लखनऊ बेंच के हाईकोर्ट ने बलरामपुर के जिलाधिकारी पर 11 हजार रुपये का हर्जाना लगाया है। यह हर्जाना छह साल से बार-बार आदेश के बावजूद जवाबी हलफनामा दाखिल न करने पर लगाया गया है। न्यायालय ने हर्जाना वापस लेने की प्रार्थना को खारिज करते हुए जिलाधिकारी को तीन दिनों के भीतर राशि जमा करने का आदेश दिया है। मामले की अगली सुनवाई जनवरी के दूसरे सप्ताह में होगी। यह आदेश न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति राजीव भारती की खंडपीठ ने नबी अली व अन्य द्वारा वर्ष 2019 में दाखिल जनहित याचिका पर दिया है। याचिका में बलरामपुर जनपद में एक अंत्येष्टि स्थल पर शेड लगाने की मांग की गई है। न्यायालय ने 8 नवंबर 2019 को पहली बार जिलाधिकारी बलरामपुर को लघु प्रतिउत्तर शपथ पत्र दाखिल करने का निर्देश दिया था। इसके बाद 22 नवंबर 2019, 6 दिसंबर 2019 और 5 मार्च 2020 को भी शपथ पत्र दाखिल करने के लिए समय दिया गया। छह साल बाद भी जवाब दाखिल न होने पर न्यायालय ने 20 नवंबर को जिलाधिकारी पर हर्जाना लगाने का आदेश पारित किया था। न्यायालय ने इस बात पर भी आश्चर्य व्यक्त किया कि आदेश वापस लेने का प्रार्थना पत्र जिलाधिकारी ने स्वयं दाखिल न कर एक सहायक अभियंता ने दाखिल किया, जो मामले में पक्षकार भी नहीं है। प्रार्थना पत्र में यह भी कहा गया था कि लघु शपथ पत्र तैयार करके मुख्य स्थायी अधिवक्ता के कार्यालय में दे दिया गया था। इस पर न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह उसका विषय नहीं है और न ही मुख्य स्थायी अधिवक्ता का कार्यालय हाईकोर्ट प्रशासन का कोई अंग है, बल्कि यह जिलाधिकारी और मुख्य स्थायी अधिवक्ता के बीच का मामला है।
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