लखनऊ हाईकोर्ट ने जातीय रैलियों पर सरकार से जवाब मांगा:प्रमुख सचिव को कोर्ट बुलाया, 30 अक्टूबर को अगली सुनवाई

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने जातीय रैलियों पर राज्य सरकार के स्पष्ट जवाब न देने पर नाराजगी जताई है। कोर्ट ने संबंधित प्रमुख सचिव को तीन दिन में शपथ पत्र दाखिल करने या व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिया है। मामले की अगली सुनवाई 30 अक्टूबर को होगी। यह आदेश न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति राजीव भारती की खंडपीठ ने अधिवक्ता मोतीलाल यादव की जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। न्यायालय ने 7 अगस्त 2024 के अपने पूर्व आदेश के अनुपालन में यह निर्देश जारी किया है। शपथ पत्र दाखिल करने में क्या समस्या सुनवाई के दौरान, राज्य सरकार के अधिवक्ता ने बताया कि 21 सितंबर 2025 को एक शासनादेश जारी कर प्रदेश में राजनीतिक उद्देश्य से होने वाली जातीय रैलियों पर रोक लगा दी गई है। इस पर न्यायालय ने सवाल किया कि जब रोक लगा दी गई है, तो शपथ पत्र दाखिल करने में क्या समस्या है। जातीय रैलियों पर प्रतिबंध लगाने की मांग पिछली सुनवाई में चुनाव आयोग भी कह चुका है कि आदर्श आचार संहिता में जातीय रैलियों को पूरी तरह प्रतिबंधित किया गया है। कोर्ट ने सरकार से इन रैलियों पर कार्रवाई करने की शक्ति के बारे में जवाब मांगा था। यह जनहित याचिका प्रदेश में जातीय रैलियों पर प्रतिबंध लगाने की मांग करती है। जातीय व्यवस्था समाज को बांटती है इस याचिका पर सुनवाई के बाद, न्यायालय ने 11 जुलाई 2013 को ही प्रदेश में राजनीतिक दलों द्वारा जाति आधारित रैलियों पर रोक लगा दी थी। कोर्ट ने अपने अंतरिम आदेश में कहा था कि जातीय व्यवस्था समाज को बांटती है और भेदभाव पैदा करती है। न्यायालय ने यह भी कहा था कि जाति आधारित रैलियों की अनुमति देना संविधान की भावना, मौलिक अधिकारों और दायित्वों का उल्लंघन है।

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