कुशीनगर के 250 साल पुराने मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता:सतगुढ़ी देवी मंदिर में दर्शन करने पहुंचे भक्त, पूजा-अर्चना की
कुशीनगर जनपद के हाटा ब्लाक के गंडक नदी के किनारे एक गाँव कुर्मौटा मंझरिया के पास का जंगल, जहां कभी चरवाहे अपने मवेशी चराया करते थे। कहते हैं, एक दिन अचानक तेज गर्जना और बिजली की चमक के साथ मूसलधार बारिश होने लगी। बारिश इतनी भयंकर थी कि चरवाहों को लगा मानो प्रलय आ जाएगा। सभी घबराए हुए चरवाहे भागकर एक विशाल पीपल के पेड़ के नीचे छिप गए। इसी बीच उनकी परेशानी और बढ़ गई जब उन्होंने पास की ओर आते हुए एक बाघ को देखा। सभी चरवाहे भयभीत हो गए और भागने की सोच ही रहे थे कि तभी आकाश से आवाज आई— “डरो मत, यह तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ेगा।” आश्चर्यजनक रूप से बाघ ने किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया और वहां से चला गया। बरसात रुकने के बाद चरवाहों ने देखा कि पास ही कुछ रहस्यमयी पिंडी दिखाई दी। वे तुरंत अपने-अपने गाँव लौटे और ग्रामीणों को पूरी घटना के बारे में बताया। जब लोग उस स्थान पर पहुंचे तो सभी ने मिलकर वहां मंदिर बनाने का निर्णय लिया। चंदेल राजपूतों ने इसे अपनी कुलदेवी मानते हुए मंदिर का निर्माण कराया और उसका नाम रखा गया सतगुढ़ी देवी मंदिर। यह मंदिर आज भी सैकड़ों गांवों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। छोटी गंडक नदी के तट पर स्थित यह धाम अपनी प्राकृतिक सुंदरता और पवित्रता के लिए प्रसिद्ध है। श्रद्धालुओं का मानना है कि यहां दर्शन करने से मनचाही इच्छाएं पूर्ण होती हैं। करीब 250 वर्ष पुराने इस मंदिर में सालभर भक्तों का तांता लगा रहता है, लेकिन नवरात्र में यहां विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन होता है। नौ दिनों तक चलने वाले अनुष्ठान में श्रद्धालु सुबह 3 बजे से ही लाइन में लगकर दर्शन करते हैं। कसया और रामकोला से यहां तक पहुंचने के लिए आसानी से टैक्सी और अन्य साधन उपलब्ध हैं। सतगुढ़ी देवी मंदिर सिर्फ धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि लोक आस्था और चमत्कार की जीवंत गाथा है, जो आज भी लोगों को अपनी ओर खींचती है।
Source: उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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