कैसे मुमकिन हुई आजम खान की रिहाई?:बसपा में शामिल होने के कितने चांस; क्या भाजपा इसके पीछे है?
यूपी के सियासी गलियारे से लेकर आम आदमी तक चर्चा में एक ही नाम है- आजम खान। तमाम अड़चनों के बाद वह आखिरकार सीतापुर जेल से बाहर आ गए। बेटे के साथ कार में बैठे आजम ने सिर्फ हाथ हिलाकर अभिवादन किया। इस दौरान बेबाक बोलने वाले आजम चुप ही रहे। अब इसकी सियासी संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। आजम की रिहाई कैसे हुई? क्या उनकी सेहत बिगड़ने की दलील अदालत में काम आई? क्या वह सपा छोड़कर बसपा में जाएंगे? इसके पीछे कौन है? इससे किसका समीकरण गड़बड़ा जाएगा? दैनिक भास्कर की इस खास खबर जानिए सब कुछ… आजम खान को कैसे मिली राहत? आजम खान पर रामपुर और उसके आसपास के जिलों में 104 मुकदमे दर्ज हैं। इनमें से ज्यादातर 2017 में भाजपा सरकार आने के बाद दर्ज हुए। उनके वकीलों का दावा है कि मामले राजनीतिक प्रतिशोध का नतीजा हैं। आजम 2 बार में करीब सवा 4 साल जेल में रहे। जेल से रिहाई के लिए कई बार उनकी सेहत का हवाला दिया गया। निचली अदालतों ने शुरुआती अपील ठुकराई, लेकिन आखिरकार उन्हें एक-एक कर सभी मामलों में जमानत मिलती गई। आजम के लिए सितंबर का महीना काफी राहत भरा रहा। इस महीने जिन मामलों में जमानत हुई, उनमें कुछ मामलों में जमानत मुश्किल नजर आ रही थी। 10 सितंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डूंगरपुर मामले में 10 साल की सजा के खिलाफ अपील में जमानत दे दी। 18 सितंबर को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्वालिटी बार पर कब्जा मामले में जमानत दे दी। इसे मई- 2025 में ट्रायल कोर्ट ने खारिज कर दिया था। हाईकोर्ट ने कमजोर सबूतों का हवाला देकर आजम की जमानत मंजूर की। 19 सितंबर को जब रामपुर लैंड अलॉटमेंट मामले में हाईकोर्ट ने उन्हें राहत दी, तो उनके जेल से बाहर आने का रास्ता साफ हो गया। इस दौरान रामपुर में शत्रु संपत्ति के एक मामले में, जिसमें पहले ही जमानत मिल चुकी थी, आजम के खिलाफ धाराएं बढ़ा दी गईं। ये धाराएं 7 साल से ज्यादा की सजा की थीं। इसके बावजूद ये धाराएं उनकी रिहाई में बाधा नहीं बन सकीं। क्या बिगड़ी सेहत बनी जमानत की वजह?
77 साल के आजम की सेहत लंबे समय से चिंता का विषय रही है। जेल में रहते हुए उन्हें कई सेहत संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ा। इनमें दिल से जुड़ी बीमारी, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और किडनी की समस्या शामिल है। उनकी पत्नी तंजीन फातिमा ने हाल ही में जेल में मुलाकात के दौरान उनकी बिगड़ती हालत का जिक्र किया था। मजबूत पैरवी भी बनी वजह, इसके पीछे कौन लोग थे?
आजम की पैरवी में अखिलेश यादव भले ही सार्वजनिक रूप से कुछ न बोलते रहे हों, लेकिन सपा सरकार में एएजी रहे इमरान उल्लाह के जरिए उन्होंने हाईकोर्ट में बड़ी मदद की। इमरान उल्लाह को अखिलेश यादव का करीबी माना जाता है। हाईकोर्ट से मिली अधिकतर जमानत में इमरान ही आजम की पैरवी कर रहे थे। उनकी अधिकतर जमानत भी हाईकोर्ट से हुई है। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट में कपिल सिब्बल के साथ जुबैर अहमद खान भी आजम के वकील के रूप में काम कर रहे हैं। हर बार ट्रायल कोर्ट से इनकार के बाद हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। वकीलों ने तर्क दिया कि एफआईआर देरी से दर्ज हुईं और सबूत कमजोर हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 2024 के “अयूब खान बनाम राजस्थान राज्य” फैसले का हवाला दिया, जिसमें कहा गया कि आपराधिक इतिहास अकेला जमानत नहीं रोक सकता। बड़ा सवाल- क्या बसपा में जा सकते हैं आजम?
जेल से बाहर आने की बात सामने आते ही कयास लगाए जाने लगे कि आजम बहुजन समाज पार्टी में जा सकते हैं। इसके पीछे अलग-अलग दावे किए जा रहे। इसके लिए थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा। दरअसल, 2024 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन ने 43.52 फीसदी वोट हासिल किए थे। बसपा का वोट प्रतिशत 10 से भी नीचे चला गया था। ऐसे में आजम की अहमियत को समझा जा सकता है। अगर आजम बसपा में जाते हैं, तो बसपा का वोट प्रतिशत बढ़ सकता है। कहा ये भी जा रहा है कि आजम की पत्नी तंजीन फातिमा की मुलाकात मायावती से हो चुकी है। बसपा 9 अक्टूबर को लखनऊ में बड़ी रैली करने जा रही है। ऐसे में दावे ये भी किए जा रहे हैं कि आजम उसी रैली में बसपा का दामन थाम सकते हैं। हालांकि, अभी तक मायावती और आजम के करीबी इस खबर का खंडन कर रहे हैं। आजम के लिए बसपा ही क्यों?
राजनीतिक जानकारों का मानना है, आजम की रिहाई के पीछे भाजपा के साथ की गई डील शामिल है। इसके तहत समाजवादी पार्टी को कमजोर करने की कमान आजम को दी गई है। ये तभी मुमकिन है, जब वे बसपा में शामिल हों। बसपा अगर आजम को साथ लेकर 2027 का चुनाव लड़ती है, तो उसे मुस्लिम वोटों का एक बड़ा हिस्सा मिल सकता है। इससे सबसे बड़ा नुकसान सपा को पहुंचेगा। पश्चिमी यूपी में एक नया समीकरण उभरेगा। हालांकि, आजम की नजदीकी हाल के दिनों में आजाद समाज पार्टी के नेता चंद्रशेखर से भी देखने को मिली। बसपा को क्या फायदा होगा?
आजम के आने से पूरी तरह से बसपा से कट चुका मुस्लिम वोट बैंक वापस आ सकता है। खासकर पश्चिमी यूपी में बसपा मुस्लिमों को साधने में नाकाम साबित हुई है। 2000 के दशक में बसपा का सबसे मजबूत क्षेत्र पश्चिमी यूपी ही माना जाता था। ऐसे में आजम के आने से उसकी खोई हुई साख को वापस मिलने का फायदा हो सकता है। बसपा में जाने की चर्चा कहां से शुरू हुई?
