इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार के एक मामले में रंगे हाथ पकड़े गए पुलिस उप-निरीक्षक (एसआई) शैलेंद्र प्रताप को जमानत दे दी है। कोर्ट ने कहा कि ट्रैप कार्रवाई संदिग्ध लगती है, क्योंकि मौके पर न हाथ धुलवाए गए और न ही बरामद रुपये वहीं जब्त किए गए। यह आदेश न्यायमूर्ति समीर जैन की पीठ ने जमानत अर्जी पर सुनवाई के बाद दिया। शैलेंद्र प्रताप सुल्तानपुर के करौंदीकला थाने में तैनात थे। आरोप था कि किसी की रिहाई की अर्जी पर रिपोर्ट देने के लिए उन्होंने 10 हजार रुपये रिश्वत मांगी। अयोध्या की एंटी करप्शन टीम ने उन्हें कथित रूप से रंगे हाथ पकड़ा और रुपये बरामद किए। इसके बाद एसआई ने हाईकोर्ट में जमानत मांगी। याची के वकील उदय भान सिंह ने कहा कि आरोप झूठे हैं और ट्रैप की प्रक्रिया में कई खामियां थीं। उन्होंने बताया कि मौके पर न याची और शिकायतकर्ता के हाथ धुलवाए गए और न ही बरामद नोटों को वहीं सीलबंद किया गया। बरामदगी मेमो भी घटनास्थल पर नहीं बनाया गया, बल्कि पुलिस स्टेशन जाते समय रास्ते में तैयार किया गया, जिससे पूरी कार्रवाई संदिग्ध हो जाती है। यह घटना अगस्त माह की है। जौनपुर के ईसापुर निवासी अजय प्रताप सिंह की गाड़ी पहले एक दुर्घटना में थाने लाई गई थी। कोर्ट से वाहन रिलीज का आदेश मिलने के बाद एसआई ने रिपोर्ट भेजने के बदले उससे रिश्वत मांगी थी। शिकायत पर एंटी करप्शन के इंस्पेक्टर अनिल सिंह ने जांच की। आरोप सही मिलने पर टीम ने पाउडर लगे नोट देकर ट्रैप की योजना बनाई। जैसे ही एसआई ने नोट जेब में रखे, टीम ने उन्हें पकड़ लिया। इसके बाद मोतिगरपुर थाने में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत केस दर्ज किया गया।
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