प्रयागराज दारागंज में शुरू हुआ काली स्वांग महोत्सव:काली मां तांडव कर लोगों को दे रही आशीर्वाद, शताब्दियों से निभाई जा रही परंपरा

संगम नगरी प्रयागराज का दारागंज इलाका इस समय भक्ति और उत्सव के रंगों में सराबोर है। नवरात्रि के अवसर पर यहाँ सोमवार से पाँच दिवसीय काली स्वांग की भव्य शुरुआत हों गई है। जिसने पूरे क्षेत्र के धार्मिक और सांस्कृतिक माहौल को जीवंत कर दिया है। खास बात यह है कि काली स्वांग के साथ ही प्रसिद्ध दारागंज रामलीला का भी शुभारंभ हो गया है, जिससे भक्तों और दर्शकों का उत्साह चरम पर है। काली स्वांग, प्रयागराज की एक अनूठी परंपरा है, जो नवरात्र के दौरान विशेष आकर्षण का केंद्र होती है। इस स्वांग में कलाकार मां काली के भव्य वेश में सजकर सड़कों पर निकलते हैं और देवी के रौद्र रूप का प्रदर्शन करते हैं। हाथों में खप्पर, गले में खोपड़ियों की माला और मां काली की वेशभूषा में सजे कलाकार जब तांडव नृत्य करते हैं, तो पूरा इलाका भक्तिमय हो उठता है। मान्यता है कि इस रूप का दर्शन करने से नकारात्मक शक्तियों का नाश होता है और भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। इतिहासकार बताते हैं कि दारागंज का काली स्वांग लोकनाट्य परंपरा स्वांग का ही एक विशिष्ट स्वरूप है, जिसकी जड़ें सदियों पुरानी हैं। यहां पर नवरात्रि के दौरान यह परंपरा जीवंत होती है और हर साल हजारों लोग इसे देखने आते हैं। यह स्वांग पांच दिनों तक अलग-अलग मोहल्लों और चौक-चौराहों पर प्रस्तुत किया जाएगा, जिसमें रातभर भक्तिमय माहौल के बीच देवी गीत, भजन और नाटकीय प्रस्तुतियां होती हैं। इसी के साथ दारागंज की रामलीला भी शुरू हो गई है, जो दशहरे तक चलेगी। इसमें भगवान राम की लीला, रावण वध और अयोध्या विजय के प्रसंग मंचित किए जाएंगे। काली स्वांग और रामलीला का संगम दारागंज को धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र बना देता है। स्थानीय लोग मानते हैं कि काली स्वांग और रामलीला सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि समुदाय की सांस्कृतिक धरोहर भी हैं। इस दौरान दारागंज की गलियां रोशनी, भजन-कीर्तन और श्रद्धालुओं की भीड़ से जगमगा उठती हैं। काली स्वांग की यह परंपरा प्रयागराज की आस्था, लोकसंस्कृति और उत्सवधर्मिता का सजीव प्रतीक है।

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Source: उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर