बुजुर्गों ने संगीत में खोजी अपनी मुस्कान:बुढ़ापे की लकड़ी समिति ने रचा वरिष्ठ नागरिकों के भावनाओं का महोत्सव
प्रयागराज के उत्तर मध्य सांस्कृतिक केंद्र का सभागार भावनाओं, संगीत और यादों से भरा था। मंच पर कोई पेशेवर कलाकार नहीं थे, बल्कि जीवन के साठ पार कर चुके वे चेहरे थे, जिनकी आंखों में अनुभव की चमक और दिल में अब भी संगीत का उत्साह था। अवसर था बुढ़ापे की लकड़ी सेवा समिति द्वारा आयोजित संगीतमय कार्यक्रम जीवन की ढलती शाम सूरों के नाम का। यह आयोजन केवल एक संगीत संध्या नहीं, बल्कि जीवन के उस पड़ाव का उत्सव था, जब लोग अपने भीतर की खुशी को फिर से तलाशते हैं। डॉ पी के सिन्हा सेवानिवृत्त मुख्य चिकित्सा अधिकारी और इस कार्यक्रम के परिकल्पक ने अपनी संगीत संरचना के माध्यम से साबित कर दिया कि उम्र कभी भी जुनून की राह में दीवार नहीं बनती। उनके साथ प्रभा दास, प्रेमा राय, अनिल अग्रवाल, लता महेश्वरी, अनिल टंडन, अलका दास, राजलक्ष्मी, अशोक महेश्वरी, रमा मोंट्रोज और निशीथ चतुर्वेदी जैसे वरिष्ठ कलाकारों ने एक से बढ़कर एक गीत प्रस्तुत कर दिलों को छू लिया। किसी ने किशोर के नगमे गाए, किसी ने लता की मिठास बिखेरी और हर सुर के पीछे छिपा था जीवन का कोई अधूरा सपना, कोई पुरानी याद, कोई बीता हुआ रिश्ता। दर्शकों ने जब इन बुजुर्ग कलाकारों की आंखों में चमक और चेहरे पर मुस्कान देखी, तो सभागार तालियों की गूंज से भर गया। कार्यक्रम में न्यायमूर्ति नलिन श्रीवास्तव, मेयर गणेश केसरवानी, सुधीर नारायण, राजीव लोचन मेहरोत्रा सहित कई गणमान्य मेहमान उपस्थित रहे। सभी ने समिति के इस प्रयास की सराहना करते हुए कहा इन बुजुर्गों ने साबित किया कि खुशी उम्र की मोहताज नहीं होती, बस दिल में सुर बाकी रहने चाहिए। अंत में जब सभी कलाकारों ने मिलकर समवेत गीत गाया जिंदगी हर पल कुछ खास है, तो जैसे सभागार की हर आंख नम हो उठी। यह सिर्फ संगीत नहीं था, बल्कि उन आत्माओं की पुकार थी जो कह रही थीं हम अभी ज़िंदा हैं, हममें अभी भी राग है, रौनक है और जीवन का स्वाद बाकी है।
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