इंजीनियर्स भवन में रेडियोकार्बन डेटिंग पर तकनीकी व्याख्यान:रेडियोकार्बन डेटिंग के लाभ और सीमाएँ पर चर्चा: विशेषज्ञों ने समझाया रेडियोकार्बन डेटिंग का महत्व

लखनऊ इंजीनियर्स भवन में इंस्टिट्यूशन ऑफ इंजीनियर्स (इंडिया), उत्तर प्रदेश राज्य केन्द्र द्वारा एक तकनीकी व्याख्यान आयोजित किया गया। इस व्याख्यान का विषय ‘रेडियोकार्बन डेटिंग: कैसे और कितने’ था । कार्यक्रम का उद्देश्य प्राचीन वस्तुओं और पर्यावरणीय अवशेषों की आयु ज्ञात करने की आधुनिक वैज्ञानिक पद्धति पर विशेषज्ञ दृष्टिकोण साझा करना था। मुख्य वक्ता डॉ. सी. एम नौटियाल, पूर्व अध्यक्ष, रेडियोकार्बन प्रयोगशाला, बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट ऑफ पैलियोसाइंसेस, लखनऊ ने रेडियोकार्बन डेटिंग की कार्यप्रणाली, प्रयोगों और इसके महत्व पर विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि यह तकनीक प्राचीन अवशेषों, पुरातत्व, भूविज्ञान और पर्यावरणीय अध्ययन में अत्यंत विश्वसनीय मानी जाती है। इसके माध्यम से मानव सभ्यता, प्राचीन बस्तियों, मंदिरों और जीवाश्मों का सही काल निर्धारित किया जा सकता है, जिससे इतिहास और पुरातत्व को सटीक समयरेखा मिलती है। रेडियोकार्बन डेटिंग वस्तुओं की आयु ज्ञात करने का सबसे भरोसेमंद तरीका डॉ. नौटियाल ने रेडियोकार्बन डेटिंग के लाभों पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा कि यह तकनीक प्राचीन वस्तुओं की आयु ज्ञात करने का सबसे भरोसेमंद तरीका है, असली और नकली वस्तुओं में अंतर पहचानने में मददगार है तथा ज्वालामुखी और जलवायु परिवर्तन जैसी प्राकृतिक घटनाओं के अध्ययन में भी उपयोगी है। उन्होंने इसके सीमाओं का भी उल्लेख किया—यह तकनीक लगभग 50,000 वर्ष तक प्रभावी है, केवल कार्बन आधारित पदार्थों जैसे लकड़ी, हड्डी और पौधों पर लागू होती है, प्रदूषण या मिलावट की स्थिति में परिणाम प्रभावित हो सकते हैं, और प्रक्रिया महंगी तथा जटिल होती है। ऐसे व्याख्यान शोधकर्ताओं की प्रेरणा कार्यक्रम के संयोजक ई. जी.एम पांडेय ने कहा कि ऐसे तकनीकी व्याख्यान युवा अभियंताओं, शोधकर्ताओं और विद्यार्थियों को नवीनतम वैज्ञानिक तकनीकों की गहन जानकारी प्रदान करते हैं और अनुसंधान एवं नवाचार की प्रेरणा देते हैं। अंत में संस्था के मानद सचिव ई. विजय प्रताप सिंह ने सभी गणमान्य अतिथियों और प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापन किया।

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