव वोटबैंक बसपा के पक्ष में एकजुट रहे। इसके बाद ये प्रदेश के तीनों प्रमुख दलों भाजपा, सपा और बसपा में बंटते चले गए। 2022 के विधानसभा चुनाव में बड़ी संख्या में दलित, खासकर नॉन जाटवों का झुकाव भाजपा गठबंधन की ओर था। यही कारण रहा कि भाजपा लगातार दूसरी बार सत्ता में बहुमत के साथ लौटी। लेकिन, 2024 में PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) और संविधान खतरे में है, जैसे नारों से दलितों का भाजपा गठबंधन से मोहभंग हुआ। वे सपा की अगुआई वाले गठबंधन की ओर झुक गए। यही कारण रहा कि बसपा का वोटबैंक 2022 में 12 फीसदी की तुलना में गिरकर 9.4 फीसदी पहुंच गया। वहीं, भाजपा को करारा झटका लगा। अयोध्या जैसी सामान्य सीट पर उसे सपा के अवधेश प्रसाद जैसे एससी चेहरे ने हरा दिया। 17 आरक्षित सीटों में सपा गठबंधन ने 7 सीटें जीत लीं। लोकनीति-सीएसडीएस सर्वे के मुताबिक, ऐसा दलित वोटरों के पाला-बदलने से हुआ। 2024 में सपा गठबंधन के पक्ष में नॉन-जाटव दलितों का 56% और जाटवों का 25% वोट गया। बसपा को जाटवों का 44% और नॉन-जाटव का 15% वोट मिला था। बाकी दलितों का वोट भाजपा गठबंधन को मिला था। जेएनयू के प्रोफेसर विवेक कुमार कहते हैं- बसपा की रैली को लोग दलितों के लामबंद होने की पहल मान रहे हैं। यही डर दूसरे दलों को बेचैन कर रहा है। उसे बाधित करने के लिए वे तरह-तरह के लुभावने प्रयास कर रहे हैं। वर्तमान दौर में दलितों पर जुल्म और ज्यादतियां बढ़ती जा रही हैं। नौकरियां मिल नहीं रही हैं। उसके सामने नकारात्मक परिवेश दिखाई पड़ रहा है। ऐसे समय में दलित समाज एक बार फिर मायावती को उद्धारक की तरह देख रहा है। अब समझते हैं दलितों को पाले में लाने के लिए दल क्या कर रहे बसपा: शक्ति प्रदर्शन से खोया जनाधार पाने की रणनीति
संस्थापक कांशीराम ने बहुजन समाज पार्टी का उभार ही दलित चेतना को जागृत और गोलबंदी करके किया था। इसी का फायदा 2007 में बसपा को मिला था। तब उसे यूपी में करीब 30 फीसदी वोट मिला था। इसमें 22 फीसदी दलित वोटरों का एकमुश्त वोट शामिल था। आज बसपा की हालत ये है कि विधानसभा में उसका एक विधायक है। लोकसभा चुनाव में उसका खाता तक नहीं खुला। बसपा अपने गिरते वोटबैंक को बचाने के लिए ही कांशीराम की पुण्यतिथि पर शक्ति प्रदर्शन की तैयारी में जुटी थी। लखनऊ के कांशीराम स्मारक पर बसपा ढाई से तीन लाख की भीड़ जुटाकर ये संदेश देने में सफल रही कि प्रदेश की सियासत में वह अब भी प्रासंगिक है। बसपा प्रमुख मायावती अब भी दलितों की एकमात्र स्थापित नेता हैं। बसपा के कमजोर होने से दलित वोटरों का एक हिस्सा खासकर युवा आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चंद्रशेखर की ओर चला गया। ऐसे युवा दलितों को वापस पाले में लाने के लिए मायावती ने भतीजे आकाश आनंद को अहम जिम्मेदारी सौंपकर सक्रिय कर दिया है। बिहार में आकाश के कार्यक्रमों में बड़ी संख्या में दलित युवाओं की भीड़ से साबित होता है कि बसपा प्रमुख का ये दांव सटीक बैठा है। उनकी युवाओं में लोकप्रियता को देखते हुए ही मायावती ने कांशीराम स्मारक में आयोजित कार्यक्रम के मंच से कहा कि अब आकाश आपके बीच ज्यादा दिखेंगे। बसपा के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल कहते हैं- बसपा जब 2007 में यूपी की सत्ता में खुद के बहुमत से जुटी और हमारे कार्यकर्ताओं ने ये नारा देना शुरू किया कि “यूपी हुई हमारी है, अब दिल्ली की बारी है”। तब दिल्ली में बैठे लोगों ने बसपा को कमजोर करने की साजिश शुरू कर दी। लेकिन, इस कार्यक्रम में उमड़ी भारी भीड़ से साबित हो गया कि बसपा का वोटबैंक फिर एकजुट हो चुका है। सपा : पीडीए के जरिए दलितों को लुभाने में जुटी
