घाटमपुर में बाटस चौदस त्योहार धूमधाम से मनाया गया:टेसू-झांझी विवाह परंपरा से शुरू होते हैं मांगलिक कार्य

कानपुर के घाटमपुर नगर और आसपास के क्षेत्रों में बाटस चौदस का त्योहार धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर टेसू-झांझी विवाह की सदियों पुरानी परंपरा का निर्वहन किया गया, जिसके बाद ही क्षेत्र में मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है। बुंदेलखंड की धरती पर प्रचलित यह परंपरा महाभारत के बर्बरीक की अधूरी प्रेम कहानी से जुड़ी है। मान्यता है कि टेसू-झांझी का विवाह भविष्य के नवविवाहित जोड़ों के लिए शुभ मार्ग प्रशस्त करता है। घाटमपुर क्षेत्र के युवा और युवतियां इस परंपरा को उत्साहपूर्वक निभा रहे हैं। वे टेसू और झांझी लेकर गांव-गांव घूमते हैं, घर-घर जाकर गीत गाते हैं और चंदा एकत्र करते हैं। बुजुर्गों के अनुसार, यह एक प्राचीन प्रथा है जिसे युवाओं ने नया रूप दिया है। शाम होते ही युवाओं की टोलियां गलियों में निकलती हैं, जहां घरों में टेसू और झांझी की पूजा की जाती है और उन्हें टॉफी व पैसे दिए जाते हैं। इस दौरान युवा “टेसू अक्कर करें टेसू मक्कर करें टेसू ले ही के टरें….” और युवतियां “मोर झांझिया अउर मांगे मोर झांझिया चाउर मांगे…” जैसे पारंपरिक गीत गाती हैं। टेसू-झांझी का विवाह शरद पूर्णिमा के दिन धूमधाम से आयोजित होता है। यह आयोजन गांव-गांव और कस्बों में होता है। ऐसी मान्यता है कि यदि किसी लड़के के विवाह में बाधा आ रही हो, तो उसे तीन साल तक झांझी का विवाह कराना चाहिए, और यदि लड़की के विवाह में समस्या हो, तो टेसू का विवाह कराने का संकल्प लेने से उनकी शादी हो जाती है। टेसू-झांझी से होती है शुभ कामों की शुरुआत यह बुंदेलखंड की काफी पुरानी परंपरा है। समय के साथ इस परंपरा में बदलाव आया है। अब कम लोग ही पुरानी परंपराओं को जीवित रखे हैं। यहां माना जाता है कि शुभ कार्यों की शुरुआत इस विवाह के बाद ही होती है। अनुश्रुति है कि झिंझिया नाम की राजकुमारी को टेसू नाम के राजकुमार ने राक्षस से आजाद कराया था, जिसके बाद यह त्योहार धूमधाम के साथ मनाया जाता है।

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