जैविक खेती से लाखों की कमाई:बलिया के किसान जेपी पांडे ने नींबू, मधुमक्खी पालन और गोमूत्र से बनाया मॉडल फार्म
बलिया के बांसडीह के किसान जेपी पाण्डेय ने जैविक खेती का अनूठा मॉडल विकसित किया है। उन्होंने साढ़े छह एकड़ में नींबू की बागवानी के साथ मधुमक्खी पालन और पशुपालन को एकीकृत किया है। पाण्डेय ने छह-सात साल पहले नींबू की खेती शुरू की। उनकी मेहनत रंग लाई और अब प्रति एकड़ छह लाख रुपये से अधिक का उत्पादन हो रहा है। उन्होंने बताया कि नींबू की पैदावार बढ़ाने के लिए जब वे लिटरेचर पढ़ रहे थे, तब पता चला कि मधुमक्खी पालन से उत्पादन चौगुना बढ़ सकता है। मधुमक्खी पालन शुरू करने के बाद उन्हें कीटनाशकों का उपयोग बंद करना पड़ा। इसके बाद उन्होंने जैविक खेती की ओर रुख किया। बेटे की सलाह पर गाय खरीदी और गोमूत्र व गोबर के लिए अलग-अलग टैंक बनवाए। वे गोमूत्र का इस्तेमाल बायो यूरिया और कीटनाशक के रूप में करते हैं। खेतों में गोमूत्र और मट्ठे का मिश्रण छिड़कते हैं, जो एंटी फंगल और एंटी बैक्टीरियल का काम करता है। 65 वर्षीय पाण्डेय की बागवानी के प्रति लगन को देखते हुए राज्यपाल ने उन्हें पुरस्कृत भी किया है। वे पशुपालन और मछली पालन भी आधुनिक तरीके से करते हैं। पशुओं के गोबर से कम्पोस्ट भी तैयार करते हैं। केंद्र और राज्य सरकार किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए समय-समय पर सेमिनार और गोष्ठियों का आयोजन करती है, जिससे किसान नई तकनीकों से अवगत हो सकें। बलिया के बांसडीह निवासी किसान जेपी पाण्डेय की 65 वर्ष की उम्र पार करने के बाद भी बागवानी के प्रति दीवानगी उसी प्रकार बरकरार है,जैसे पहले थी। उन्नतशील किसान जेपी पाण्डेय को राज्यपाल द्वारा पुरस्कृत भी किया जा चुका है। जेपी पाण्डेय न केवल बागवानी बल्कि पशुपालन,मधुमक्खी पालन,मछली पालन भी आधुनिक तरीके से करते हैं। पशुओं के मूत्र से कीटनाशक तथा गोबर से कम्पोस्ट बनाने का भी काम होता है। साढ़े छः एकड़ में फैली बागवानी,नींबू की बागवानी पर विषेश फोकस दैनिक भास्कर से खास बातचीत में जेपी पाण्डेय ने बताया कि हमारे यहां नींबू की खेती अच्छी होती है।करीब छः-सात साल पहले हमनें नींबू लगाया था। अब नींबू का उत्पादन प्रति एकड़ छ: लाख रूपये से अधिक का हो रहा है। बताया कि नींबू लगाने के बाद हमने उसका लिटरेचर शुरू किया तो पता चला कि मधुमक्खी पालन से नींबू का उत्पादन चौगुना बढ़ जाता है। इसलिए हमने मधुमक्खी पालन शुरू किया। जब शहद का उत्पादन शुरू हुआ तो कीटनाशक का उपयोग बंद करना पड़ा। क्यों कि कीटनाशक से मधुमक्खियां मर जाती। और तब शुरू किया जैविक का कार्य शुरू इसके बाद हमने गोमूत्र तथा गोबर खरीदने का प्रयास किया। फिर बेटे की सलाह पर गाय खरीदा।यानि यह हर चीज एक दूसरे के सिक्वेंस में बढ़ता चला गया। हमने गायों का गोमूत्र तथा गोबर अलग-अलग इकट्ठा करने लिए टैंक बनवाया।गोमूत्र से बायो यूरिया का काम चल जाता है और कीटनाशक का भी काम करता है। हमारे यहां खेतों में गोमूत्र और मट्ठा मिलाकर छिड़काव किया जाता है।जिससे कि एंटी फंगल और एंटी बैक्टिरियल,कोई इंस्पेक्शन नहीं होता। चार एकड़ में नींबू,आधे एकड़ की नर्सरी में हर तरह के पौधे चार एकड़ में नींबू की खेती है। आधे एकड़ में नर्सरी है। जिसमें हर तरह के पौधे हैं। बताया कि दस हजार लीटर के बायोफ्लाक्स में मछली पालन होता है। जेपी पाण्डेय ने बताया कि प्राकृतिक खेती के जितने भी प्रकार हैं। चाहे वह सूखा हो या गीला हो,हर तरह के उपलब्ध हैं। सबका मैं उपयोग करता हूं। विभिन्न प्रकार के औषधीय पौधे हैं। फल वाले पौधे भी है। जेपी पाण्डेय के पशुशाला में गिर गायों की लम्बी फेहरिस्त है। राज्यपाल ने आने का किया है वादा जेपी पाण्डेय ने बताया कि राज्यपाल द्वारा पुरस्कृत किये जाने के बाद वो बलिया जब भी आती हैं। हम लोग मिलने जाते हैं। पिछली बार 10 मिनट का समय मिला लेकिन जब हम मिलने गये, हमारे साथ और किसान भी थे। जब हम लोग राज्यपाल से मिले तो 10 मिनट का समय एक घंटे में तब्दील हो गया।बताया कि जननायक चन्द्रशेखर विश्वविद्यालय में दीक्षांत समारोह में वो आयेंगी। मौसम ठीक रहा तो वो यहां भी आ सकती हैं।
Source: उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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