संभल के ऐंचौड़ा कम्बोह गांव स्थित श्रीकल्कि धाम में रविवार को सातवें दिन की अंतिम श्रीकल्कि कथा के दौरान जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने पीठाधीश्वर आचार्य प्रमोद कृष्णम् से एक महत्वपूर्ण वचन लिया। उन्होंने आचार्य कृष्णम् से वर्ष 2028 में वैशाख शुक्ल प्रतिपदा द्वादशी को कल्कि भगवान की प्राण-प्रतिष्ठा करने का संकल्प कराया। कथा के दौरान जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने संभल के ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि संभल में 68 तीर्थ थे और यहां नास्तिकों, म्लेच्छों तथा वेद विरोधियों के साथ युद्ध हुए, जिनमें सभी को परास्त किया गया। उन्होंने इंदिरा गांधी द्वारा लगाए गए आपातकाल और अपनी जेल यात्रा का भी उल्लेख किया, जिसे उन्होंने संवैधानिक बताया। जगद्गुरु ने ‘सेकुलरिज्म’ शब्द के अर्थ पर अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा कि इसका अर्थ धर्मनिरपेक्ष नहीं होता। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत जैसा देश धर्मनिरपेक्ष हो ही नहीं सकता और जहां धर्म होगा, वहां जीत होगी। उन्होंने भारत की आर्थिक प्रगति का भी जिक्र किया और कहा कि देश जल्द ही चौथी से तीसरी और फिर पहली अर्थव्यवस्था बन जाएगा। कथा में भगवान कल्कि के विजय के बाद के प्रसंग का वर्णन किया गया। बताया गया कि सभी को परास्त करने के पश्चात भगवान कल्कि हरिद्वार आए और गंगा में स्नान किया। मुनिगण उनके दर्शन के लिए आए, जिसके बाद सतयुग का प्रारंभ हुआ। इस युग में धर्म अपने चारों चरणों को प्राप्त कर नृत्य करने लगा। भगवान कल्कि ने राजा मारू से रामचरितमानस सुनने की इच्छा व्यक्त की, क्योंकि वे अपने जीवन में राम को ही आदर्श मानते हैं। राजा मारू ने उन्हें संपूर्ण राम कथा सुनाई। जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने संतों की भूमिका पर भी बात की। उन्होंने कहा कि राष्ट्र की चिंता केवल संत ही कर सकता है। उन्होंने ‘संत’ शब्द की व्याख्या करते हुए बताया कि यह ‘सा’ और ‘अंत’ से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है जिनके चरणों में बैठकर राष्ट्र की समस्याओं के समाधान का सूत्र मिलता है। उन्होंने मंडलेश्वर और महामंडलेश्वरों को संत नहीं बताया और कहा कि संतों को राजनीति में आना चाहिए, लेकिन किसी पद पर नहीं रहना चाहिए। उन्होंने स्वयं को ‘मेंबर ऑफ परमात्मा’ और ‘किंग मेकर’ बताया।
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