इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 2016 में पोक्सो अधिनियम और भारतीय दंड संहिता के तहत दर्ज रेप के एक मामले की आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया है। आरोपी ने पीड़िता से ‘बहुत पहले’ शादी कर ली थी। कोर्ट ने पाया कि दम्पति एक बच्चे के साथ सुखी वैवाहिक जीवन जी रहे हैं। न्यायमूर्ति विवेक कुमार सिंह की पीठ ने कहा कि ” यदि कोई अपराध था…तो वह अब समाप्त हो चुका है ” और आवेदक की दोषसिद्धि की संभावना अब ” न केवल दूर है, बल्कि धूमिल भी हो चुकी है। एकल न्यायाधीश ने आरोपी वसीउल्लाह व दो अन्य उसके रिश्तेदारों द्वारा बीएनएसएस की धारा 528 के तहत दायर अर्जी को स्वीकार करते हुए कहा, ” मुकदमेबाजी से केवल न्यायिक समय की बर्बादी होगी, विशेषकर तब जब मुकदमेबाजी की बाढ़ अदालतों को अकल्पनीय कार्यों की बाढ़ में डुबो रही हो। आवेदक-अभियुक्त ने मुकदमे की पूरी कार्यवाही को रद्द करने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी, जिसमें आईपीसी की धारा 363, 366, 504, 506 और पोक्सो अधिनियम की धारा 7/8 के तहत आरोप शामिल थे। संत कबीरनगर का मामला मामले के अनुसार जनवरी 2017 में लड़की के पिता द्वारा एफआईआर दर्ज कराई गई थी। प्राथमिकी थाना – बखिरा, संत कबीर नगर का है। आरोप लगाया गया था कि उनकी नाबालिग बेटी को आवेदक बहला-फुसलाकर ले गया। पीड़िता को जनवरी 2017 में बरामद किया गया, जिसने सीआरपीसी की धारा 161 के तहत अपने बयान में कहा कि वह अपनी इच्छा से आवेदक के साथ गई थी क्योंकि वह बालिग थी। उसने आवेदक के साथ निकाह करने की भी इच्छा जताई। न्यायालय ने दर्ज किया कि मुख्य चिकित्सा अधिकारी की फरवरी 2017 की रिपोर्ट के अनुसार, घटना के समय पीड़िता की आयु लगभग 18 वर्ष थी। इसके बाद, आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया और मजिस्ट्रेट ने अपराधों का संज्ञान लिया। हालाँकि, मुकदमे के लंबित रहने के दौरान ही आवेदक और पीड़िता ने शादी कर ली और एक ही छत के नीचे रहने लगे। अगस्त 2018 में उनसे एक लड़का भी पैदा हुआ। अंततः यह मामला हाईकोर्ट के मध्यस्थता एवं सुलह केंद्र को भेज दिया गया, जहां सूचना देने वाले (लड़की के पिता) सहित सभी पक्ष पिछले महीने एक समझौते पर पहुंचे। कहा गया कि उन्हें किसी भी तरह से कोई आपत्ति नहीं है क्योंकि दम्पति शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन जी रहे थे। दूसरी ओर राज्य सरकार के सरकारी वकील ने तर्क दिया कि चूंकि पीड़िता पोक्सो अधिनियम की परिभाषा के अंतर्गत एक बच्ची थी, इसलिए मामले में बाद के घटनाक्रम से अपराध को समाप्त नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा: “बाद के घटनाक्रम को देखते हुए, आवेदकों द्वारा किया गया कोई भी अपराध, यदि कोई हो, अब समाप्त हो गया है। ऐसे में, आवेदकों के आपराधिक अभियोजन को लम्बा खींचने से कोई उपयोगी उद्देश्य पूरा नहीं होगा।” हाईकोर्ट ने वैवाहिक घर की स्थिरता के लिए भी चिंता व्यक्त की तथा कहा कि यदि अभियोजन को जारी रखने की अनुमति दी गई तो अभियुक्त और अभियोक्ता से मिलकर बना ‘खुशहाल’ परिवार ‘टूट जाएगा’। क्योंकि अभियुक्त ने अभियोजन पक्ष की महिला से विवाह कर लिया था। न्यायालय ने कहा कि वह ऐसे तथ्यों से “आँखे नहीं मूंद सकता”। परिणामस्वरूप हाईकोर्ट ने आरोप पत्र, संज्ञान आदेश और सत्र परीक्षण की संपूर्ण कार्यवाही को रद्द कर दिया।
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