चेहरा देखकर लिवर की सेहत बताने वाले डॉक्टर का इंटरव्यू:बोले- लिवर की बीमारी साइलेंट किलर, शराब जितने घातक कोल्ड ड्रिंक-पैक्ड जूस

‘जंक फूड, फास्ट फूड, अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड लिवर के लिए बेहद घातक हैं। मुझसे बहुत से लोग बोलते हैं कि मैं शराब का सेवन नहीं करता, लेकिन कोल्ड ड्रिंक पीता हूं। ये भी बहुत घातक है। ऐसे ही पैकेज्ड जूस भी बेहद नुकसानदायक हैं। ऑरेंज जूस, जिसमें शुगर मिलाया गया है, उसे पीने से फ्रक्टोज का मॉलीक्यूल शरीर में जाता है और डायरेक्ट लिवर पर अटैक करता है। इन सभी पर तत्काल बैन लगाने की जरूरत है। ये चीजें अल्कोहल यानी शराब के जितना शरीर और लिवर के लिए खतरनाक हैं।’ यह कहना है कि चेहरा देखकर लिवर की सेहत बताने वाले डॉ. डी. नागेश्वर राव रेड्डी का। तीनों पद्म पुरस्कार से सम्मानित डॉ. रेडड्डी हैदराबाद के एशियन हार्ट इंस्टीट्यूट के संस्थापक अध्यक्ष हैं। बीते दिनों वह पीजीआई के कॉन्वोकेशन में बतौर अतिथि लखनऊ पहुंचे थे। यहां उनसे दैनिक भास्कर ने खास बातचीत की। डॉ. रेड्‌डी ने कहा कि AI से डॉक्टर्स की स्किल कमजोर होगी। लोग हार्ट, ब्रेन, किडनी की बीमारियों से डरते हैं, लेकिन लिवर की बीमारी साइलेंट किलर है। किसी एक दिन अचानक आपका डॉक्टर बोलेगा कि आपको लिवर की एडवांस डिजीज है। लिवर सिरोसिस है और आप 6 महीने से ज्यादा नहीं जिएंगे। यही कारण है कि लाइफ स्टाइल में सुधार करना बेहद जरूरी है। पढ़िए बातचीत के मुख्य अंश… ‘लिवर की अहमियत अब सरकार भी समझ रही है’ डॉ. डी. नागेश्वर रेड्डी ने कहा कि एयरपोर्ट में चेक-इन की लाइन पर सामने वाले व्यक्ति के गले की लाइन और पैचेस को देखकर उसके लिवर की हेल्थ का अंदाजा लगाया जा सकता है। ये किसी के लिवर की तंदरुस्ती जानने का बेहद कारगर उपाय है। लिवर की एडवांस डिजीज की नई दवाओं से इलाज भी संभव है। यहां तक कि लिवर फाइब्रोसिस की कंडीशन को भी रिवर्स किया जा सकता है। बस सही डॉक्टर तक पहुंचना जरूरी है। समय पर इलाज शुरू करना भी जरूरी है। लिवर ट्रांसप्लांट तो सिर्फ अंतिम उपाय बचता है। उससे पहले की हर कंडीशन में इलाज किया जा सकता है। लिवर की अहमियत को अब सरकार भी समझ रही है। फैटी लिवर को लेकर लोगों को जागरूक कर रही है। ‘शरीर का असल ब्रेन सेंटर गट’ डॉ. डी. नागेश्वर रेड्डी ने बताया कि लिवर में मौजूद माइक्रोब्स ही गट हेल्थ (पाचन तंत्र का स्वास्थ्य) है। इसे शरीर का असल ब्रेन सेंटर कहा जाता है। लिवर के अंदर इसमें एक हजार से ज्यादा स्पेसीज और मिलियन ऑफ बैक्टीरिया होते हैं, जो शरीर के बाकी सभी अहम ऑर्गन को कंट्रोल करते हैं। ‘AI फायदेमंद, लेकिन 10 फीसदी मामलों में गलत’ डॉ. डी. नागेश्वर रेड्डी ने कहा कि AI के गलत होने का चांस 10% तक है। AI का एक नुकसान ये है कि डॉक्टर की डी स्किल्ड होने की आशंका रहती है। डॉक्टरों का एक ग्रुप जो AI के कारण अपनी स्किल खो हो रहा