मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि शाही ईदगाह विवाद से जुड़े वाद संख्या चार के वादी शुक्रवार को संशोधन प्रार्थना पत्र दाखिल करेंगे। वाद संख्या चार के वादी और श्रीकृष्ण जन्मभूमि मुक्ति निर्माण ट्रस्ट के आशुतोष ब्रह्मचारी के अनुसार संशोधन प्रार्थना पत्र में उन्होंने दावा किया है कि विवादित भूमि के रिकॉर्ड में ईदगाह का नाम तक नहीं है। और जिसे वजूखाना बताया जा रहा है, वह किसी भी प्रकार इस्लामिक निर्माण नहीं है। मरम्मत व सफाई में नीचे से देवी देवताओं की प्राचीन प्रतिमाएं गर्भगृह के पत्थर, कमल, चक्र, शंख जैसे वैदिक चिह्न मिले हैं। कहा गया है कि मूर्तियों को जानबूझकर नीचे दबाकर रखा गया था। कहा गया है कि यह स्थल मूलतः हिन्दू देवस्थान था। साथ ही रिकॉर्ड में शाही मस्जिद ईदगाह नाम की कोई भी अधिकृत संपत्ति नहीं मिलती। नगर निगम, बिजली विभाग, जल विभाग और राजस्व रिकॉर्ड में कहीं भी शाही मस्जिद ईदगाह नाम दर्ज नहीं है। इस नाम से न बिजली कनेक्शन और न कर पंजीकरण। अतः विवादित भूमि पर खड़ा ढांचा अभिलेख विहीन और वैधानिक आधार से रहित है। कहा गया है कि वज़ूखाने के नीचे दबाई गई प्राचीन मूर्तियां, रिकॉर्ड में ईदगाह का नाम न होने स्पष्ट है कि विवादित भूमि मूल श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर की ही है। ऐसे में शाही मस्जिद ईदगाह का नाम हटाकर विवादित भूमि किया जाए। इसके अलावा वाद में महत्वपूर्ण तथ्य जोड़े गए हैं और वादी पक्ष में एक नया धार्मिक प्रतिनिधि एवं एक महत्वपूर्ण गवाह का नाम शामिल किया गया है।पद्मविभूषण जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामभद्राचार्य के उत्तराधिकारी आचार्य रामचंद्र दास महराज को वादी के रूप में सम्मिलित किए जा रहा है। का कहना है कि जन्मभूमि से जुड़ी धार्मिक परंपरा, स्मृतियां और संरक्षित साक्ष्यों के संबंध में महत्त्वपूर्ण जानकारी रखते हैं। इसलिए वह इस वाद में आध्यात्मिक साक्ष्यदाता के रूप में होंगे।
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