लोक संस्कृति के रंग में रंगा प्रयागराज:सुर-नृत्य और परंपरा का उत्सव, माटी की गूंज और सुरों का रंगमंच
प्रयागराज में सोमवार को आयोजित लोक संस्कृति उत्सव का दूसरा दिन प्रयाग संगीत समिति में पारंपरिक लोक गीत नृत्य और ग्रामीण परंपरा के अद्भुत संगम के साथ उल्लासपूर्वक संपन्न हुआ। व्यंजना आर्ट एंड कल्चर सोसायटी द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम ने न सिर्फ लोक परंपरा को सजीव किया, बल्कि लोक संस्कृति में नवाचार की दिशा में एक सशक्त पहल भी की। इसी क्रम में भारतीय लोक संस्कृति की समृद्ध परंपरा एवं नवाचार पर आधारित राष्ट्रीय संगोष्ठी का दूसरा दिन भी सार्थक और विचारोत्तेजक रहा। संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे सत्यकाम (कुलपति, राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय) ने कहा, भारतीय लोक संस्कृति गंगा की धारा के समान पावन और निरंतर है। नवाचार इसकी जीवंतता की वह कड़ी है, जिससे इसे और अधिक बल मिलेगा। संगोष्ठी में प्रेम कुमार मल्लिक, उर्मिला शर्मा और अभिलाष नारायण विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल हुए। विभिन्न सत्रों का समन्वय आकांक्षा पाल, दीनानाथ मौर्या और राजेश वर्मा ने क्रमशः किया। संगोष्ठी में आनंद वर्धन शुक्ल, महेश सिंह, इष्टदेव, संजय, अभिजीत दीक्षित, कल्पना दुबे, अनीता गोपेश, लोकेश शुक्ला, रक्षा सिंह और विशाल जैन ने अपने विचार रखे और महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सांस्कृतिक संध्या में मन्नू यादव के बिरहा गायन ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। वहीं, पद्म श्री सम्मानित उर्मिला श्रीवास्तव के लोक गायन पर पूरा सभागार तालियों की गूंज से भर उठा। इसके बाद अतुल यदुवंशी के नेतृत्व में प्रस्तुत नौटंकी बहुरुपिया ने दर्शकों को लोकनाट्य की ऊर्जा से भर दिया। लोक संस्कृति उत्सव के दौरान आयोजित प्रतियोगिताओं में 50 से अधिक विद्यालयों के 500 से अधिक छात्र–छात्राओं ने भाग लिया। गायन, नृत्य, रंगोली और चित्रकला जैसी विधाओं में विद्यार्थियों ने अपनी प्रतिभा का शानदार प्रदर्शन किया।
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