‘₹100 रुपए में घर नहीं चलता, त्योहार नहीं मना पाते’:लखनऊ में जुटीं आशा वर्कर्स का दर्द, बोलीं- सुसाइड करने का मन करता है

‘पेट्रोल डालकर खुद को फूंक लेंगे। सीएचसी-पीएचसी सेंटर के सामने आत्महत्या कर लेंगे । हम लोग परेशान हो चुके हैं, अधिकारियों और सरकार के टॉर्चर से। 3 हजार रुपए में दिन-रात ड्यूटी करवाते हैं। 4 महीने से हमारा वेतन बाकी है। करवाचौथ आने वाला है, दीपावली आने वाली है। हमारे पास तो बाल-बच्चे हैं। बिना पैसों के कैसे त्योहार मनाएंगे? 3 हजार रुपए में क्या हमने गुलामी लिखवा ली है? काम दर्जनों हैं और पैसा कुछ भी नहीं। हमारा त्योहार फीका होगा मगर ये सरकार हार जाएगी। इस बार वोट नहीं देंगे। सारा सिस्टम गड़बड़ है। सीएमओ समेत सारे अधिकारी पैसा खाते हैं। इस बार सरकार बदल देंगे’। यह कहना था यूपी के कई जिलों से राजधानी पहुंचीं एक्रेडिटेड सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट (आशा वर्कर्स) का। सोमवार को अपनी 5 मांगों के साथ करीब 20 हजार आशा वर्कर लखनऊ के इको गार्डन में इकट्ठा हुईं। उनमें अपने हकों के लिए लड़ने का जुनून था तो सुविधाओं और पैसे की कमी के लिए आक्रोश भी। दैनिक भास्कर ने आशा बहुओं से बात कर उनकी पीड़ा जानी। पढ़िए पूरी रिपोर्ट… ‘बिना पैसों के दिवाली कैसे मनाएंगे’
आशा वर्कर मीरा ने बताया- 2013 से सेवाएं दे रही हूं। हमारी खुद की बहुत समस्याएं हैं पर काम भी ज्यादा लिया जाता है। काम कर भी लेते हैं लेकिन उसी हिसाब से पैसे भी मिलने चाहिए। दिवाली-होली जैसे त्योहार गुजर जाते हैं, लेकिन हम खुशी नहीं मना पाते। पैसे के बिना हमारे त्योहार ऐसे ही गुजर जाते हैं। बच्चों की कोई भी ख्वाहिश पूरी नहीं कर पाते। हमारे पास न मिठाई के लिए पैसे होते हैं, न बच्चों के कपड़े और न ही दूसरे सामान के लिए। सफर करने के लिए किराया तक नहीं रहता है। उधारी पर जिंदगी गुजर रही है। हाथ जोड़कर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से निवेदन है कि हमारी समस्याओं का समाधान करें। ‘काम 4 से बढ़कर 54 हो गए, मानदेय नहीं बढ़ा’
प्रयागराज से आईं सरोज कुशवाहा 2016 से आशा बहू के तौर पर सेवा दे रही हैं। उन्होंने कहा- उस समय जो काम करते थे उस हिसाब से पैसे मिल जाते थे। आज 54 काम हो गए हैं। मानदेय उसकी अपेक्षा कुछ भी नहीं है। देश में जितनी बीमारियां हैं उनसे बचाव के लिए हम काम करते हैं। कोरोना में सेवाएं देते हुए हमारे लोगों की जान चली गई। जब कोई किसी को छूता नहीं था, पास नहीं खड़ा होता था तब हम उनको क्वारैंटाइन करके इलाज करते थे। जब घरवालों ने साथ छोड़ा तब हम लोगों ने अपना फर्ज निभाया। हम लोगों को बचाव के लिए मास्क, ग्लव्स और सैनिटाइजर कुछ भी नहीं मिलता है। मौत के मुंह में रहकर हम लोग काम कर रहे हैं। टीबी के मरीजों का बलगम बिना ग्लब्स के लेकर आते हैं। भ्रष्ट अधिकारी ही इस सिस्टम में दीमक हैं जो सबकुछ खत्म कर देंगे। इलाज करने वाली हमारी बहनें टीबी और कैंसर जैसे भयंकर रोगों से मर रही है। दूसरों को बचाती हैं और खुद की जान जा रही है। ‘100 रुपए में काम करने पर मजबूर’ अयोध्या से आई कुसुम कुमारी ने बताया कि 2018 से सेवाएं दे रही हैं। उन्होंने सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि यह कहती कुछ और है करती कुछ और है। एक तरफ महिलाओं के सम्मान की बात करती है दूसरी तरफ महिलाओं का शोषण हो रहा है। 