भदरी रियासत का कुंवर कैसे बना सियासत का बाहुबली:पोटा से तलाक तक राजा भैया की जिंदगी के 4 विवाद; पत्नी से क्यों है झगड़ा
उत्तर प्रदेश की भदरी रियासत से ताल्लुक रखने वाले रघुराज प्रताप सिंह अपने राजनीतिक जीवन में मुश्किल दौर से गुजर चुके हैं। पहली मुश्किल मायावती सरकार में खड़ी हुई थी। जब उन्हें पोटा में गिरफ्तार किया गया था। फिर सीओ जियाउल हक के मर्डर केस में नाम उछला। अब पत्नी भानवी सिंह से विवादों और अवैध हथियारों को लेकर की गई शिकायत से फंसते दिख रहे। पति-पत्नी के रिश्तों में खटास साल-2015 से शुरू हुई। 2022 से दोनों के बीच तलाक का केस चल रहा है। उनके बीच का विवाद, अब बच्चों तक पहुंच चुका है। राजा भैया के दोनों बेटे, सोशल मीडिया के जरिए जहां मां पर निशाना साध रहे हैं। वहीं, दोनों बेटियां मां के बचाव में राजा भैया के संबंधों को लेकर मुखर हैं। हालांकि, खुद राजा भैया ने इस मसले पर अब तक कुछ बोला नहीं है। लेकिन, परिवार का ये विवाद घर की दहलीज लांघकर सूबे और देश की सियासी सुर्खियां बन चुका है। राजनीति के माहिर खिलाड़ी राजा भैया अक्सर अपने विवादों, राजशाही संपत्ति और फैन फॉलोइंग के चलते सुर्खियों में रहते आए हैं। उनके निजी और राजनीतिक जीवन की यह झलक बताती है कि राजा भैया यूपी के उन नेताओं में से हैं, जिनकी हर हलचल और कदम लोगों की दिलचस्पी का केंद्र बन जाती है। इस बार संडे बिग स्टोरी में कहानी भदरी रियासत की। राजा भैया की राजनीति में कैसे एंट्री हुई? भानवी सिंह से कैसे हुई शादी? अखिलेश यादव से क्या नाराजगी है? पढ़िए पूरी रिपोर्ट… माता-पिता की इकलौती संतान हैं राजा भैया
यूपी के प्रतापगढ़ जिले में एक तहसील कुंडा है। इसी कुंडा में भदरी रियासत है। 8 किमी दूर बेंती में उनका राजमहल है। भदरी रियासत के राजा उदय प्रताप सिंह और उनकी पत्नी मंजुला राजे की रघुराज प्रताप सिंह इकलौती औलाद हैं। 31 अक्टूबर, 1967 में रघुराज प्रताप सिंह का जन्म हुआ। मां मंजुला राजे समथर राज परिवार की बेटी हैं। कांग्रेस की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले राजा रणजीत सिंह जूदेव की बहन हैं। रघुराज प्रताप सिंह अपने असली नाम से ज्यादा राजा भैया के नाम पहचाने जाते हैं। ये नाम उनके समर्थकों ने दिया है। जबकि, राजा भैया के घरवाले उनको कभी-कभी तूफान सिंह नाम से भी संबोधित करते हैं। वजह यह कि राजा भैया को घुड़सवारी का बहुत शौक है। एक बार घोड़े से गिरने के कारण उनकी 2 पसलियां भी टूट गई थीं। इसके अलावा वो बुलेट और जिप्सी चलाने का शौक रखते हें। भदरी रियासत का इतिहास कहानी में आगे बढ़ने से पहले भदरी रियासत से जुड़े रोचक किस्से पढ़ लेते हैं। भदरी, प्रतापगढ़ जिले में स्थित एक ऐतिहासिक तालुकदारी थी। यह ब्रिटिश भारत के अवध क्षेत्र में आती थी। यह रियासत बिसेन राजपूत वंश द्वारा शासित थी और कुंडा क्षेत्र में फैली थी। भदरी रियासत का शुरुआती इतिहास राजस्व विवादों और युद्धों से जुड़ा है। इस रियासत का इतिहास राय जीत सिंह के कार्यकाल से मिलता है। 1748 में मणिकपुर की लड़ाई के बाद भदरी के प्रमुख जीत सिंह ने दिल्ली के अधिकारियों से सुलह कर ली और ‘राय’ की उपाधि हासिल की। 1798 में अवध के नाजिम मीर जान का अधिक राजस्व को लेकर जीत सिंह के उत्तराधिकारी तालुकदार राय दलजीत सिंह से संघर्ष हुआ और उनकी हत्या हो गई। फिर 1810 में दलजीत सिंह के बेटे राय जालिम सिंह को राजस्व न चुकाने के आरोप में लखनऊ में कैद कर लिया गया। इसके बाद भदरी रियासत को सीधे ब्रिटिश प्रबंधन के अधीन कर लिया गया। इस दौरान जालिम सिंह की पत्नी शेओराज कुंवर ने कबीले को एकत्रित किया। किराया वसूला और भदरी किले का बचाव किया। 1815 में जालिम सिंह रिहा हुए और रियासत वापस हासिल की। जालिम सिंह के बाद राय जगमोहन सिंह तालुकदार बने। 1833 में नाजिम एहसान हुसैन ने 50 हजार सैनिकों के साथ भदरी किले की घेराबंदी की, जो 12 दिनों तक चली। राजस्व विवाद सुलझा, लेकिन अगले साल अन्य बिसेन राजपूत तालुकदारों (जैसे कलाकांकर-धारूपुर के राजा हनुमंत सिंह) पर हमले हुए। बेंती और भदरी की दूसरी घेराबंदी के बाद जगमोहन सिंह और उनके बेटे बिश्वनाथ सिंह ब्रिटिश क्षेत्र में भागे, लेकिन गंगा के रामचौरा घाट पर उनकी हत्या हो गई। नाजिम को ब्रिटिश क्षेत्र का उल्लंघन करने के लिए पद से हटा दिया गया। इसके बाद भदरी के तालुकदार ब्रिटिशों के प्रति वफादार रहे। इसके बाद जगमोहन सिंह के भतीजे और दत्तक पुत्र अमरनाथ सिंह को रियासत सौंपी गई। उनके बाद दत्तक पुत्र राय जगत बहादुर सिंह (जिनके पिता शेओरतन सिंह की इलाहाबाद में हत्या हुई) शासक बने। जगत बहादुर सिंह के बिना संतान मरने पर उन्होंने राय सरबजीत सिंह को दत्तक पुत्र बनाया। 1879 में ब्रिटिश सरकार ने सरबजीत सिंह को ‘राय’ की उपाधि दी। 1867-1878 तक अल्पायु और कर्ज के कारण कोर्ट ऑफ वार्ड्स ने प्रबंधन किया। बाद में सरबजीत सिंह ने इसे आगे बढ़ाया। सरबजीत सिंह के बाद राय कृष्ण प्रताप सिंह शासक बने। इसके बाद राय बजरंग बहादुर सिंह राजा बने। 1922 में उन्होंने कांग्रेस जॉइन की। वे स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहे। राय बजरंग बहादुर सिंह ने स्वतंत्रता मिलने पर अन्य रियासतों की तरह भदरी रियासत का भी भारत में विलय कर दिया। वे पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के संस्थापक उपकुलपति और हिमाचल प्रदेश के दूसरे राज्यपाल (1955-1963) रहे। राय बजरंग बहादुर सिंह की खुद की संतान न होने पर उन्होंने भतीजे उदय प्रताप सिंह को गोद लेकर अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। आजाद भारत में जब भदरी स्वतंत्र राज्य घोषित हुआ
स्वतंत्रता से पहले नेहरू और भदरी परिवार के अच्छे ताल्लुकात थे। बजरंग बहादुर सिंह बतौर स्वतंत्रता सेनानी, पंडित जवाहर लाल नेहरू के साथ कई बार दिखे। राजा बजरंग की पत्नी रानी गिरिजा देवी इंदिरा गांधी से काफी नजदीक थीं। बजरंग बहादुर के दत्तक पुत्र उदय प्रताप सिंह ने दून स्कूल से शिक्षा ली थी। उन्होंने जापान से कृषि में स्नातक किया और ‘प्रकृति’ नामक संस्था बनाई। उनका जुड़ाव आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद से रहा। उदय प्रताप सिंह ‘प्रकृति’ नामक संस्था पर्यावरण संरक्षण पर काम करती है। जब उदय सिंह भदरी के प्रमुख हुए, तो नेहरू-गांधी परिवार से इनके ताल्लुकात खराब होते गए। इंदिरा गांधी के शासन में राजा उदय प्रताप सिंह ने अपनी रियासत भदरी को भारत का स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया था। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को मजबूरन कुंड़ा में सैन्य दल भेजना पड़ा था। इन्हीं उदय प्रताप सिंह के बेटे रघुराज प्रताप सिंह अब राजनीति के माहिर खिलाड़ी बन चुके हैं। पिता के विरोध के बावजूद राजा भैया राजनीति में उतरे
राजा भैया के पिता उदय प्रताप सिंह नहीं चाहते थे कि उनका बेटा कोई औपचारिक शिक्षा ले या स्कूल जाए। उनका मानना था कि पढ़ाई-लिखाई उसे कमजोर बना देगी। लेकिन, उनकी मां मंजुला राजे ने यह तय किया कि राजा भैया को शिक्षा जरूर मिले। मां के सपोर्ट से उन्होंने इलाहाबाद के महाप्रभु बाल स्कूल से अपनी प्रारंभिक शिक्षा ली। इसके बाद उन्होंने कर्नलगंज इंटर कॉलेज इलाहाबाद में एडमिशन लिया। वहां से स्कूलिंग के बाद राजा भैया लखनऊ आ गए। लखनऊ यूनिवर्सिटी से 1989 में उन्होंने ग्रेजुएशन पूरा किया। 25 साल की उम्र में राजा भैया ने 1993 में पहली बार कुंडा विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव में उतरे। हालांकि, उनके पिता उदय प्रताप सिंह नहीं चाहते थे कि वे राजनीति में आए। यही कारण है कि आज तक उदय प्रताप ने कभी उनके लिए वोट नहीं मांगा। राजनीति में कोई विशेष अनुभव नहीं होने के बावजूद राजा भैया ने कांग्रेस के दिग्गज नेता रहे नियाज हसन को हराया। इस सीट पर नियाज हसन का कब्जा 1962 से चला आ रहा था। 1993 से लगातार राजा भैया यहां से विधायक चुने जा रहे हैं। 2018 में उन्होंने एक राजनीतिक पार्टी जनसत्ता दल लोकतांत्रिक बनाई। वर्तमान में वे इसके राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। 2022 में उन्होंने पहली बार अपनी इस नवगठित पार्टी से चुनाव लड़ा। सदन में उनकी पार्टी के 2 विधायक हैं। कुंवर अक्षय प्रताप सिंह उनकी पार्टी से एमएलसी हैं। गुंडा बताने वाले ने भी उन्हें अपनी सरकार में मंत्री बनाया
राजा भैया की गिनती दबंग विधायकों में होती है। 1993 के बाद से 2007 तक यूपी में गठबंधन का दौर रहा। मायावती को छोड़ दें, तो राजा भैया सपा और भाजपा दोनों सरकारों में लगातार मंत्री बनते रहे। वो भी तब, जब ये पार्टियां चुनाव में उन्हें कुंडा का गुंडा बताकर वोट मांगती रहीं। 1996 के चुनाव में भाजपा के फायरब्रांड नेता कल्याण सिंह कुंडा सीट पर भाजपा प्रत्याशी का प्रचार करने पहुंचे थे। जनसभा में कल्याण सिंह राजा भैया को “कुंडा का गुंडा” कह बैठे। साथ ही जनता से अपील की थी कि एक बार उनकी पार्टी के प्रत्याशी को मौका दिया जाए। जनसभा में उन्होंने नारा दिया “गुंडा विहीन कुंडा करो, भुज उठाई प्रण कीन्ह”। भाषण के साथ जनसभा खत्म हुई और चुनाव में भाजपा प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गई। चुनाव जीतकर राजा भैया कल्याण सिंह से मिलने उनके आवास पहुंचे। इस बारे में पूछा था कि आखिर हमसे नाराजगी का कारण क्या है? साथ में ये भी कहा कि कुंडा का गुंडा वाली बात हमें नागवार लगी। राजा भैया को कल्याण सिंह ने एक साल बाद अपनी सरकार में मंत्री बना दिया। राजा भैया और उनकी जिंदगी से जुड़े 4 बड़े विवाद
राजा भैया की जिंदगी से 4 बड़े विवाद जुड़े हैं। 3 जहां राजनीतिक हैं, वहीं चौथा विवाद पारिवारिक है। मायावती से अदावत और पोटा : राजा भैया के राजनीतिक करियर में पहली बार सबसे मुश्किल दौर 2002 में आया। तब सूबे में भाजपा के समर्थन से मायावती सत्ता में थीं। उन्हें पता चला कि राजा भैया निर्दलीय और भाजपा के ठाकुर विधायकों के साथ मिलकर उनकी सरकार गिराने की साजिश रच रहे हैं। इसके बाद उनके खिलाफ लखनऊ के हजरतगंज में एक विधायक को जान से मारने की धमकी का एफआईआर दर्ज हुई। आधी रात में वे गिरफ्तार कर लिए गए। फिर भदरी और बेंती हवेली में पुलिस की छापेमारी में कई हथियार बरामद होने के दावे किए गए। पुलिस ने कुछ और एफआईआर दर्ज कीं। एक डकैती का केस भी लगा। साथ में पिता उदय प्रताप सिंह और साथी अक्षय प्रताप सिंह भी आरोपी बनाए गए और गिरफ्तार हुए। इसके बाद राजा भैया पर पोटा की कार्रवाई हुई। उनकी संपत्ति तक कुर्क कर ली गई। बेंती तालाब को पक्षी अभ्यारण घोषित कर दिया गया। राजा भैया यूपी और एमपी के जबलपुर में कुल 11 महीने जेल में रहे। प्रतापगढ़ सीओ जियाउल-हक मर्डर केस : 2 मार्च, 2013 को सीओ (सर्कल ऑफिसर) जिया-उल-हक की हत्या कर दी गई। इस हत्याकांड को कुंडा के बलीपुर गांव में ग्राम प्रधान नन्हे सिंह यादव की गोली मारकर हत्या के बाद उनके समर्थकों ने अंजाम दिया था। विवाद की सूचना पर सीओ गांव पहुंचे। उनके साथ मौजूद पुलिस टीम ग्रामीणों के आक्रोश के सामने डर गई। ग्रामीणों ने अकेला पाकर सीओ जिया उल हक की लाठी-डंडे से पीट-पीट कर अधमरा किया और फिर गोली मार दी। इस हत्याकांड में राजा भैया का भी नाम जोड़ा गया। हालांकि, सीबीआई जांच में राजा भैया को क्लीनचिट मिल गई। अक्टूबर, 2024 को सीबीआई कोर्ट ने 10 दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। राशन घोटाला : मुलायम सिंह की सरकार में 2003 से 2007 तक राजा भैया खाद्य मंत्री थे। उस कार्यकाल में सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) में एक बड़ा घोटाला हुआ था। इसमें गरीबों के लिए आवंटित खाद्यान्न (जैसे बीपीएल, अन्नपूर्णा, अंत्योदय योजना का अनाज) को गोदाम पहुंचने से पहले या बाद में कालाबाजारी कर ब्लैक मार्केट में बेचा गया। इसे नेपाल और बांग्लादेश तक निर्यात किया गया। 2013 में ये मामला उछला। राजा भैया पर मुख्य आरोपी होने का आरोप लगा। कुल घोटाले की राशि 2 लाख करोड़ रुपए बताई गई। इसमें राजा भैया को 100-112 करोड़ रुपए की घूस मिलने का दावा किया गया। हाईकोर्ट के आदेश पर सीबीआई जांच हुई। हालांकि, बाद में राजा भैया इस जांच में बरी हो गए। पत्नी भानवी सिंह से विवाद : राजा भैया चौथी बार किसी बड़े विवाद में फंसे हैं। इस बार राजनीतिक की बजाय पारिवारिक कलह में फंसे हैं। अलग रह रहीं पत्नी भानवी सिंह ने उनके खिलाफ घरेलू हिंसा का केस लगा रखा है। इसके अलावा भानवी ने राजा भैया पर कई महिलाओं से संबंध रखने का भी आरोप लगाया है। हाल के दिनों में इसे लेकर उन्होंने सोशल मीडिया पर कई पोस्ट किए हैं। राजा भैया पर अवैध असलहे रखने का दावा करते हुए इसके फोटो और वीडियो भी जारी किए हैं। साथ में इसकी शिकायत गृहमंत्रालय सहित दूसरी जांच एजेंसियों से की है। पति-पत्नी के इस विवाद में अब उनके चारों बच्चे भी शामिल हो चुके हैं। जहां बेटे पिता के पक्ष में, वहीं बेटियां मां के समर्थन में मोर्चा संभाले हैं। सपा सरकार में 2 बार मंत्री रहे राजा भैया से अखिलेश की क्या है नाराजगी