समाजवादी पार्टी की नजर बसपा के वोटबैंक पर है, जो उसके कमजोर होने के बाद से उससे दूर होता जा रहा है। मुसलमान और यादव की राजनीति करने वाली सपा ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले PDA (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) वोटबैंक का दांव चला। इसका फायदा भी उसे हुआ। 2019 में 5 सीटें जीतने वाली सपा यूपी में 37 सीटें जीतकर भाजपा को स्पष्ट बहुमत पाने से रोक दिया था। इसके बाद से वह PDA की राह पर है। सपा ने दलितों में डॉ. अंबेडकर, कांशीराम समेत अन्य महापुरुषों के सहारे पैठ बनाने की कोशिश शुरू की है। इसी रणनीति के तहत अंबेडकर जयंती पर सपा ने 7 दिनों का आयोजन किया था। अब कांशीराम जयंती पर भी वह बसपा के समानांतर पार्टी मुख्यालय से लेकर जिला स्तर पर श्रद्धांजलि समारोह का आयोजन रखा है। जिलों में पार्टी के सभी जनप्रतिनिधियों और प्रमुख नेताओं को मौजूद रहने और अधिक से अधिक दलित लोगों को लाने का निर्देश दिया गया है। इसके अलावा सपा अलग-अलग क्षेत्रों में दलित चेहरों को आगे बढ़ाने में जुटी है। पश्चिम में राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन, जौनपुर में रागिनी सोनकर, प्रिया सरोज, अवध में अवधेश प्रसाद जैसे नेताओं के सहारे वह दलितों को लुभाने में जुटी है। वहीं, सपा ने पहली बार कांशीराम पुण्यतिथि पर पूरे प्रदेश में कार्यक्रम के आयोजन किए। यही कारण था कि बसपा ने सपा के कार्यकाल में दलित महापुरुषों के नाम बदलने समेत अन्य निर्णयों को गिनाते हुए उस पर हमला बोला। मायावती के भाषण में सबसे अधिक हमला सपा पर ही किया गया। पार्टी प्रवक्ता आजम खान इसे खारिज करते हुए कहते हैं कि सपा PDA के तहत दलितों को उचित सम्मान और प्रतिनिधित्व देना चाहती है। भाजपा सरकार में दलितों पर लगातार अत्याचार हो रहे हैं। सपा आर्थिक असमानता दूर करना चाहती है। भाजपा : वाल्मीकि जयंती पर सार्वजनिक अवकाश घोषित किया
भाजपा ने कांशीराम जयंती से पहले 7 अक्टूबर को वाल्मीकि जयंती पर सार्वजनिक अवकाश घोषित कर लुभाने की कोशिश की है। भाजपा को 2022 तक बड़ी संख्या में पासी, वाल्मीकि, कोरी, मुसहर आदि दलित जातियों का समर्थन मिलता रहा है। भाजपा ने वाल्मीकि जयंती पर पूरे प्रदेश के मंदिरों में 24 घंटे का अखंड पाठ कराने के साथ कई कार्यक्रम किए। सफाईकर्मियों का मानदेय बढ़ाने से लेकर उनका बीमा कवर 30 लाख तक करने की योजना गिनाई। इसी तरह बड़े पैमाने पर आवास सहित अन्य सरकारी स्कीम देकर इस वर्ग को लुभाने में जुटी है। भाजपा अक्सर सहभोज और सफाईकर्मियों के पैर धोकर इस समाज को सम्मान देने की बात करती है। लखनऊ में हुई वाल्मीकि जयंती पर खुद भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी और सीएम योगी ने सपा शासन में दलितों पर हुए अत्याचार को लेकर निशाना साधा। वहीं, अपनी डबल इंजन की सरकार में दलितों के लिए किए जा रहे काम गिनाए। कांग्रेस : दलित युवक की हत्या को मुद्दा बनाने में जुटी
यूपी में महागठबंधन में सपा की अहम सहयोगी कांग्रेस भी दलित वोटबैंक को लेकर संजीदा है। रायबरेली के ऊंचाहार में वाल्मीकि समाज फतेहपुर निवासी हरिओम वाल्मीकि की पीट-पीट कर हत्या करने के मामले को लपक लिया है। इस मसले पर जहां रायबरेली के सांसद राहुल गांधी ने सोशल मीडिया के जरिए भाजपा पर हमलावर दिखे। वहीं प्रदेश कांग्रेस ने भी मुख्यालय से गांधी प्रतिमा हजरतगंज तक प्रभारी अविनाश पांडे और प्रदेश अध्यक्ष अजय राय की अगुआई में कैंडल मार्च निकाला। कांग्रेस का एक प्रतिनिधिमंडल हरिओम वाल्मीकि के परिवार से भी मिलने पहुंचा था। इसके अलावा भी प्रदेश में जहां कहीं दलित समाज पर कोई अत्याचार या शोषण की खबर मिलती है, कांग्रेसी नेता मुखर होकर अपनी आवाज उठाते हैं। कांशीराम पुण्यतिथि पर भी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और प्रभारी अविनाश पांडे ने 1090 चौराहे पर पहुंच कर उनकी प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी। ——————————– ये खबर भी पढ़ें… दलित युवक को पुलिस ने मरने के लिए छोड़ा, रायबरेली में गांववाले 2 घंटे तक मारते रहे 40 साल के हरिओम को रायबरेली की गदागंज पुलिस ने रात करीब 10 बजे पकड़ा था। भीड़ ने हरिओम को घेर रखा था। पुलिस ने बातचीत की तो पता चला कि हरिओम की मानसिक स्थिति ठीक नहीं। पुलिस हरिओम को छोड़कर चली गई। भीड़ में शामिल लोग दावा करते हैं कि उस वक्त होमगार्ड ने कहा कि हरिओम को थाने ले चलना चाहिए क्योंकि स्थिति ठीक नहीं। लेकिन, पुलिस अफसरों ने मना कर दिया। पढ़िए पूरी खबर…

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