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हाईकोर्ट ने एसएसपी बदायूं को कहा उद्दंड:कोर्ट बोला क्यों न की जाए कार्रवाई, एसएसपी को सीजेएम से संवाद को कहा तो लगा दिया दरोगा

हाईकोर्ट ने बदायूं के एसएसपी द्वारा सीजेएम से संवाद के लिए दरोगा को नियुक्त करने पर नाराज़गी जताई है जबकि कोर्ट ने यह जिम्मेदारी एसएसपी को सौंपी थी। कोर्ट ने एसएसपी के रवैये को सरासर उद्दंडता करार दिया। साथ ही उन्हें व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर यह स्पष्ट करने को कहा कि उनके खिलाफ अलग से सिविल अवमानना की कार्यवाही क्यों न शुरू की जाए। यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर एवं न्यायमूर्ति संजीव कुमार की खंडपीठ ने दिया है। अपील 1984 से लंबित अपील का अपीलार्थी आनंद प्रकाश लापता है। कोर्ट ने गत 10 दिसंबर को अपीलार्थी की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए जमानती वारंट जारी करने का निर्देश दिया था। साथ ही स्पष्ट किया था कि वारंट तब तक बिना तामील लौटाया नहीं जाएगा, जब तक पुलिस शपथपत्र सहित यह प्रमाण न दे दे कि अपीलार्थी की मृत्यु हो चुकी है या वह देश छोड़ चुका है।
इसके अतिरिक्त बदायूं के एसएसपी को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया था कि अपीलार्थी जहां भी छिपा हो या स्थानांतरित हुआ हो, वहां उसकी तलाश कर वारंट का तामीला कराया जाए। गुरुवार को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि एसएसपी ने वारंट के तामीला के लिए अपेक्षित प्रयास नहीं किए और संबंधित सीजेएम से स्वयं संवाद भी नहीं किया। कोर्ट के आदेश के अनुपालन में सीजेएम बदायूं ने सीधे एसएसपी को मेमो भेजा था लेकिन उन्होंने स्वयं उत्तर देने की बजाय अधीनस्थ सबइंस्पेक्टर से सीजेएम को पत्र भेजवा दिया। इस पर ऐतराज जताते हुए खंडपीठ ने टिप्पणी की कि जब सीजेएम ने हाईकोर्ट के आदेश के तहत स्वयं एसएसपी को मेमो भेजा था तो ऐसे में सबइंस्पेक्टर से जवाब भेजवाना प्रथमदृष्टया सरासर उद्दंडता है। कोर्ट ने कहा कि मामला न्यायालय की प्रक्रिया से जुड़ा था, तब भी एसएसपी को स्वयं मेमो के माध्यम से जवाब देना चाहिए, न कि किसी साधारण अधीनस्थ अधिकारी से पत्र लिखवाना चाहिए। कोर्ट ने पुलिस की ओर से दाखिल रिपोर्ट पर भी असंतोष जताया, जिसमें कहा गया कि अपीलार्थी का पता नहीं चल सका। कोर्ट ने कहा कि यह रिपोर्ट उसके आदेश का स्पष्ट उल्लंघन है क्योंकि वारंट केवल दो ही परिस्थितियों में बिना तामीला लौटाया जा सकता है, या तो अपीलार्थी की मृत्यु हो चुकी हो या वह देश छोड़ चुका हो।
कोर्ट ने कहा कि दोनों में किसी भी स्थिति की पुष्टि रिपोर्ट में नहीं की गई। इन परिस्थितियों में बदायूं के एसएसपी प्रथमदृष्टया हाईकोर्ट के आदेश की अवमानना के दोषी प्रतीत होते हैं। कोर्ट ने एसएसपी बदायूं को व्यक्तिगत हलफनामा दाखिल कर तीन बिंदुओं पर कारण बताने का निर्देश दिया कि क्यों उनके खिलाफ अलग से सिविल अवमानना की कार्यवाही दर्ज की जाए? उन्होंने 10 दिसंबर 2025 के आदेश में बताए गए सीमित आधारों के बावजूद अपीलार्थी को गिरफ्तार कर पेश क्यों नहीं किया? और उन्होंने स्वयं सीजेएम को जवाब देने की बजाय सबइंस्पेक्टर से पत्र क्यों भेजवाया? कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि निर्धारित समय सीमा के भीतर हलफनामा दाखिल नहीं किया गया तो एसएसपी को स्वयं उपस्थित होना होगा।


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