काशी और तमिलनाडु के प्राचीन सांस्कृतिक सेतु को मजबूत करने वाले काशी तमिल संगमम् 4.0 के आठवें दिन मंगलवार को कला, संस्कृति और कृषि–विज्ञान का अनूठा संगम देखने को मिला। नमोघाट स्थित मुक्ताकाशी प्रांगण में आयोजित भव्य सांस्कृतिक संध्या में तमिलनाडु और काशी के कलाकारों ने ऐसी मनमोहक प्रस्तुतियाँ दीं कि दर्शक मंत्रमुग्ध हो उठे। पहले देखें सांस्कृतिक कार्यक्रम की तस्वीरें दक्षिण और उत्तर के कलाकारों का कार्यक्रम सांस्कृतिक संध्या की शुरुआत वाराणसी की रंजना राय एवं दल द्वारा प्रस्तुत लोकगायन से हुई। ऊँ नमः शिवाय जैसे शिव-भजन पर पूरा प्रांगण भक्ति में डूब गया। इसके बाद सांवरा सांवरा लुट कर ले गया जैसी लोक प्रस्तुतियों ने तालियाँ बटोरीं। तमिलनाडु से आए एन. आनंद वेलमुर्गन एवं दल ने पारंपरिक लोकनृत्य और वादन कर दर्शकों को दक्षिण भारत की लोक-सुर लहरियों से रूबरू कराया। तीसरी प्रस्तुति में कुमकुम रस्तोगी एवं दल ने लोकनृत्य के माध्यम से काशी की सांस्कृतिक जीवंतता को मंच पर उतारा। रुद्राक्षी फाउंडेशन ने शास्त्रीय कथक की मोहक प्रस्तुति दी, जबकि कोयंबत्तूर से आई जननी मुरली ने भरतनाट्यम की शास्त्रीय ऊर्जा से मंच को आलोकित किया। अंतिम प्रस्तुति तमिलनाडु के डॉ. एस.ए. थनीकचलम द्वारा तमिल लोकनृत्य की रही, जिसने समूचे वातावरण में उत्सव का रंग घोल दिया। कार्यक्रम का संचालन सौरभ चक्रवर्ती ने किया। कृषक समूह ने बीएचयू का किया भ्रमण दिन में तमिलनाडु से आए कृषक समूह ने बीएचयू स्थित भारत कला भवन संग्रहालय का भ्रमण किया, जहां हड़प्पा, गुप्तकाल, सिंधु सभ्यता के पुरातात्विक अवशेषों से लेकर मुगल पेंटिंग और गुप्तकालीन स्वर्ण मुद्राएँ प्रदर्शित थीं। नटराज की दुर्लभ प्रतिमा और ‘गंगा–कावेरी समप्रवाह’ विशेष वीथिका ने प्रतिनिधियों को काशी और तमिल संस्कृति के ऐतिहासिक रिश्तों से अवगत कराया। संग्रहालय में उपनिदेशक डॉ. निशांत ने अतिथियों का स्वागत किया। ड्रोन से बुवाई और स्प्रेइंग खेती का बताया तरिका ड्रोन विशेषज्ञ श्री निवासन डी.जे. ने बताया कि ड्रोन आधारित बुवाई और स्प्रेइंग खेती की दक्षता बढ़ा रही है। वहीं अनुभवी किसान शशिकांत राय ने शून्य जुताई तकनीक के लाभ साझा किए। ओमकार नाथ ठाकुर सभागार में आयोजित संगोष्ठी में प्रो. निखिल कुमार सिंह ने धान, गेहूँ और अन्य फसलों की वैज्ञानिक खेती, जल प्रबंधन, वर्मी कम्पोस्ट आधारित जैविक मॉडल और नियंत्रित प्लॉट प्रणाली पर विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि भारत का खाद्यान्न उत्पादन 50 मिलियन टन से बढ़कर आज 330 मिलियन टन पहुँचना किसानों और वैज्ञानिकों के सामूहिक प्रयासों का परिणाम है।
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