आजमगढ़ की ऐतिहासिक श्रीरामलीला में श्रीराम जी ने तोड़ा धनुष:राजा जनक ने किया बारातियों का स्वागत, सीता के विवाह होते ही लगे श्रीराम के जयकारे

आजमगढ़ के गंभीरपुर में चल रही ऐतिहासिक श्रीरामलीला समिति में स्थानीय कलाकारों द्वारा धनुष यज्ञ, प्रभु श्री राम द्वारा धनुष भंजन, परशुराम लक्ष्मण संवाद, राम सीता विवाह का मंचन किया। गंभीरपुर की ऐतिहासिक श्रीरामलीला 1965 से चली आ रही है। इस रामलीला का परशुराम लक्ष्मण संवाद प्रसिद्ध संवाद है। यही कारण है कि परशुराम लक्ष्मण संवाद देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं और इस रामलीला में अपनी सहभागिता करते हैं। जनकपुर के राजा जनक जी ने यह शर्त रखी थी कि जो भी इसी शिव धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ा देगा। उसके साथ हम अपनी पुत्री सीता का विवाह करेंगे। ऐसे में अनेक देश से राजा इस स्वयंवर में हिस्सा लेने आए। लेकिन कोई भी राजा ने शिव धनुष का भंजन नहीं कर पाया। इस पर राजा जनक ने चिंता जाहिर करते हुए सभी राजाओं पर गुस्सा हो गए और अपनी रखी शर्त पर अफसोस करने लगे। राजा जनक ने कहा कि लगता है मेरी पुत्री सीता का विवाह इस जन्म में नहीं लिखा है। इस धरती पर कोई भी वीर योद्धा नहीं है राजा जनक की बात सुनते ही लक्ष्मण क्रोधित हो जाते हैं। और वह राजा जनक से कहते हैं। अरे ओ राजा जनक रघुवंश के एक भी योद्धा के होते हुए भी आपने ऐसी अनुचित वाणी कैसे कर डाली। इस पर महर्षि विश्वामित्र लक्ष्मण को शांत कराते हुए श्रीराम को धनुष का भंजन करने का आदेश देते हैं। विश्वामित्र के आदेश के बाद श्रीराम जी ने तोड़ा धनुष विश्वामित्र के आदेश के बाद श्रीराम शिव धनुष का भजन करते हैं। शिव धनुष टूटते ही जय श्री राम का उद्घोष होता है। उसके उपरांत सीता जी प्रभु श्री राम के गले में वरमाला डालती हैं। उधर शिव धनुष टूटते ही तपस्या कर रहे परशुराम के कानों में आवाज जाती है। और वह वहां से क्रोधित होकर जनकपुर आते हैं। यहां पर जब राजा जनक द्वारा बताया जाता है कि मैने शर्त रखी थी जो भी शिव धनुष को तोड़ेगा उसे हम अपनी पुत्री का विवाह करेंगे। उसके बाद परशुराम क्रोधित हो जाते हैं। परशुराम को क्रोधित होता देख लक्ष्मण भी क्रोधित हो जाते हैं और दोनों में खूब ही बातों का युद्ध होता है। बीच-बीच में प्रभु श्री राम और विश्वामित्र दोनों को समझाने का कार्य करते हैं। लक्ष्मण द्वारा बार-बार परशुराम को चिढ़ाया जाता है। जिस पर परशुराम फरसा लेकर लक्ष्मण के ऊपर झपटते हैं। उसके बाद प्रभु श्री राम के बातों से उनको एहसास होता है कि यही मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम है। अपना संशय दूर करने के बाद परशुराम वापस चले जाते हैं। उसके बाद राजा जनक द्वारा अयोध्या नरेश राजा दशरथ के यहां संदेश भिजवाया जाता है। संदेश मिलने के बाद राजा दशरथ अयोध्या से बारात लेकर जनकपुर आते हैं। राजा जनक द्वारा सभी बरातियों का स्वागत किया जाता है। उसके बाद प्रभु श्रीराम और सीता जी का विवाह होता है। विवाह में जनक जी द्वारा सीता जी का कन्यादान किया जाता है। राम सीता का विवाह होते ही पूरा पंडाल जय श्री राम के उद्घोष से गूंज उठा। इस अवसर पर बड़ी संख्या में भक्तों ने खुशियां मनाई।

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