मीडिया रिपोर्ट में यह बात सामने आई कि आजम की पत्नी तंजीन फातिमा और मायावती की दिल्ली में मुलाकात हुई है। इसके बाद आजम के बसपा में जाने की अटकलें तेज हो गईं। बसपा के इकलौते विधायक उमाशंकर सिंह से इस संबंध में जब सवाल किया गया ताे उन्होंने ऐसी किसी जानकारी से इनकार किया। कहा कि अगर आजम पार्टी में आते हैं, तो निश्चित रूप से बसपा मजबूत होगी। वहीं, बसपा के सूत्रों का कहना है कि बीते 3 महीने में मायावती दिल्ली गई ही नहीं। वो लगातार लखनऊ में हैं और 9 अक्टूबर के कार्यक्रम की तैयारी में जुटी हैं। बसपा के दिल्ली कार्यालय के प्रभारी श्रीधर और लखनऊ में मीडिया देखने देखने वाले मेवालाल गौतम ने इस तरह की किसी भी मुलाकात से साफ इनकार किया। वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र कुमार कहते हैं- आजम का ठिकाना सपा के अलावा कहीं और सुरक्षित नहीं। वे बोलने वाले नेता हैं और बसपा में इसकी आजादी नहीं है। भाजपा को आजम को जितने दिन जेल में रखना था, रख चुकी। इससे अधिक दिन तक वो रख भी नहीं सकती। आजम का तरीका रहा है कि वे अपनी बात मनवाने के लिए भी इस तरह के शिगूफे छोड़ते रहते हैं, ताकि उनकी मान-मनौव्वल हो। अगर आजम को दूसरी पार्टी जॉइन करनी होती या अपनी पार्टी बनानी होती, तो वे पहले ही समझौता कर सकते थे। लगभग 50 महीने जेल रहने के बाद नहीं। आजम के एक करीबी का कहना है कि सपा नेता 77 साल के हो चुके हैं। उनकी सेहत ठीक नहीं है। मुकदमों के चलते उनके परिवार से कोई चुनाव भी नहीं लड़ सकता। ऐसी हालात में वे उस बसपा के साथ क्यों जाएंगे, जिसका जनाधार लगातार कमजोर होता जा रहा है। 2027 में अगर सत्ता की गुंजाइश बनती भी है, तो उसकी दावेदार समाजवादी पार्टी ही नजर आती है। अगर आजम को पार्टी छोड़नी होती तो उन्हें 2009 में पार्टी से निकाला गया था। तभी वे ऐसा कदम उठा सकते थे। आजम कोई भी निर्णय अपनी मशावरती काउंसिल की सलाह पर लेते हैं। ये 22 सदस्यीय काउंसिल में देश भर के हर फील्ड के लोग हैं। क्या आजम की रिहाई के पीछे भाजपा का कोई गणित?
सितंबर महीने में 4 बड़े मामलों में आजम को जमानत मिलना महज इत्तफाक है या भाजपा की कोई गणित? इसे लेकर अलग-अलग तरह की थ्योरी सोशल मीडिया पर चल रही है। कहा जा रहा है, आजम की रिहाई भाजपा के साथ डील का हिस्सा है। इसमें अखिलेश यादव के पीडीए फॉर्मूले को कमजोर करना भी एक कारण हो सकता है। इसी के तहत उनके बसपा जॉइन करने की चर्चा जोरों पर है। 2027 में भाजपा को क्या फायदा हो सकता है?
अगर आजम बसपा में जाते हैं, तो मुस्लिम वोट बैंक में बिखराव होगा। मायावती जितनी मजबूत होंगी, अखिलेश उतना ही कमजोर होंगे। अखिलेश यादव का वोट बैंक बंटेगा। 2024 के लोकसभा चुनाव में शेड्यूल कास्ट के वोटरों ने भी बड़ी संख्या में सपा-कांग्रेस गठबंधन को वोट दिया था। आजम के साथ आने से मायावती मजबूत दिखेंगी, तो ये वोट बैंक वापस बसपा की ओर जा सकता है। सपा को जितना वोट कटेगा, भाजपा को उतना ही फायदा होगा। हालांकि, इस संबंध में पूछे जाने पर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी का कहना है कि आजम सपा के संस्थापक सदस्य हैं। वह कहां जाएंगे, यह तो वही तय करेंगे। यह सब अफवाह है कि वो भाजपा के इशारे पर बसपा में जा रहे हैं। देश और प्रदेश में कानून का राज है। न्यायालय के आदेश से वह जेल से बाहर आए हैं। न्यायालय के आदेश का स्वागत है। क्या इसलिए तेजी के साथ मिली मामलों में जमानत?
10 दिन पहले आजम की रिहाई को लेकर कोई चर्चा नहीं थी। अचानक एक के बाद एक मामलों में उन्हें जमानत मिलती गई। सवाल ये भी उठ रहे हैं कि क्या सरकार के वकीलों ने लचर पैरवी की? भाजपा दबाव बनाती तो रुक सकती थी रिहाई
आजम की रिहाई रोकने के लिए अच्छा-खासा ग्राउंड था। जिस मामले में आजम पर धाराएं बढ़ाई गई हैं, वो मामले गैरजमानती हैं। मामले की अगली तारीख 1 अक्टूबर है। ऐसे में इस मामले में कोर्ट से वारंट हासिल करते ही आजम की रिहाई रुक जाती। क्यों छोड़ सकते हैं सपा?
आजम के करीबियों को लगता है कि सपा ने उनकी वो मदद नहीं की, जो करनी चाहिए थी। आजम की पहली बार गिरफ्तारी हो या दूसरी बार…सपा सड़क पर नहीं उतरी। वहीं, संभल के मामले में सपा पूरी तरह से जियाउर्रहमान बर्क के साथ दिख रही थी। आजम की नाराजगी की एक वजह ये भी बताई जा रही है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में आजम के विरोधी मोहिबुल्ला नदवी को अखिलेश ने रामपुर से टिकट दिया था। जबकि आजम चाहते थे कि अखिलेश खुद इस सीट से चुनाव लड़ें। हालांकि, सपा के मुखिया ने आजम की ही पैरवी पर रुचि वीरा को मुरादाबाद से एसटी हसन का टिकट काट कर दिया और वे वहां से सांसद बन गईं। अगर सपा छोड़ी, तो अखिलेश को कितना नुकसान होगा?
आजम अगर पार्टी छोड़ते हैं, तो इसका नुकसान सपा को उठाना पड़ सकता है। आजम की अहमियत का अंदाजा उनके रिहा होने पर शिवपाल यादव और सपा के तमाम नेताओं के बयान से लगाया जा सकता है। शिवपाल ने कहा- सरकार ने आजम को गलत केस में फंसाया, लेकिन कोर्ट ने उन्हें राहत दी है। इसके लिए हम कोर्ट का स्वागत करते हैं। उन पर सैकड़ों केस लगाए गए हैं। सपा उनकी पूरी मदद कर रही है। आमतौर पर अखिलेश यादव भाजपा को मुद्दा देने से बचने के लिए मुस्लिमों के मुद्दों पर खुलकर बोलने से बचते रहे हैं। इसी को मुद्दा बनाकर अक्सर असदुद्दीन ओवैसी अखिलेश पर हमलावर होते रहे हैं। ऐसे में अगर आजम ने भी इसी तरह की बयानबाजी शुरू की तो निश्चित रूप से इसका नुकसान समाजवादी पार्टी को होगा। वो कौन सी धाराएं थीं, जिसे बाधा माना जा रहा था?
आजम को हाईकोर्ट से जब आखिरी मामले में जमानत मिली, उससे ठीक पहले रामपुर पुलिस ने शत्रु संपत्ति के एक पुराने मामले में सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल करते हुए कुछ धाराएं बढ़ा दीं। माना जा रहा था कि आजम को बाहर निकलने से रोकने के लिए इन धाराओं को बढ़ाया गया। इन धाराओं में जमानत आसानी से मिल सकती थी, इसलिए रिहाई को परवाना कागजी खानापूर्ति करने के बाद सीतापुर जेल भेज दिया गया। इन धाराओं को बढ़ाया गया
हाईकोर्ट से जमानत के बाद अचानक खबर आई कि रामपुर पुलिस ने एमपी-एमएलए कोर्ट में सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल की है। इसमें आजम खान का नाम जोड़ते हुए धारा 467, 471 और 201 लगा दी गई। इन धाराओं में 7 साल या उससे अधिक की सजा है। 1. धारा 467 (IPC): यह धारा उन मामलों से संबंधित है, जहां कोई व्यक्ति चेक या बॉन्ड, वसीयत या अन्य महत्वपूर्ण दस्तावेजों में जालसाजी करता है। इसका उद्देश्य धोखाधड़ी या नुकसान पहुंचाना होता है। यह गैरजमानती और संज्ञेय अपराध है। ऐसे मामले में 7 साल तक की कैद हो सकती है। इसके साथ जुर्माना भी लगाया जा सकता है। ऐसे मामलों में आसानी से जमानत नहीं मिलती है। 2. धारा 471 (IPC): इस धारा के तहत, अगर कोई व्यक्ति जाली दस्तावेज को जानबूझकर असली के रूप में उपयोग करता है या पेश करता है, तो वह अपराधी माना जाता है। इसमें भी 7 साल की जेल और जुर्माना हो सकता है। धारा 467 के साथ मिलकर ये एक गंभीर अपराध बन जाता है। 3. धारा 201 (IPC): यह धारा तब लागू होती है, जब कोई व्यक्ति किसी अपराध के सबूत को मिटाता है, छिपाता है या अपराधी को बचाने के लिए गलत जानकारी देता है। ये धारा मूलधारा के साथ जोड़ी जाती है। जैसे- जालसाजी के मामले के साथ जुड़ने पर इसमें सजा 7 साल या उससे अधिक हो सकती है, साथ में जुर्माना भी देना पड़ सकता है। क्या है तकनीकी पहलू?
आजम के वकील इमरान उल्लाह का कहना है कि हाईकोर्ट से जमानत मिलने के बाद जब धारा बढ़ाई गई तो लगा कि पुलिस इस मामले में वारंट लेगी। लेकिन, पुलिस ने वारंट नहीं लिया। वारंट सीतापुर जेल में नहीं पहुंचने से उनकी रिहाई संभव हो सकी। आजम को दो पार्ट में 50 महीने की जेल पहली बार: आजम 26 फरवरी ,2020 को फर्जी जन्म प्रमाण पत्र मामले में रामपुर कोर्ट में सरेंडर करने के बाद गिरफ्तार हुए और सीतापुर जेल भेजे गए। लगभग 27 महीने जेल में रहने के बाद 20 मई, 2022 को रिहा हुए थे। दूसरी बार: 18 अक्टूबर, 2023 को फर्जी जन्म प्रमाण पत्र मामले में 7 साल की सजा सुनाए जाने के बाद उनको फिर से गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। पहले वे रामपुर जेल में रहे, फिर सीतापुर जेल शिफ्ट कर दिया गया। अब उनकी लगभग 23 महीने बाद जमानत हुई है। इन याचिकाओं में बार-बार सुप्रीम कोर्ट के फैसले “बेल है रूल, जेल है एक्सेप्शन” का हवाला दिया गया, साथ ही उनकी उम्र और लंबी कैद का जिक्र किया गया। ————————— ये खबर भी पढ़ें… आजम खान के जेल से बाहर आने से किसे नुकसान?, भाजपा को डर या राजनीतिक कारणों से जेल में रखना चाहती है सरकार सपा के पूर्व मंत्री आजम खान को उनके आखिरी केस में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 18 सितंबर को जमानत दी। तब लगा कि अब आजम के जेल से बाहर आने का रास्ता साफ हो गया है। लेकिन तभी रामपुर एमपी-एमएलए कोर्ट ने जौहर यूनिवर्सिटी से जुड़े शत्रु संपत्ति मामले में नई धाराएं जोड़ते हुए उन्हें 20 सितंबर को तलब कर लिया है। क्या यह किसी रणनीति के तहत हुआ? या महज इत्तफाक था? क्या सरकार आजम खान की रिहाई में अड़चन डाल रही है? आजम खान से भाजपा क्या डर रही है? 2027 विधानसभा चुनावों पर इसका क्या असर पड़ेगा? दैनिक भास्कर की इस खबर में इन सभी सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे। पढ़िए पूरी खबर
Source: उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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