है, लेकिन कई जगह AI का फायदा भी देखने को मिल रहा। जैसे न्यूयॉर्क के 25 डॉक्टरों ने स्किन पिगमेंटेशन से जुड़े एक मरीज का गलत प्रिस्क्रिप्शन दिया, जबकि AI की बदौलत उसे सटीक इलाज मिल सका। ‘बहुत दिन बाद यूपी आया हूं’ डॉ. डी. नागेश्वर रेड्डी ने कहा, ‘मैं बहुत दिन के बाद यूपी आया हूं। मैं यह देख रहा हूं कि यहां काफी कुछ डेवलपमेंट बाइट कुछ वर्षों में हुआ है। लॉ एंड ऑर्डर की सिचुएशन में भी सुधार आया है। यूपी में अभी अच्छे और काबिल डॉक्टर हैं और ये बहुत अच्छा साइन है। यहां गवर्नमेंट सेक्टर में भी कई अच्छे और बेहतरीन संस्थान हैं।’ ’40 साल पहले एक करोड़ का पैकेज छोड़ भारत लौटा’ डॉ. रेड्डी कहते हैं कि पीजीआई चंडीगढ़ से सुपर स्पेशियलिटी की डिग्री लेने के बाद पहले जर्मनी गया। वहां कुछ साल काम किया। इसके बाद फिर अमेरिका गया। वहां बॉस्टन में दुनिया के सबसे बड़े हॉस्पिटल में काम किया। आज से 40 साल पहले वहां पर 1 करोड़ का पैकेज मिल रहा था। मुझे अपनी मातृभूमि में वापस लौटाना था। जब मैंने वापस लौटाने की बात अपने अमेरिकन इंचार्ज को बताई, तो उन्होंने मुझे बहुत डांट लगाई। कहा कि आप अपना इतना बेहतरीन करियर एक अंडर डेवलप कंट्री में वेस्ट करने जा रहे हैं। समय का फेर देखिए, आज उसी अमेरिकन संस्थान से स्टूडेंट्स भारत में आकर मेरे संस्थान से एक्सपोजर ले रहे हैं। सीख रहे हैं। मैं जब प्रेसिडेंट ऑफ वर्ल्ड एंडोस्कोपी आर्गेनाइजेशन था तो दुनिया के 120 देशों के डॉक्टरों को नजदीक से देखा और पाया कि भारत के डॉक्टर बेहद शानदार हैं। उनमें टैलेंट की कोई कमी नहीं है। ‘पिता ने सिखाया सफलता का असली मकसद’ डॉ. डी नागेश्वर रेड्डी कहते हैं कि भारत लौटने के बाद मैंने हैदराबाद में प्रैक्टिस शुरू कर दी थी। यहां भी खूब पैसा कमाया और खूब अच्छा काम चल रहा था। एक शाम अचानक मुझे मेरे पिता ने मिलने के लिए बुलाया। उन्होंने कहा कि तुम इतना पैसा भले ही कमा रहे हो, लेकिन मैं तुम्हें सफल नहीं मानता। तुमने समाज के लिए कुछ नहीं किया है। न किसी को पढ़ाया और न ही शोध किया। इस बात ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया और फिर मुझे एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी बनाने के लिए प्रेरित किया। यह काम आसान नहीं था। संसाधन कम थे। ‘लखनऊ में जमीन रोड़ा बन रही है’ लखनऊ में एशियन इंस्टीट्यूट ऑफ गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी सेंटर खोलने के सवाल पर डॉ. रेड्डी ने बताया कि पहले हमें एक ऑफर लखनऊ में सेंटर डेवलप करने का मिला था। सरकार की तरफ से भी कुछ बातचीत हुई थी। फिलहाल लखनऊ में जमीन की कीमत बहुत ज्यादा है। यदि जमीन हमें मिल जाएगी तो हम सेंटर जरूर खोल सकते हैं, लेकिन अभी जमीन में हम इन्वेस्ट नहीं कर पाएंगे।

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Source: उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर