असत्य पर हुई सत्य की विजय:कान्हा की नगरी में भगवान राम ने किया रावण का वध, धूं धूं कर जला रावण और अहिरावण का पुतला
कान्हा की नगरी विजय दशमी पर्व पर भगवान श्री राम के जयकारों से गुंजायमान हो उठी। यहां भगवान राम के स्वरूप ने 85 फीट ऊंचे रावण के पुतले और 65 फीट ऊंचे अहिरावण के पुतले का दहन किया तो वहां मौजूद दर्शक आनंद में सराबोर हो गए। इस दौरान रामलीला मैदान में भव्य आतिशबाजी भी की गई। डोलत भूमि गिरा दसकंधर,छुभित सिंधु सरी दिग्गज भूधर श्री रामलीला सभा मथुरा के तत्वावधान में रामलीला मैदान महाविद्या पर रावण व अहिरावण वध की लीला हुयी । पाताल लोक से अपने प्रतापी पुत्र अहिरावण को बुलाने के लिए रावण भगवान शंकरजी की उपासना करता है । रावण के ध्यान मग्न होने से पाताल में अहिरावण का मन विचलित होता है । वह लंका में रावण के पास पहुँच कर कारण जानना चाहता है । रावण युद्ध का पूरा समाचार सुनाने के बाद शत्रुओं का नाश का उपाय करने को कहता है।
चाचा विभीषण का वेश बनाकर रामादल में मोहिनी मंत्र से सभी को निद्रित करके राम व लक्ष्मण को पाताल में कामदा देवी की बलि चढ़ाने के लिये ले जाता है । हनुमानजी प्रभु की खोज में जाते समय मार्ग में गर्भवती गिद्धनी व गिद्ध के संवाद से स्पष्ट हो जाता है कि अहिरावण प्रभु राम व लक्ष्मण को ले गया है । हनुमान जी पाताल लोक में अपने पुत्र मकरध्वज से मिलते हैं जो अहिरावण की सेवा में लगा है । वह दोनों भाईयों का पता बताता है। हनुमान जी द्वारा अहिरावण का वध कर मकरध्वज को पाताल का राजा बना कर राम व लक्ष्मण को रामादल में ले आते हैं। रावण की नाभि पर मारा तीर अहिरावण की मृत्यु के बाद रावण स्वयं युद्ध करने जाता है । भयंकर युद्ध होता है । युद्ध में ब्रह्मास्त्र चलाकर लक्ष्मण को मूर्छित कर देता है । यह देख हनुमानजी रावण पर मुष्टिक प्रहार करते हैं, रावण मूर्छित होकर गिरता है, फिर मूर्छा टूटने पर उठता है । लक्ष्मण की मूर्छा टूटने पर वे रावण को परास्त कर लंका लौटा देते हैं । रावण विजय-यज्ञ करता है । वानर भालू उसके यज्ञ का विध्वंश कर देेते हैं। तत्पश्चात् राम व रावण के युद्ध में रावण की मायावी शक्तियों का प्रयोग राम द्वारा नष्ट कर रावण की नाभि में बने अमृत कुण्ड पर अग्नि वाण चलाने पर रावण राम-राम कहते हुए पृथ्वी पर गिर पड़ता है । राम राजनीति के ज्ञाता व महान पंडित रावण से राजनीति की शिक्षा के लिए लक्ष्मण को भेजते हैं । रावण शिक्षा प्रदान करता है व श्रीराम से कहता है कि विजय मेरी ही हुई है क्योंकि मैं आपके बैकुण्ठ लोक में जा रहा हू लेकिन आप मेरे जीवित रहते हुये लंका में प्रवेश नहीं कर पाये । श्रीराम मुस्कुरा जाते हैं । सीता जी की अग्नि परीक्षा के बाद प्रभु उन्हें वामांग लेते हैं। विजय की खुशी में हुई आतिशबाजी रामलीला मैदान में प्रभु के अग्नि बांण चलाते ही रावण के पुतले की नाभि से अमृत वर्षा, मुस्कुराहट व घोर गर्जना के साथ धू-धू कर जल उठा । जिसे देखकर मैदान में उपस्थित जन समुदाय राजा रामचन्द्र की जय जय घोष करने लगा। इस दौरान विजय स्वरूप उत्सव मनाने की खुशी में भव्य आतिशबाजी की गई। यह रहे मौजूद इस अवसर गोपेश्वर नाथ चतुर्वेदी, रविकांत गर्ग, जयन्ती प्रसाद अग्रवाल, जुगल किशोर अग्रवाल, नन्द किशोर अग्रवाल, मूलचंद गर्ग, प्रदीप सर्राफ पी.के., विजय किरोड़ी, शैलेष अग्रवाल सर्राफ,अजय मास्टर, , पं. शशांक पाठक, अजय कान्त गर्ग,गौरव टैंट वाले, विनोद अग्रवाल, नरेन्द्र मुकुट वाले, दिनेश गोयल, अनुराग मित्तल, विनोद सर्राफ, नागेन्द्र मोहन मित्तल, उमेश प्रेसववाले, प्रदीप गोस्वामी, पं.अमित भारद्वाज, सर्वेश शर्मा, संजय बिजली, अनूप टैंट, गौरव टैंट, शैलू हकीम, हिमांशु सुतिया ,चरत लाल सर्राफ,गोपाला चतुर्वेदी , मदन मोहन श्रीवास्तव, चिंताहरण चतुर्वेदी, प्रदीप गोस्वामी ,राज नारायण गोड़ ,राजीव शर्मा ,अंकुर गर्ग ,विवेक सुतिया आदि प्रमुख थे।
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