‘कानों में गूंजने वाली आवाज से कम होती है याददाश्त’:युवाओ में पड़ रहा गंभीर असर, SGPGI-CBMR के शोध में खुलासा
कानों में लगातार सीटी बजना, अजीब आवाजें आने का कारण सिर्फ कान की बीमारी तक सीमित नहीं है। बल्कि यह टिनिटस रोग ब्रेन को भी प्रभावित करता है। आवाज से लोगों में इमोशनल प्रॉब्लम बढ़ने लगती है। ध्यान और याद रखने की क्षमता को भी कम कर देती है। युवाओं और बुजुर्गों में इस रोग का असर अलग-अलग मिला है। ये तथ्य सेंटर SGPGI और ऑफ बायो मेडिकल सेंटर (CBMR) के साझा शोध में आए हैं। शोध को एल्सेवियर की अंतरराष्ट्रीय पत्रिका हियरिंग रिसर्च ने मान्यता दी है। शोधकर्ता इसे चिकित्सा विज्ञान की दिशा बदलने वाला बता रहे हैं। अभी तक डॉक्टर इसे कान की बीमारी मानकर इलाज कर रहे हैं। अब इसका उपचार उम्र के अनुसार अलग-अलग बनाने की जरूरत बतायी है। यह शोध SGPGI के हेड एंड नेक सर्जरी के विभागाध्यक्ष डॉ.अमित केशरी, CBMR के वैज्ञानिक डॉ.उत्तम कुमार और शोधार्थी हिमांशु पांडेय ने किया है। 120 लोगों पर हुआ रिसर्च डॉ. उत्तम कुमार ने बताया कि शोध में 120 लोग शामिल किये। इनमें 60 टिनिटस पीड़ित और इनते स्वस्थ लोग थे। सभी की सुनने की क्षमता सामान्य थी। युवा समूह में 19 से 34 वर्ष के 35 रोगी और इनते स्वस्थ। बुजुर्ग समूह में 45 से 65 वर्ष के 25 रोगी और इतने स्वस्थ शामिल हुए। आराम अवस्था में देखा गया कि इनके मस्तष्कि बिना किसी काम के कैसे सक्रिय रहता है? दिमाग के कौन से हिस्से आपस में जुड़े रहते हैं। ये आवाजें युवाओं को बहुत परेशान करती हैं CBMR के वरिष्ठ ब्रेन वैज्ञानिक डॉ. उत्तम कुमार ने बताया कि ब्रेन की संरचनाओं के अध्ययन में देखा गया कि युवाओं में यह आवाजें बहुत परेशान करने वाली थी। वे इसे नजरअंदाज नहीं कर पाते। इनमें भावनात्मक परेशानी बढ़ जाती है। जबकि बुजुर्गों में गतिविधि बढ़ी हुई थी। इनके ध्यान और स्मृति से जुड़े क्षेत्र कमजोर पाए गए। इनमें ध्यान और स्मृति की क्षमता घटने से थकान और एकाग्रता की समस्या और बढ़ जाती है। योग और ध्यान से कम होंगी आवाजें SGPGI के डॉ. अमित केशरी ने बताया कि यह रोग पूरे aq2मस्तिष्क पर असर डालता है। युवाओं और बुजुर्गों में अलग-अलग अंतर मिले हैं। इस शोध से युवाओं और बुजुर्गों में कुछ उपचार के सुझाव बताएं हैं। युवाओं में तनाव और भावनाओं पर नियंत्रण करने में माइंडफुल नेस, ध्यान, योग और मनोवैज्ञानिक परामर्श से राहत मिल सकती है। इनमें भावनात्मक तनाव और लगातार सुनाई देने वाली आवाजों को कम किया जा सकता है। वहीं बुज़ुर्गों में संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा, श्रवण प्रशिक्षण और चुंबकीय या विद्युत आधारित उपचार सहायक हो सकते हैं। इससे इन्हें ध्यान, स्मृति और मानसिक संतुलन को सुधारने में मदद मिलेगी। लक्षण कारण
Source: उत्तरप्रदेश | दैनिक भास्कर
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