राजनीतिक अस्थिरता के चलते 25 अगस्त, 2003 को मायावती ने इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद मुलायम सिंह के नेतृत्व में साझा सरकार बनी। सत्ता परिवर्तन के बाद राजा भैया को इस मुश्किल दौर से निजात मिली। मुलायम सिंह ने उनके ऊपर लगा पोटा का केस वापस ले लिया। उनकी संपत्ति भी वापस कर दी। पोटा केस से बरी होने के बाद मुलायम सिंह सरकार में राजा भैया की बतौर मंत्री ताजपोशी भी हुई। 2007 में सत्ता परिवर्तन तक वह मंत्री रहे। इसके बाद 5 साल तक सूबे की कमान मायावती के हाथों में रही। फिर 2012 में अखिलेश की बहुमत की सरकार बनी। राजा भैया को फिर मंत्री बनाया गया। लेकिन, सीओ जिया-उल-हक हत्याकांड में नाम उछलने के चलते उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। सीबीआई से क्लीनचिट मिलते ही 8 महीने के अंतराल पर दोबारा सरकार में मंत्री बना दिए गए। 2017 में सूबे में योगी आदित्यनाथ की अगुआई में भाजपा की प्रचंड बहुमत वाली सरकार बनी। तब कयास लगाए जाने लगे कि राजा भैया भाजपा के साथ आ सकते हैं। लेकिन, राजा भैया अखिलेश के साथ ही बने रहे। ये साझेदारी 2019 तक रही। तब लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा का गठबंधन हुआ। समझौते में सपा को राज्यसभा की एक सीट पर समर्थन देने की बात तय हुई थी। राजा भैया को बसपा प्रत्याशी को वोट देने वाले विधायकों में नामित किया गया। इस पर वह नाराज हो गए। उन्होंने कहा कि जिस बसपा ने उन पर पोटा लगाया, उसके प्रत्याशी को समर्थन देना नैतिक रूप से सही नहीं होगा। उनके इस विरोध से अखिलेश के साथ उनकी कटुता बढ़ती चली गई। 2022 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश यादव ने कुंडा सीट पर गुलशन यादव को बतौर सपा प्रत्याशी उतार दिया। फिर वे चुनाव प्रचार भी करने पहुंचे। चुनाव प्रचार के दौरान उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा कि कुंडा में कुंडी लगाने का समय आ चुका है। इस पर राजा भैया ने पलटवार करते हुए कहा कि किसी माई के लाल में दम नहीं कि कुंडा में कुंडी लगा दे। इसके बाद से दोनों नेताओं के बीच की दूरियां काफी बढ़ चुकी हैं। दोनों नेता अपने कई बयानों में एक-दूसरे पर हमले कर चुके हैं। विधानसभा में अब राजा भैया का झुकाव सीएम योगी के प्रति साफ दिखता है। अक्सर वह सत्ता पक्ष की बजाय विपक्ष को घेरते दिखते हैं। राजा भैया की शादी की कहानी, समधी बने मुलायम
राजा भैया की शादी की कहानी भी काफी दिलचस्प है। भानवी सिंह से उनकी मुलाकात लखनऊ में एक शादी कार्यक्रम में हुई थी। भानवी सिंह उन्हें भा गईं। इसके बाद राजा भैया के परिवार की ओर से ही इस रिश्ते की बात को आगे बढ़ाया गया। भानवी सिंह बस्ती राजघराने के राजा के छोटे बेटे रविप्रताप सिंह की तीसरी बेटी हैं। 17 फरवरी, 1995 को उनकी शादी हुई। कुंडा से बारात बस्ती गई थी। बारात 3 दिन रुकी थी। इस शादी में खुद मुलायम सिंह यादव बतौर समधी शामिल हुए थे। शादी का एक एक वाकया काफी चर्चित है। भानवी सिंह की मां मंजुल सिंह ने रस्म के तौर पर मुलायम सिंह पर लाल रंग फेंक दिया था। इससे सुरक्षाकर्मियों में हड़कंप मच गया। बाद में मुलायम सिंह ने समझाया कि ये रस्म अदायगी है, जो समधी के साथ की जाती है। राजा भैया और भानवी के 4 संतानें हैं। शादी के एक साल बाद भानवी सिंह ने जुड़वां बेटियों को जन्म दिया। हालांकि बाद में एक बेटी की मौत हो गई। बड़ी बेटी का नाम राघवी सिंह है। दूसरी संतान के रूप में भी बेटी हुई, जिसका नाम बृजेश्वरी सिंह है। 2003 में जुड़वां बेटे हुए। बड़े बेटे का नाम शिवराज प्रताप सिंह और छोटे बेटे का नाम बृजराज प्रताप सिंह है। बेटे जहां पिता राजा भैया के साथ रहकर राजनीति का ककहरा सीख रहे हैं। वहीं, बेटियां मां भानवी सिंह के साथ दिल्ली में रह रही हैं। छोटी बेटी बृजेश्वरी वकालत कर रही है, जबकि बड़ी बेटी राघवी की पढ़ाई अभी जारी है। हायर एजुकेशन के लिए वह विदेश जाना चाहती हैं। पिता से डरने वाले राजा भैया की दबंगई की कहानियां
