प्रेमानंद महाराज बोले- आज मोबाइल झूठ बोलवा रहा:हम तो एकांतिक बातचीत कर रहे, हॉस्पिटल में एडमिट होने का फर्जी VIDEO वायरल

इन दिनों वृंदावन के संत प्रेमानंद महाराज का एक वीडियो वायरल हो रहा है। जिसमें दिखाया जा रहा कि उनके पूरे शरीर में सूजन है। दोनों हाथों पर पट्टी बंधी है। उन्हें हॉस्पिटल में भर्ती होना बताया जा रहा, हालांकि ये वीडियो पुराना या एडिटेड, ये अभी स्पष्ट नहीं। इसी वायरल वीडियो को लेकर मंगलवार को एक भक्त ने एकांतिक वार्तालाप में महाराज जी से सवाल पूछे। भक्त ने कहा- महाराज जी तीन दिन से हॉस्पिटल में भर्ती होने का वीडियो सोशल मीडिया पर ने चल रहा है। जवाब में प्रेमानंद महाराज ने कहा- देखिए, तीन दिन से हम भी बड़े जोरों से एकांतिक वार्तालाप कर रहे हैं। एकांतिक भी तो देख लेना चाहिए। हमें लगता है कि ये मोबाइल ही झूठ बोलवाता है। अब पता ही नहीं चलता कि झूठ-सच क्या है
उन्होंने कहा- कलयुग का कुछ ऐसा प्रभाव हो गया है कि झूठ की बहुत ज्यादा चलन हो गई है। अब पता ही नहीं चल रहा है कि आदमी सत्य बोलता कब है। जहां सत्य पर हमें विश्वास है, वहां भी झूठ का प्रवेश हो रहा है। हम लोगों को झूठ से बचना चाहिए। शिष्य ने बताया- आपकी आवाज बदलकर घड़ी का प्रचार हो रहा
प्रेमानंद महाराज के साथ रहने वाले शिष्य ने सवाल पूछा- महाराज जी आजकल तो इंटरनेट मीडिया आदि पर भी AI का ट्रेंड है। ऐसा लगता है कि सच में ऐसा हुआ है। कैसे आपकी वॉयस को चेंज कर दिया जाता है। आप किसी घड़ी का प्रचार कर रहे होते हैं। कहा जाता है कि ये घड़ी बहुत अच्छी है। ऐसा टाइम देती है कि आपका समय सही हो जाएगा। इस पर प्रेमानंद महाराज ने कहा- आज हम कह सकते हैं कि झूठ का बहुत बड़ा और सत्य का बहुत छोटा क्षेत्र रह गया है। पदयात्रा रुकने के बाद से फैल रही अफवाह
प्रेमानंद महाराज पिछले 5 दिनों से पदयात्रा पर नहीं निकले। उनके आश्रम की ओर से जारी लेटर के मुताबिक, स्वास्थ्य कारणों से अनिश्चितकाल के लिए पदयात्रा रोक दी गई है। इसके बाद उनके स्वास्थ्य को लेकर सोशल मीडिया पर अफवाह फैलने लगी। भक्त ने पूछा- आपको श्रीजी की कृपा किडनी फेल होने से पहले हुई या बाद में?
