जातिसूचक शब्दों पर प्रतिबंध के आदेश पर उठे सवाल:भारतीय किसान यूनियन लोकहित ने जताया विरोध

हापुड़ में जातिसूचक शब्दों के प्रयोग पर प्रतिबंध के सरकारी आदेश के बाद समाज के विभिन्न वर्गों में असमंजस और विरोध की स्थिति उत्पन्न हो गई है। इस आदेश के तहत गांवों में जाति विशेष के नाम पर बने गेट और बोर्ड हटाए जा रहे हैं, जिसे कई संगठनों ने स्थानीय पहचान और परंपराओं पर हमला बताया है। भारतीय किसान यूनियन लोकहित के राष्ट्रीय अध्यक्ष देवेंद्र बाना ने इस आदेश का विरोध करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री स्वदेशी सामान खरीदने की अपील कर रहे हैं, जबकि हापुड़ के गन्ना किसान एक साल बाद भी भुगतान न मिलने से आर्थिक तंगी झेल रहे हैं। उन्होंने प्रशासन और चीनी मिलों को किसानों की इस स्थिति के लिए जिम्मेदार ठहराया। महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं संस्थापक हरीश हूण ने सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है। उन्होंने पूछा कि क्या यह प्रतिबंध केवल अपमानजनक शब्दों तक सीमित है या ऐतिहासिक, शैक्षिक और सांस्कृतिक नामों पर भी लागू होगा। उन्होंने जाट कॉलेज, गुर्जर कॉलेज, राजपुताना कॉलेज, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, अग्रवाल कॉलेज, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, जाट रेजिमेंट और राजपूताना रेजिमेंट जैसे संस्थानों के भविष्य पर सवाल उठाए। वक्ताओं ने जोर दिया कि जातीय सौहार्द बनाए रखने के लिए कदम उठाना आवश्यक है, लेकिन बिना स्पष्ट दिशा-निर्देशों के ऐसे आदेश समाज में भ्रम और असंतोष पैदा करेंगे। उन्होंने सरकार से तुरंत एक विस्तृत नीति दस्तावेज जारी करने की मांग की, जिसमें प्रतिबंध के लागू होने की परिस्थितियां और ऐतिहासिक नामों व संस्थानों पर इसके असर न पड़ने की बात स्पष्ट की जाए। संगठन पदाधिकारियों ने यह भी कहा कि विभिन्न जातीय महासभाओं ने कोरोना काल में मानवता की सेवा की थी। यदि जातीय सभाओं और कार्यक्रमों पर रोक लगाई गई, तो समाज अपने कल्याणकारी कार्यों से वंचित होगा। प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रशांत त्यागी, अभिषेक तेवतिया और अंकुर चौधरी भी मौजूद रहे।

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