राजा भैया काफी दबंग माने जाते हैं। उनकी दबंगई की कई कहानियां लोग सुनाते रहते हैं। हालांकि, निजी जीवन में राजा भैया सबसे अधिक पिता उदय प्रताप सिंह से डरते हैं। आज भी वे पिता के साथ आंख मिलाकर बात नहीं कर पाते। राजा भैया की बेंती कोठी के पीछे करीब 600 एकड़ का तालाब है। जिसे लेकर कई अजीब और खौफनाक किस्से मशहूर हैं। लोग दावा करते रहते हैं कि राजा भैया ने उस तालाब में घड़ियाल पाल रखे थे। अपने दुश्मनों को मारकर तालाब में फेंक देते थे। हालांकि, राजा भैया इस तरह की बातें लोगों की अफवाह और मानसिक भ्रम बताते हैं। एक बार उस तालाब की खुदाई के दौरान एक नरकंकाल मिला। दावा किया गया कि यह शव कुंडा क्षेत्र के नरसिंहगढ़ गांव के एक शख्स का है। ये भी दावा किया गया कि उस आदमी का स्कूटर राजा भैया की जीप से टकरा गया था। इसके बाद कथित तौर पर राजा भैया के लोग उसे उठाकर ले गए। हत्या करने के बाद उसकी लाश को बेंती कोठी के पीछे वाले तालाब में फेंक दिया। हालांकि कभी ये साबित नहीं हो पाया। राजा भैया कितने दौलतमंद
राजा भैया के पास काफी दौलत है। 2022 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने चुनाव आयोग को बताया था कि उनकी कुल संपत्ति लगभग 24 करोड़ रुपए है। इसमें से करीब 15.7 करोड़ रुपए चल संपत्ति (जैसे बैंक में पैसा, निवेश आदि) और 7.9 करोड़ रुपए अचल संपत्ति (जैसे जमीन, मकान) हैं। उनकी आमदनी का मुख्य जरिया खेत-किसानी और व्यापार हैं। इसके अलावा, उनके परिवार के पास 12 किलो से ज्यादा सोना और 50 किलो से ज्यादा चांदी थी। जिसमें अकेले राजा भैया के नाम पर 3.5 किलो सोना और 26 किलो चांदी थी। —————————— ये खबर भी पढ़ें… दशहरे पर राजा भैया दिखाएंगे अपने शस्त्रागार के हथियार, करीबी MLC बोले- उस दिन पूजा होती है, जिसको देखना है आ जाए बाहुबली विधायक रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया के पास हथियारों का जखीरा है। यह शिकायत उनकी पत्नी भानवी सिंह ने पीएमओ से की है। इस पर राजा भैया के सबसे करीबी एमएलसी अक्षय प्रताप सिंह उर्फ गोपाल जी ने कहा कि उनकी पत्नी 10 साल से अलग रह रही हैं। ऐसे में उन्हें हथियारों की फोटो कहां से मिल गई? पहले तो उनकी ही जांच होनी चाहिए। उनकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। राजा भैया के पास लाइसेंसी हथियार हैं। जिनको भी ये हथियार देखना हो, वो दशहरे वाले दिन हमारे शस्त्रागार में आकर देख सकता है। सारे हथियारों को एक साथ रखकर पूजा की जाती है। उन्होंने ये भी कहा कि राजा भैया के नौकरों के पास भी लाइसेंसी हथियार हैं। दरअसल, भानवी सिंह का आरोप है कि उनके पति के पास मास डिस्ट्रक्शन वाले हथियारों का बड़ा जखीरा है। यह जन सुरक्षा और आंतरिक शांति के लिए गंभीर खतरा बन सकता है। कितने खतरनाक होते है ये हथियार? इन हथियारों से किन पर हमला हो चुका है ? Arms Act और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े कौन से प्रावधान लागू होंगे? पढ़िए पूरी खबर…
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