दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर यूनिवर्सिटी ने स्टूडेंट्स में इनोवेशन, रिसर्च और वैज्ञानिक सोच को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से ‘हरिहर प्रसाद दुबे ट्रस्ट इनोवेशन अवार्ड 2025–26’ की घोषणा की है। यह अवॉर्ड हर साल नेशनल साइंस डे पर दिया जाएगा। इस अवॉर्ड में युनिवर्सिटी के स्नातक (यूजी) और स्नातकोत्तर (पीजी) लेवल के सभी स्टूडेंट हिस्सा ले सकते हैं। प्रतिभागिता व्यक्तिगत या 3 से 4 विद्यार्थियों की टीम के रूप में की जा सकेगी। हर प्रतिभागी या टीम केवल एक ही प्रविष्टि प्रस्तुत कर सकेगी। तीन चरणों में पूरी होगी आवेदन और चयन प्रक्रिया
इसमें आवेदन और चयन प्रक्रिया तीन चरणों में पूरी होगी। पहले चरण में 500–700 शब्दों का लिखित प्रस्ताव/सार प्रस्तुत करना होगा, जिसमें समस्या विवरण, उद्देश्य, कार्यप्रणाली, नवाचार और अपेक्षित सामाजिक व औद्योगिक प्रभाव का उल्लेख अनिवार्य होगा। दूसरे चरण में शॉर्टलिस्ट प्रतिभागियों से विस्तृत रिपोर्ट या मॉडल तैयार कराया जाएगा। अंतिम चरण में चयनित प्रतिभागी निर्णायक मंडल के सामने अपने प्रोजेक्ट का प्रस्तुतीकरण और प्रदर्शन करेंगे। अंतिम तिथि 30 जनवरी 2026 प्रस्ताव जमा करने की अंतिम तिथि 30 जनवरी 2026 है। विश्वविद्यालय के विद्यार्थी डीन, विज्ञान संकाय कार्यालय में विभागाध्यक्ष के माध्यम से और संबद्ध महाविद्यालयों के विद्यार्थी अपने प्राचार्य के माध्यम से प्रविष्टियां जमा करेंगे। कुलपति प्रो. पूनम टंडन ने बताया कि इस पुरस्कार का उद्देश्य बेहतरीन नवाचारी विचारों की पहचान करना, विद्यार्थियों को शोध के लिए प्रेरित करना और संभावनाशील नवाचारों को इन्क्यूबेशन, मेंटरशिप और उद्योग सहयोग के माध्यम से आगे बढ़ाना है। वहीं डीएसडब्ल्यू प्रो. अनुभूति दुबे ने बताया कि यह अवार्ड पंडित हरिहर प्रसाद दुबे ट्रस्ट की ओर से प्रस्तावित किया गया है। विश्वविद्यालय में मेधावी विद्यार्थियों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से पं. हरिहर प्रसाद दुबे फाउंडेशन ट्रस्ट, बेंगलुरु की ओर से विभिन्न प्रकार की छात्रवृत्तियों से संबंधित कार्यक्रम संचालित किए जाते हैं। गोरखपुर के प्रतिष्ठित अधिवक्ता और शिक्षाविद् थे पं. हरिहर प्रसाद दुबे
प्रो. अनुभूति दुबे ने बताया कि पं. हरिहर प्रसाद दुबे (1900–1963) गोरखपुर के प्रतिष्ठित अधिवक्ता और शिक्षाविद् थे। वे 1952 में गोरखपुर सिविल कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष चुने गए। शिक्षा के क्षेत्र में उनकी गहरी रुचि रही और उन्होंने गोरखपुर में शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना में योगदान दिया। स्वतंत्रता के बाद गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना की प्रक्रिया में वे सक्रिय रहे, स्थापना समिति के सचिव बने और 1963 तक विश्वविद्यालय से जुड़े रहे। उन्हीं की स्मृति में स्थापित फाउंडेशन ट्रस्ट आज विश्वविद्यालय के मेधावी विद्यार्थियों को छात्रवृत्तियां प्रदान करता है।
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