मेरठ में हाईकोर्ट बेंच की स्थापना की मांग को लेकर 17 दिसंबर को शहर बंद रहेगा। महिला अधिवक्ताओं ने इस बंद का आह्वान किया है। उनका कहना है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों को न्याय के लिए 800 किलोमीटर दूर इलाहाबाद या लखनऊ जाना पड़ता है, जिससे उन्हें भारी परेशानी होती है। महिला अधिवक्ता उर्वशी चौधरी ने घोषणा की है कि वे अपने पुरुष सहकर्मियों के साथ सड़कों पर उतरेंगी। इस बंद को विभिन्न राजनीतिक और गैर-राजनीतिक संगठनों तथा अन्य संस्थाओं का समर्थन प्राप्त है। बड़ी संख्या में महिला अधिवक्ताएं कचहरी, चौराहों और बस स्टैंड के आसपास इकट्ठा होकर बंद को सफल बनाएंगी। केंद्रीय संघर्ष समिति ने 17 दिसंबर के बंद को ऐतिहासिक बनाने का संकल्प लिया है। समिति ने बंद के साथ-साथ चक्का जाम करने की भी घोषणा की है। अधिवक्ताओं का कहना है कि यदि आवश्यक हुआ तो अदालती कार्यवाही भी बंद की जाएगी। दशकों से चल रहा आंदोलन, नहीं की जनप्रतिनिधियों ने भी पैरवी
अधिवक्ताओं ने आरोप लगाया कि यह आंदोलन दशकों से चल रहा है, लेकिन किसी भी सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने केंद्र में रही कांग्रेस, जनता दल और भाजपा सरकारों पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के साथ दुर्व्यवहार करने का आरोप लगाया। साथ ही, उन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के स्थानीय जनप्रतिनिधियों की क्षमता पर भी सवाल उठाए। अधिवक्ता रामकुमार शर्मा ने कहा कि 17 दिसंबर का मेरठ बंद प्रदेश के इतिहास में एक नया अध्याय लिखेगा। यह बंद सरकार के लिए एक चेतावनी है कि शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा यह आंदोलन अब आर-पार की लड़ाई में बदल गया है। उन्होंने कहा कि मेरठ से इलाहाबाद की दूरी करीब 800 किलोमीटर है। जबकि पाकिस्तान के लाहौर की दूरी से कम है। वें पिछले कई सालों से हाई कोर्ट बेंच के लिए प्रदर्शन करते आ रहे हैं। लेकिन हमेशा पूर्व की राजनीति पश्चिम पर हावी रही हैं। इसी वजह से वकीलों को संघर्ष करना पड़ रहा है।
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