गोरखपुर में विद्युत कर्मचारियों का निजीकरण के खिलाफ प्रदर्शन:नियामक आयोग को लिखा पत्र, मौन प्रदर्शन की चेतावनी दी
गोरखपुर में विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति ने निजीकरण की प्रक्रिया तेज होने के मद्देनज़र आज विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष अरविंद कुमार को पत्र भेजा है। समिति ने आग्रह किया है कि पावर कारपोरेशन द्वारा प्रस्तुत आरएफपी (RFP) डॉक्यूमेंट पर आपत्तियों के जवाब पर कोई निर्णय लेने से पहले उन्हें अपने पक्ष को रखने का समय दिया जाए। समिति का कहना है कि उनकी राय को अनसुना करना निर्णय प्रक्रिया में अनुचित होगा। पत्र में कर्मचारियों ने स्पष्ट किया कि यदि बार-बार अनुरोध करने के बावजूद भी उन्हें अपनी बात रखने का मौका नहीं मिला, तो गोरखपुर में विद्युत नियामक आयोग के मुख्यालय पर सैकड़ों बिजली कर्मचारी मौन विरोध प्रदर्शन करने को मजबूर होंगे। समिति ने इस जिम्मेदारी पूरी तरह आयोग अध्यक्ष पर डाली है। सरकार-प्रबंधन की बैठक पर आपत्ति
संघर्ष समिति का आरोप है कि समाचार पत्रों में यह जानकारी आई है कि आयोग के अध्यक्ष ने माननीय ऊर्जा मंत्री, प्रमुख सचिव ऊर्जा और पावर कॉर्पोरेशन के अध्यक्ष के साथ आरएफपी डॉक्यूमेंट पर चर्चा की। समिति का कहना है कि इस बैठक में पावर कॉर्पोरेशन प्रबंधन द्वारा आपत्तियों पर दिए गए जवाब को समिति की सुनवाई के बिना मंजूरी दे दी गई, जिससे निजीकरण का मार्ग साफ़ हो गया। निजीकरण को साजिश बताने का आरोप
संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने इसे गंभीर मामला बताते हुए कहा कि सरकार, प्रबंधन और नियामक आयोग के बीच निजीकरण को लेकर मिलीभगत हो गई है। पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम की परिसंपत्तियों को एक लाख करोड़ रुपए से अधिक मूल्य के बावजूद निजी घरानों के हाथ कौड़ियों के दाम पर देने की योजना बनाई जा रही है। कर्मचारियों और उपभोक्ताओं पर प्रभाव
संघर्ष समिति के संयोजक इंजीनियर पुष्पेन्द्र सिंह ने बताया कि निजीकरण से लगभग 60,000 संविदा और 16,500 नियमित कर्मचारियों की नौकरी समाप्त होने की संभावना है। हजारों कर्मचारियों की पदावनति भी हो सकती है। साथ ही, बिजली उपभोक्ताओं पर भी असर पड़ेगा क्योंकि निजीकरण से टैरिफ और सेवाओं में बदलाव संभव है। आंदोलन का 315वां दिन
विद्युत कर्मचारियों का निजीकरण विरोधी आंदोलन लगातार 315वें दिन भी जारी है। प्रदेश के सभी जनपदों में कर्मचारियों ने विरोध प्रदर्शन किए। उन्होंने कहा कि यह आंदोलन सिर्फ नौकरी बचाने का नहीं है, बल्कि पूरे बिजली क्षेत्र और उपभोक्ताओं के हित में भी है।
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