भारत को ग्लोबल जियोपार्क बनाने का समय: विशेषज्ञ:भू-विविधता संरक्षण पर दिल्ली में हुआ राष्ट्रीय सम्मेलन
दिल्ली में भारत की भू-विविधता और भू-धरोहर के सतत विकास पर एक राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया। यूनेस्को हाउस सभागार में हुए इस दो दिवसीय कार्यक्रम में देश-विदेश के शीर्ष भूवैज्ञानिकों, नीति-निर्माताओं और शोधकर्ताओं ने भारत को ‘ग्लोबल जियोपार्क’ के रूप में पहचान दिलाने पर जोर दिया। यह सम्मेलन सोसाइटी ऑफ अर्थ साइंटिस्ट्स, यूनेस्को और आईआईटी कानपुर के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित हुआ। इसकी अध्यक्षता प्रो. धीरेन्द्र मोहन बनर्जी ने की। मुख्य अतिथियों में यूनेस्को के निदेशक टिम कर्टिस, भारत भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के उप महानिदेशक डॉ. अमित धारवडकर और यूनेस्को ग्लोबल जियोपार्क कार्यक्रम के विशेषज्ञ डॉ. अलीरेज़ा आमिरकाज़ेमी शामिल थे। उद्घाटन सत्र में विशेषज्ञों ने भारत की भू-विविधता को वैज्ञानिक मूल्यवान बताते हुए इसे पर्यावरणीय स्थिरता और राष्ट्रीय समृद्धि की कुंजी बताया। डॉ. अलीरेज़ा आमिरकाज़ेमी ने कहा कि भारत में सतत भू-पर्यटन तभी संभव है जब स्थानीय समुदायों की भागीदारी से जियोपार्क स्थापित किए जाएं। यह वैज्ञानिक और आर्थिक दोनों दृष्टियों से एक महत्वपूर्ण कदम होगा। इसी अवसर पर “Geoconservation and Geotourism Potential of India” नामक पुस्तक का विमोचन किया गया। स्प्रिंगर द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक को भारत के भू-संरक्षण प्रयासों में एक मील का पत्थर बताया गया है। सम्मेलन में चित्रकूट जियोपार्क भी चर्चा का केंद्र रहा। डॉ. अश्वनी अवस्थी ने बताया कि चित्रकूट को यूनेस्को जियोपार्क का दर्जा मिलने से क्षेत्र का विकास होगा और भारत के भू-वैज्ञानिक मानचित्र को नई पहचान मिलेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि चित्रकूट का भू-वैज्ञानिक महत्व और सांस्कृतिक धरोहर इसे भारत का पहला संभावित ग्लोबल जियोपार्क बना सकते हैं। यूनेस्को मुख्यालय, पेरिस से ऑनलाइन जुड़े क्रिस्टोफ वेंडरबर्गे ने “From Grassroots Concepts to Recognition: Building Successful UNESCO Global Geoparks” विषय पर बात की। उन्होंने कहा कि किसी भी जियोपार्क की सफलता स्थानीय समुदायों की भागीदारी, स्थल-सूचीकरण और चरणबद्ध प्रबंधन योजनाओं पर निर्भर करती है।
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