भातखंडे विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का दूसरा दिन:देश-विदेश के शोधार्थियों ने संगीत और रंगमंच पर विचार साझा किए
भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय के कला मण्डपम में चल रहे त्रि-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के दूसरे दिन शुक्रवार को शोध प्रस्तुतियां हुईं। सम्मेलन में देश-विदेश से आए विद्वानों ने संगीत और रंगमंच के विभिन्न पहलुओं पर अपने शोध प्रस्तुत किए। प्रथम सत्र में डॉ. प्रज्ञा प्यासी ने उस्ताद विलायत खान की रिकार्डिंग्स पर अध्ययन प्रस्तुत किया। डॉ. वायिजरसू सुब्रमण्यम ने प्राचीन वाद्य यंत्र भूमि दुंदुभी पर शोध साझा किया। कल्पना जी ने बनस्थली विद्यापीठ के सांगीतिक योगदान के बारे में बताया। डॉ. मनोज मिश्रा ने तबला वादन की औपचारिक शिक्षा शुरू करने का सुझाव दिया। पारंपरिक और आधुनिक हिंदी रंगमंच की तुलना द्वितीय सत्र में हरमनजोत कौर ने पंजाब की धरना गायन शैली पर प्रकाश डाला। दीपिका गाड़ेकर ने भेंडीबाजार घराने की कलाकार सुहासिनी कोरटकर के योगदान को प्रस्तुत किया। उसमीत सिंह ने सबद गायन में राग आधारित संकीर्तन की वकालत की। जसविंदर सिंह ने पंजाबी गायिका सुरिंदर कौर पर शोध प्रस्तुत किया। संस्थागत शिक्षा का तुलनात्मक विश्लेषण किया स्मिता राय ने गुरु-शिष्य परंपरा और संस्थागत शिक्षा का तुलनात्मक विश्लेषण किया। राणा प्रताप ने पारंपरिक और आधुनिक हिंदी रंगमंच की तुलना प्रस्तुत की। डॉ. नरेश कुमार ने भारतीय संगीत शोध को वैश्विक स्तर पर ले जाने के लिए बहुभाषिक दृष्टिकोण अपनाने पर जोर दिया। समापन में उन्होंने शोधार्थियों को पीएच.डी. सिनॉप्सिस के बजाय मौलिक शोध प्रस्तुत करने की सलाह दी।
Source: उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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