300 रुपए अनपढ़ को मजदूरी मिलती है और हम पढ़े लिखे हैं फिर भी 100 रुपए नहीं मिल रहे। मैं प्रधानमंत्री से पूछना चाहती हूं कि वह हमारे उत्थान के लिए क्या कर रहे हैं। किसी पुरुष से ₹100 में 24 घंटा काम करवा कर दिखाएं। एक महिला के नाते हमारी मजबूरी का फायदा उठाकर 100 रुपए में काम करवाया जा रहा। छोटे-छोटे बच्चों का मुंह देखकर यह काम करने पर मजबूर हैं। ‘जिनके परिवार नहीं, वो कैसे समझें कि परिवार कैसे चलता है’
अयोध्या की रहने वाली आरती सिंह ने कहा- जिनके परिवार नहीं है वो हमारे परिवार का दर्द कैसे समझेंगे। उत्तर प्रदेश में लगभग डेढ़ लाख आशा वर्कर्स सेवाएं दे रही हैं। जो बकाया मानदेय और वेतन के लिए लगातार संघर्ष और विरोध प्रदर्शन कर रही है। स्वास्थ्य विभाग का बुनियादी काम हमारे भरोसे पर है और हमें ही टॉर्चर किया जा रहा है। सीएमओ कहते हैं कि ये काम कर लो, फिर कहते हैं कि वो काम कर लो। हमें हमारे ही कामों की कितनी कीमत आंकी जा रही है यह देखने वाला कोई नहीं है। परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है। स्वास्थ्य योजनाओं को जमीन तक पहुंचाती है उत्तर प्रदेश में लगभग 1,57,596 आशा कार्यकर्ता तैनात हैं। जो समुदाय में स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा देने और स्वास्थ्य कार्यक्रमों को घर-घर तक पहुंचाने के लिए काम करती हैं। गर्भवती महिलाओं की देखभाल, प्रसव के बाद की देखभाल और बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़े कार्य करती हैं। टीकाकरण, नसबंदी और परिवार योजना के बारे में जानकारी देना। एनएचएम के तहत विभिन्न योजनाओं को जमीन स्तर पर पहुंचने में अहम भूमिका निभाती हैं। ———————— ये खबर भी पढ़िए… लखनऊ में 20 हजार आशा बहुओं की हुंकार : बोलीं- हमें निकाला जा रहा, कह रहे डिलीवरी नहीं करवा रही; बाई से भी बदतर जिंदगी यूपी से करीब 20 हजार आशा वर्कर्स सोमवार को लखनऊ पहुंचीं। यहां इको गार्डन में वह वेतन बढ़वाने की मांग के साथ प्रदर्शन किया। उत्तर प्रदेश आशा वर्कर्स यूनियन संबद्ध आल इंडिया सेंट्रल कांउसिल ऑफ ट्रेड यूनियन (ऐक्टू) के बैनर तले प्रदर्शन किया। आशा वर्कर्स का कहना था कि 5 सूत्री मांगों को लेकर लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं, मगर कोई सुनवाई नहीं हो रही है। सरकार उनके कामों को नजरअंदाज कर रही है। इस बार चुनाव में इस सरकार को हटा देंगे। पूरा सिस्टम बदल देंगे। (पूरी खबर पढ़िए)

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