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HC लखनऊ बेंच ने यूपी पुलिस-सरकार को फटकारा:रेप मामले में बलरामपुर SP के दायर हलफनामे को बताया झूठा, फैक्ट्स छिपाने का आरोप

इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने बलरामपुर में एक नाबालिग रेप पीड़िता से जुड़े मामले में पुलिस और राज्य सरकार के रवैये पर तीखी टिप्पणियां की हैं। कोर्ट ने बलरामपुर के पुलिस अधीक्षक (एसपी) द्वारा दायर व्यक्तिगत हलफनामे को प्रथम दृष्टया झूठा बताया, जिसमें महत्वपूर्ण तथ्यों को जानबूझकर छिपाया गया था। बेंच ने उत्तर प्रदेश के प्रमुख सचिव (गृह) से इस संबंध में एक सप्ताह के भीतर व्यक्तिगत हलफनामा मांगा है। जस्टिस अब्दुल मोइन और जस्टिस बबीता रानी की खंडपीठ एक रिट याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस याचिका में शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया था कि नामजद आरोपी के खिलाफ दर्ज अपहरण मामले की जांच निष्पक्ष तरीके से नहीं की जा रही है। मामले में, हाईकोर्ट ने 17 नवंबर 2025 को एसपी बलरामपुर को एफआईआर (22 अक्टूबर 2024) के बाद हुई पूरी जांच का ब्यौरा हलफनामे के रूप में प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था। एसपी ने अपने हलफनामे में दावा किया था कि पीड़िता और उसके पिता के पॉलीग्राफ टेस्ट का आवेदन अभी मजिस्ट्रेट कोर्ट में विचाराधीन है। हालांकि, सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत को सूचित किया कि यह आवेदन तो एक दिन पहले, यानी 1 दिसंबर को ही मजिस्ट्रेट अदालत द्वारा खारिज किया जा चुका था। कोर्ट ने इस तथ्य को बेहद गंभीर मानते हुए कहा कि यह हलफनामा मामले के पूरे तथ्यों को छिपाकर दायर किया गया था। पीड़िता का पहला बयान 28 अक्टूबर 2024 को BNSS की धारा 183 के तहत दर्ज किया गया था। बाद में उसने बताया कि पुलिस और आरोपी के दबाव के कारण वह सही बयान नहीं दे सकी थी। इस पर POCSO कोर्ट ने 8 जनवरी को उसका बयान दोबारा दर्ज करने की अनुमति दी, जिसके बाद 19 मार्च को पीड़िता ने स्पष्ट रूप से कहा कि आरोपी ने उसका यौन शोषण किया था। इसके बावजूद, राज्य सरकार ने पीड़िता के बयान दोबारा दर्ज करने के आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दे रखी है। खंडपीठ ने इस पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि यह समझ से परे है कि राज्य एक ऐसे आदेश से कैसे व्यथित हो सकता है, जिसमें केवल पीड़िता का बयान दोबारा दर्ज कराने का निर्देश दिया गया है। कोर्ट ने सवाल किया कि आरोपी को आपत्ति हो सकती थी, लेकिन राज्य किस आधार पर इसका विरोध कर रहा है। कोर्ट ने पुलिस के तर्क पर भी कड़ी टिप्पणी की कि जब पीड़िता ने कोर्ट के समक्ष स्पष्ट आरोप लगा दिए हैं और अदालत ने माना है कि पहला बयान दबाव में दर्ज हुआ था, तब पॉलीग्राफ टेस्ट क्यों कराया जाना है। कोर्ट ने कहा-जब सक्षम अदालत नया बयान लेने का निर्देश दे चुकी है,तो पॉलीग्राफ टेस्ट कराने का कोई औचित्य नहीं दिखता।मामले के इन चौंकाने वाले पहलुओं को देखते हुए हाईकोर्ट ने यूपी के प्रमुख सचिव (गृह) को एक सप्ताह में व्यक्तिगत हलफ़नामा दाखिल करने का आदेश दिया है।मामले की अगली सुनवाई 15 दिसंबर को होगी।


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