उन्नाव में दशरथ ने राम वियोग में त्यागे प्राण:राम वन गमन, केवट संवाद और दशरथ मरण की लीला का सजीव मंचन
उन्नाव के शुक्लागंज में पोनी रोड स्थित श्री सार्वजनिक रामलीला समिति द्वारा शनिवार रात रामायण के पौराणिक प्रसंगों का मंचन किया गया। पांचवें दिन राम वन गमन, केवट संवाद और दशरथ मरण की लीला का सजीव मंचन हुआ। इस दौरान राजा दशरथ ने राम के वियोग में अपने प्राण त्याग दिए, जिससे उपस्थित श्रद्धालु भावुक हो उठे। मंचन में जब श्रीराम वनगमन के लिए प्रस्थान करते हैं, तो गंगा पार कराने के लिए केवट से संवाद होता है। केवट ने विनम्रतापूर्वक कहा कि उसकी नाव छोटी है और भगवान के चरण कमल इतने पवित्र हैं कि उनके स्पर्श से पत्थर भी जीवित हो जाते हैं। ऐसे में यदि प्रभु के चरण उसकी नाव को छू लेंगे, तो नाव कहीं पत्थर न बन जाए। यह उसका जीवनयापन का साधन है और वह संकट में पड़ जाएगा। इस संवाद ने वातावरण को भावुक बना दिया। बाद में केवट ने प्रभु श्रीराम के चरण धोकर उन्हें अपनी नाव में बैठाया और गंगा पार कराया। लीला में इसके बाद राजा दशरथ का वियोगपूर्ण प्रसंग दर्शाया गया। कैकेयी के दो वरदानों के कारण राम को चौदह वर्ष का वनवास और भरत को राज्य मिलना निश्चित हो चुका था। राजा दशरथ ने कैकेयी को वचन दिया था कि समय आने पर वह दो वर मांग सकती है। कैकेयी ने वही वरदान मांगते हुए राम के लिए वनवास और भरत के लिए राजगद्दी की मांग रखी। इस प्रसंग ने अयोध्या नगरी ही नहीं, बल्कि दर्शकों को भी गहरे दुःख में डाल दिया। अंततः जब दशरथ ने राम के वियोग में प्राण त्याग दिए, तो पूरे मंचन स्थल पर शोक की लहर दौड़ गई। दर्शकों की आंखें नम हो गईं और भावुक वातावरण छा गया। लीला समिति द्वारा किए गए संवादों और पात्रों की अदायगी ने रामायण काल की झलकियां सजीव कर दीं। शनिवार रात संपन्न इस भव्य मंचन में भारी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे। पांचवें दिन की इस लीला ने लोगों को भक्ति रस में सराबोर करने के साथ ही दशरथ के बलिदान और रघुकुल की रीति का स्मरण कराकर सभी के हृदय को गहराई तक छू लिया।
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