मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की हिदायत है कि भाजपा विधायक और पदाधिकारी शादी-ब्याह में दावतबाजी छोड़कर SIR के काम पर फोकस करें। बूथवार वोट बनवाना सुनिश्चित करें। इसके साथ ही यह तय करें कि किसी भी सूरत में घुसपैठियों और रोहिंग्या के नाम मतदाता सूची में शामिल न होने पाएं। लेकिन सीएम की इस नसीहत से इतर भाजपा संगठन के अहम ओहदेदार मुरादाबाद में लेखपाल और चौकी इंचार्जों की तैनाती की लिस्ट लेकर अफसरों पर प्रेशर बनाने में व्यस्त हैं। दूसरी ओर समाजवादी पार्टी ने बूथ लेवल पर कार्यकर्ताओं की टीमें लगाई हैं। अखिलेश यादव के पर्सनल BLO बूथ लेवल पर सपा के परंपरागत वोटर्स के फार्म भरवाने और अपलोड कराने में बीएलओ की हेल्प कर रहे हैं। बूथ लेवल पर लोगों के घर जा-जाकर सपा के कार्यकर्ता उनसे पूछ रहे हैं कि SIR के फार्म भरे या नहीं। इसकी रिपोर्ट हर रोज अखिलेश यादव तक भेजी जा रही है। इसके लिए हरेक जिले में सपा मुखिया अखिलेश यादव की ओर से केंद्रीय पदाधिकारियों की ड्यूटी लगाई गई है। मुरादाबाद और संभल जिले का जिम्मा पूर्व कैबिनेट मंत्री और कांठ के विधायक कमाल अख्तर के पास है। कमाल अख्तर सपा के राष्ट्रीय सचिव भी हैं। जिले के बाद सपा ने विधानसभावार और फिर ब्लॉकवार भी पदाधिकारियों की ड्यूटी लगाई है। इसके बाद बूथ लेवल पर कार्यकर्ताओं की टीम लगाकर ये सुनिश्चित किया है कि किसी भी हाल में सपा के वोटर्स का SIR फार्म भरने से छूट न जाए। दूसरी ओर भाजपा की ओर से ऐसी कोई सक्रियता नजर नहीं आती। मुख्यमंत्री की हिदायत के बाद शहर में जरूर भाजपा की हलचल बढ़ी है। लेकिन बाकी विधासनसभा सीटों पर स्थिति बेहद खराब है। भाजपा नेताओं के SIR को लेकर सक्रियता के दावे सोशल मीडिया पर फोटोसेशन तक ही सिमटे हैं। स्थिति ये है कि सपा जहां 30 नवंबर तक ही अपने लक्ष्य को करीब-करीब पूरा कर चुकी है वहीं भाजपा के प्रभाव वाले बूथों की स्थिति अभी तक खराब है। भाजपा नेताओं का फोकस SIR के बजाए अभी भी अपने व्यक्तिगत एजेंडे तक ही सिमटा है। संगठन के एक अहम ओहदेदार अपनी आलीशान कोठी के निर्माण को लेकर सुर्खियों में हैंं। प्रशासनिक सूत्र बताते हैं कि SIR पर काम करने के बजाए संगठन के इस अहम ओहदेदार का फोकस अभी भी लेखपाल और चौकी इंचार्जों की तैनाती में अधिक है। नेताजी अफसरों के चक्कर लगा रहे हैं, लेकिन चर्चा का केंद्र SIR नहीं है। बल्कि लेखपालों और चौकी इंचार्जों की सूचियां अफसरों को पकड़ाई जा रही हैं। दीपावली पर पटाखों के ठेके को लेकर भी नेताजी काफी सुर्खियों में रहे। पटाखों में कमीशनखोरी के चक्कर में नेताजी ने सरकारी राजस्व को अच्छी खासी चोट पहुंचाई थी। पहले 8 लाख में छूटे पटाखे के ठेके को नेताजी ने अफसरों पर प्रेशर बनाकर दूसरी बोली में महज 50-60 हजार में छुड़वा दिया था।
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