रविवार को प्रेमानंद महाराज के एकांतिक वार्तालाप में तनिश अग्रवाल ने पूछा- महाराज जी आपको श्रीजी की कृपा किडनी फेल होने के पहले हुई थी या बाद में? इस पर प्रेमानंद महाराज हंस पड़े। उन्होंने कहा- बच्चा हमें कृपा तो बचपन में ही हो गई थी। अगर कृपा ना होती तो घर छोड़कर क्यों भागते? उस समय कोई समस्या थोड़ी थी। 11 साल के बालक को क्या समस्या? मैं 9वीं साइंस का स्टूडेंट था। उस समय मेरे ऊपर कोई भार, कोई झगड़ा, कोई समस्या… ये दिमाग में ही नहीं था। बस एक लक्ष्य था कि मुझे भगवान की प्राप्ति करनी है। उन्होंने कहा- पूर्व जन्म के भजन के प्रताप से ऐसा हुआ, क्योंकि हमको कोई समझाया नहीं। ऐसा नहीं कि कोई सत्संग सुना, तब मेरे अंदर ज्ञान प्रकट हुआ। मैंने संसार का त्याग किया। ये तो विवेकी लोगों का होता है। हम तो बच्चे थे। हमको कृपा ने घसीटा। बस एक ही लक्ष्य भगवान की प्राप्ति का था। ऐसे में कृपा तो पहले से ही थी, कृपा का विशेष अनुभव अब किडनी फेल होने पर हुआ। प्रेमानंद महाराज की हर दिन हो रही डायलिसिस
पिछले 6-7 दिनों से प्रेमानंद महाराज की उनके फ्लैट में रोजाना डायलिसिस हो रही है। पहले से डायलिसिस हफ्ते में 5 दिन होती थी। प्रेमानंद महाराज श्री कृष्ण शरणम् सोसाइटी में रहते हैं। इस सोसाइटी में उनके 2 फ्लैट हैं। HR 1 ब्लॉक के फ्लैट नंबर 209 और 212 उनके पास हैं। 2 BHK इन फ्लैट में से एक में वह रहते हैं जबकि दूसरे फ्लैट में डायलिसिस का इंतजाम किया हुआ है। किडनी की बीमारी से जूझ रहे संत प्रेमानंद महाराज की पहले कभी-कभी डायलिसिस होती थी। फिर यह हफ्ते में होने लगी। इसके बाद हफ्ते में कभी 3 दिन, कभी 5 दिन और कभी कभी हर दिन होती है। डायलिसिस की यह प्रक्रिया 4 से 5 घंटे चलती है। बताया जाता है कि महाराज की डायलिसिस पहले अस्पताल में होती थी। लेकिन बाद में इसके लिए मशीन और अन्य जरूरी सामान एक फ्लैट में ही रखवा दिया गया। जहां डॉक्टर उनकी डायलिसिस करते हैं। डायलिसिस के दौरान आधा दर्जन डॉक्टर की टीम वहां मौजूद रहती है। 2006 में पेट में दर्द हुआ तो पता चला किडनी खराब हैं
संत प्रेमानंद महाराज को पॉलिसिस्टिक किडनी डिजीज की बीमारी है। उनको जानकारी 19 साल पहले 2006 में तब हुई जब उनके पेट में दर्द हुआ। वह कानपुर में डॉक्टर को दिखाने पहुंचे। डॉक्टर ने उन्हें बताया कि उनको आनुवंशिक किडनी की बीमारी है। फिर वह दिल्ली गए। वहां एक डॉक्टर को दिखाया। डॉक्टर ने उन्हें बताया कि उनकी दोनों किडनी खराब हैं। जीवन सीमित है। इसके बाद वह वृंदावन आ गए। पहले वह काशी रहे और शिव भक्ति की। वृंदावन में उन्होंने राधा नाम का जप शुरू किया। तब से वह लगातार राधा नाम का जप कर रहे हैं। प्रेमानंद जी महाराज ने अपनी किडनी का नाम कृष्णा और राधा रखा है। ऑस्ट्रेलिया से आकर कर रहे महाराज जी की सेवा
संत प्रेमानंद महाराज की चिकित्सा सेवा के लिए कई डॉक्टर उनके भक्त बन गए। ऑस्ट्रेलिया में हार्ट स्पेशलिस्ट एक डॉक्टर इस कदर प्रभावित हुए कि वह अपनी प्रोफेसर पत्नी के साथ वहां से नौकरी छोड़कर वृंदावन आ गए और यहां की एक सोसायटी में फ्लैट लेकर रहने लगे। यह डॉक्टर प्रतिदिन महाराज जी की चिकित्सा सेवा में जाते हैं और उनके स्वास्थ्य का ख्याल रखते हैं।

