बार एसोसिएशन ने निकाला तो सुनवाई भी नहीं होगी:हाईकोर्ट ने कहा-सदस्य के निष्कासन पर काउंसिल को सुनवाई का अधिकार नहीं, शून्य करार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि बार एसोसिएशन के सदस्य के निष्कासन के खिलाफ बार काउंसिल को सुनवाई करने और आदेश जारी करने का अधिकार नहीं है। ऐसा कोई कानूनी प्रावधान नहीं है जो बार काउंसिल को यह अधिकार देता हो। इसके साथ ही कोर्ट ने एकीकृत बार एसोसिएशन माटी, कानपुर देहात के तीन सदस्यों के निष्कासन के संबंध में बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश के आदेश को शून्य करार देते हुए रद्द कर दिया है। न्यायमूर्ति सरल श्रीवास्तव और न्यायमूर्ति अमिताभ कुमार राय की खंडपीठ ने नरेश कुमार मिश्रा और तीन अन्य द्वारा दायर याचिका पर यह आदेश दिया। याचियों को एकीकृत बार एसोसिएशन, माटी, कानपुर देहात की आम सभा के सदस्यों के पद से हटा दिया गया। इसके खिलाफ़ उन्होंने बार काउंसिल में आवेदन दाखिल कर निष्कासन को अवैध बताया। बार काउंसिल ने तीन सदस्यीय कमेटी गठित की। कमेटी ने निष्कासन पर रोक लगा दी, मगर अगले ही दिन अपना आदेश बदलते हुए रोक हटा ली। इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। सुनवाई के दौरान पीठ ने याचिकाकर्ताओं के वकील से पूछा कि क्या कोई कानूनी प्रावधान है, जो उन्हें राज्य बार काउंसिल के समक्ष आवेदन दायर करने की अनुमति देता है। वकील ने कहा कि एडवोकेट एक्ट 1961 के तहत ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिसके तहत उक्त आवेदन दायर किया जा सके। कोर्ट ने कहा कि याचियों द्वारा राज्य बार काउंसिल के समक्ष दायर आवेदन गलत था और सुनवाई योग्य नहीं है। कोर्ट ने कहा इसके आधार पर शुरू की गई कोई भी कार्यवाही शून्य थी। कोर्ट ने राज्य बार काउंसिल द्वारा पारित आदेश रद्द कर दिया और याचिका को इस छूट के साथ खारिज कर दिया कि वे बार एसोसिएशन द्वारा पारित निष्कासन आदेश के विरुद्ध कानून के तहत उपलब्ध उचित उपाय अपना सकें।
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