जालौन की कोंच रामलीला, सजीव युद्ध मंचन:173 साल से जारी परंपरा, अयोध्या-बनारस के बाद सबसे बड़ी मैदानी रामलीला
जालौन का कोंच नगर इन दिनों धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव का केंद्र बना हुआ है। यहां हर साल होने वाली रामलीला अपने अनूठे स्वरूप के कारण देश-प्रदेश ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान बना चुकी है। खास बात यह है कि इस रामलीला का मंचन किसी साधारण तरीके से नहीं होता, बल्कि यहां युद्ध के दृश्य मैदान में सजीव रूप से दिखाए जाते हैं। यही वजह है कि इस आयोजन को देखने के लिए हजारों की संख्या में दर्शक जुटते हैं। भीड़ को देखते हुए प्रशासन को भी सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद करनी पड़ती है। 173 सालों से निरंतर चली आ रही परंपरा कोंच की रामलीला की शुरुआत लगभग 173 साल पहले हुई थी और तब से यह परंपरा निरंतर जारी है। इसे अयोध्या और बनारस के बाद देश की सबसे बड़ी मैदानी रामलीला माना जाता है। यहां राम, लक्ष्मण और सीता के किरदार छोटे-छोटे बच्चे निभाते हैं। वहीं, जब मंच पर युद्ध के दृश्य आते हैं, तो उन्हें मैदान में सजीव तौर पर प्रस्तुत किया जाता है। मंगलवार को मारीच वध, सीता हरण और रावण-जटायू युद्ध के दृश्य का सजीव मंचन किया गया, जिसे देखने के लिए नगर ही नहीं, बल्कि आसपास के क्षेत्रों से भी लोग उमड़ पड़े।
सजीव युद्ध दृश्य बनाते हैं खास रामलीला समिति के सदस्य राघवेंद्र तिवारी और हरिश्चंद्र तिवारी बताते हैं कि इस रामलीला की सबसे बड़ी विशेषता इसका सजीव अभिनय है। मंच पर पात्रों के संवाद और कथा चलती है, जबकि युद्ध के दृश्य मैदान में असली जैसी झलक के साथ होते हैं। तलवारों की टकराहट, रथों का दौड़ना और पात्रों का जोश देखकर दर्शकों को ऐसा अनुभव होता है मानो वे खुद उस कालखंड में पहुंच गए हों। देश में कहीं और इस तरह की रामलीला का आयोजन नहीं होता, यही इसकी सबसे बड़ी पहचान है। सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल कोंच की रामलीला सिर्फ धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सांप्रदायिक सौहार्द की भी मिसाल है। यहां हिंदू और मुस्लिम समुदाय के लोग मिलकर इस मेले को सफल बनाते हैं। आयोजन समिति का कहना है कि यह मेल-मिलाप ही इसकी असली शक्ति है।
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