कौन-कौन महाराज को किडनी देने की जता चुका इच्छा, जानिए अब पढ़िए प्रेमानंद जी के बचपन से लेकर प्रसिद्ध कथावाचक और संत बनने की कहानी… 13 साल की उम्र में प्रेमानंद जी महाराज ने घर छोड़ दिया था
प्रेमानंद महाराज का कानपुर के अखरी गांव में जन्म और पालन-पोषण हुआ। यहीं से निकलकर वो इस देश के करोड़ों लोगों के मन में बस गए। उनके बड़े भाई गणेश दत्त पांडे बताते हैं- मेरे पिता शंभू नारायण पांडे और मां रामा देवी हैं। हम 3 भाई हैं, प्रेमानंद मंझले हैं। प्रेमानंद हमेशा से प्रेमानंद महाराज नहीं थे। बचपन में मां-पिता ने बड़े प्यार से उनका नाम अनिरुद्ध कुमार पांडे रखा था। हर पीढ़ी में कोई न कोई बड़ा साधु-संत निकला
गणेश पांडे बताते हैं- हमारे पिताजी पुरोहित का काम करते थे। मेरे घर की हर पीढ़ी में कोई न कोई बड़ा साधु-संत होकर निकलता है। पीढ़ी दर पीढ़ी अध्यात्म की ओर झुकाव होने के चलते अनिरुद्ध भी बचपन से ही आध्यात्मिक रहे। बचपन में पूरा परिवार रोजाना एक साथ बैठकर पूजा-पाठ करता था। अनिरुद्ध यह सब बड़े ध्यान से देखा-सुना करता था। शिव मंदिर में चबूतरा बनाने से रोका, तो घर छोड़ दिया
बचपन में अनिरुद्ध ने अपनी सखा टोली के साथ शिव मंदिर के लिए एक चबूतरा बनाना चाहा। इसका निर्माण भी शुरू करवाया, लेकिन कुछ लोगों ने रोक दिया। इससे वह मायूस हो गए। उनका मन इस कदर टूटा कि घर छोड़ दिया। घरवालों ने उनकी खोजबीन शुरू की। काफी मशक्कत के बाद पता चला कि वो सरसौल में नंदेश्वर मंदिर पर रुके हैं। घरवालों ने उन्हें घर लाने का हर जतन किया, लेकिन अनिरुद्ध नहीं माने। फिर कुछ दिनों बाद बची-खुची मोह माया भी छोड़कर वह सरसौल से भी चले गए। नंदेश्वर से महराजपुर, कानपुर और फिर काशी पहुंचे
आज जिन प्रेमानंद महाराज के भक्तों में आम आदमी से लेकर सेलिब्रिटी तक शुमार हैं, उनकी पढ़ाई-लिखाई सिर्फ 8वीं कक्षा तक हुई है। 9वीं में भास्करानंद विद्यालय में एडमिशन दिलाया गया था, लेकिन 4 महीने में ही स्कूल छोड़ दिया। इसके बाद वह भगवान की भक्ति में लीन हो गए। सरसौल नंदेश्वर मंदिर से जाने के बाद वह महराजपुर के सैमसी स्थित एक मंदिर में कुछ दिन रुके। फिर कानपुर के बिठूर में रहे। बिठूर के बाद काशी चले गए। संन्यासी जीवन में कई दिन भूखे रहे
काशी में उन्होंने करीब 15 महीने बिताए। उन्होंने गुरु गौरी शरण जी महाराज से गुरुदीक्षा ली। वाराणसी में संन्यासी जीवन के दौरान वो रोज गंगा में तीन बार स्नान करते। तुलसी घाट पर भगवान शिव और माता गंगा का ध्यान-पूजन करते। दिन में केवल एक बार भोजन करते। प्रेमानंद महाराज भिक्षा मांगने की जगह भोजन प्राप्ति की इच्छा से 10-15 मिनट बैठते थे। अगर इतने समय में भोजन मिला तो उसे ग्रहण करते, नहीं तो सिर्फ गंगाजल पीकर रह जाते। संन्यासी जीवन की दिनचर्या में प्रेमानंद महाराज ने कई दिन बिना कुछ खाए-पीए बिताया।

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