ग्रीनपार्क की पिच पर काली मिट्टी का संकट:पूरे प्रदेश में शुरू हुई मिट्‌टी की तलाश, इस पिच पर हो चुके कई एतिहासिक मैच

कानपुर का ऐतिहासिक ग्रीनपार्क स्टेडियम क्रिकेट जगत में अपनी खास पहचान रखता है, और इसकी सबसे बड़ी पहचान रही है यहां की काली मिट्टी से बनी पिचें। दशकों से इस स्टेडियम की पिचें बल्लेबाजों और गेंदबाजों दोनों के लिए चुनौती बनती रही हैं। लेकिन अब यह परंपरा संकट में है। दरअसल, ग्रीनपार्क की पिच के लिए उपयोग की जाने वाली काली मिट्टी उन्नाव से आती थी और अब वहां यह मिट्टी लगभग खत्म हो चुकी है। इस वजह से उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (UPCA) ने पूरे प्रदेश में काली मिट्टी की खोज शुरू कर दी है। अलग-अलग जिलों से लाई गई मिट्‌टी हाल ही में पिच क्यूरेटरों की कार्यशाला में अलग-अलग जिलों से लाई गई मिट्टी के नमूने प्रस्तुत किए गए और उनका परीक्षण किया गया। बीसीसीआई के पिच क्यूरेटर शिव कुमार ने बताया कि सही गुणवत्ता की काली मिट्टी खोजने का काम जारी है, ताकि ग्रीनपार्क की ऐतिहासिक पहचान को बनाए रखा जा सके। काली मिट्टी की पिच क्यों है खास? काली मिट्टी से बनी पिचें भारतीय क्रिकेट में खास महत्व रखती हैं। इसके कई फायदे हैं। गति और उछाल – काली मिट्टी गेंद को अतिरिक्त बाउंस देती है, जिससे तेज गेंदबाजों को मदद मिलती है। स्पिनरों की मदद – जैसे-जैसे मैच आगे बढ़ता है, पिच पर दरारें और टर्न पैदा होने लगते हैं, जिससे स्पिनरों को भरपूर फायदा मिलता है। टिकाऊपन – लाल मिट्टी की तुलना में काली मिट्टी नमी को लंबे समय तक संजोकर रखती है, जिससे पिच टूटती नहीं और मैच के अंत तक चुनौतीपूर्ण बनी रहती है। डे-नाइट मैचों के लिए बेहतर – रोशनी में पिच का व्यवहार अपेक्षाकृत स्थिर रहता है, जिससे रोमांच बढ़ता है। ग्रीनपार्क की पिच पर कई ऐतिहासिक मैच ग्रीनपार्क की काली मिट्टी की पिच ने भारतीय क्रिकेट को कई अविस्मरणीय पल दिए हैं। 1959 में भारत ने पहली टेस्ट जीत दर्ज की थी। ग्रीनपार्क पर भारत ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ऐतिहासिक जीत हासिल की थी, जिसने भारतीय क्रिकेट को नई पहचान दिलाई। अनिल कुंबले और कपिल देव का जलवा भी यहां देखने को मिला है। यहां की पिच पर दोनों दिग्गज गेंदबाजों ने अपनी धारदार गेंदबाजी से विपक्षी टीमों को परेशान किया। 2016 का भारत-न्यूजीलैंड टेस्ट भी एतिहासिक रहा हैं। रविचंद्रन अश्विन और रवींद्र जडेजा ने शानदार स्पिन गेंदबाजी से मैच को भारत की झोली में डाला। वनडे मुकाबलों में भी यह पिच कई बार बल्लेबाजों और गेंदबाजों के बीच रोमांचक संतुलन बनाती रही है। अब आगे की चुनौती अब काली मिट्टी का नया स्रोत तलाशना यूपीसीए के लिए बड़ी चुनौती है। जब तक नई मिट्टी की पहचान नहीं हो जाती, तब तक पिचों की गुणवत्ता पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। क्रिकेट प्रेमियों की निगाहें अब इस पर टिकी हैं कि कौन-सा जिला ग्रीनपार्क को उसकी नई “काली मिट्टी” देगा और आने वाली पीढ़ियों को उसी रोमांच का अनुभव कराएगा, जो कभी यहां के ऐतिहासिक मैचों में दिखा करता था।

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Source: उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर