काशी में लंका-लाटभैरव की नक्कटैया:देव स्वरूपों के झांकी को देखने पहुंचे हजारों श्रद्धालु,लक्ष्मण ने काटा शूर्पणखा का नाक

वाराणसी के लंका और लाटभैरव “नक्कटैया” लीला का भव्य आयोजन सम्पन्न हुआ। यह आयोजन न सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि वाराणसी की संस्कृति, परंपरा और इतिहास का जीवंत प्रमाण भी है। यह लीला लगभग 500 वर्षों से लगातार आयोजित की जा रही है और आज भी उतनी ही भव्यता व श्रद्धा के साथ मनाई जाती है। लीला में 20 से अधिक झांकी भी शामिल हुआ। इस लीला के दौरान पूरे लंका चौराहे पर मेले जैसा माहौल रहा पुलिस ने रूट डायवर्जन किया था आसपास के जनपद से भी लोग इस लीला को देखने के लिए पहुंचते हैं। इस बार लीला में मां दुर्गा को समर्पित लगभग 5 से अधिक झांकियां थी। रात को करीब 2 बजे लक्ष्मण ने नाक काटी तो जयकारों से पूरा क्षेत्र गूंजा। इस दौरान श्रद्धालु भी भक्ति गीतों पर झूमते दिखे। आयोजन की कमान संभालते हैं संकट मोचन के महंत लंका में होने वाले आयोजन के मुख्य संरक्षक संकट मोचन मंदिर के महंत डॉ. विशंभर नाथ मिश्रा हैं। उन्होंने बताया कि “नक्कटैया कोई सामान्य रामलीला नहीं, बल्कि वाराणसी की आत्मा है। पिछले 500 वर्षों से यह लीला निर्बाध रूप से चली आ रही है। इसमें धार्मिकता के साथ-साथ लोक परंपरा, नाट्यकला और सामाजिक समरसता का भी समावेश होता है। उन्होंने यह भी कहा कि यह आयोजन वाराणसी की सांस्कृतिक धरोहर है, जिसे आगे भी पूरी श्रद्धा और भव्यता के साथ जारी रखा जाएगा। 55 लाग विमानों पर सजा लाटभैरव की प्रसिद्ध नक्कटैया लाटभैरव की प्रसिद्ध नक्कटैया की शोभायात्रा शनिवार की रात गाजे-बाजे के साथ निकाली गई। 55 से अधिक लाग बिमानों पर देख स्वरूपों की झांकी देखने के लिए जनता की भीड़ उमड़ी। दो किलोमीटर की दूरी तय करने में पांच घंटे से अधिक का समय लगा। देवविग्रहों के साथ ही प्राचीन बुड़वा बुद्धिया के मुखौटे को देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी। नक्कटैया की शोभायात्रा विशेश्वरंगज से उठकर अंबियामंडी, हनुमान फाटक होती हुई लाटभैरव सरेचा तक पहुंची। जहां पर खरदूषण युद्ध व वध व सीता हरण लीला का मंचन हुआ। जुलूस में सनसे आगे शूर्पणखा व खरदूषण के पुठले के साथ ही बैंड बाजा तथा काली दुर्गा के स्वरूप शामिल थे। इसके साथ ही हाथी, घोड़े, अंट व तलवार भांजती काली व दुर्गा के स्वरूप चल रहे थे।

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