इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने हीरोईन रखने के आरोप में 10 साल की सजा पाए एक अभियुक्त को साक्ष्यों के अभाव में बरी कर दिया है। अभियुक्त गिरफ्तारी और सत्र अदालत द्वारा सजा सुनाए जाने के बाद से लगभग सात साल (छह साल, 11 महीने और 24 दिन) जेल में बिता चुका था। न्यायालय ने उसे तत्काल रिहा करने का आदेश दिया है। यह निर्णय न्यायमूर्ति बृजराज सिंह की एकल पीठ ने विनय कुमार शर्मा की अपील पर सुनाया। अभियोजन पक्ष के अनुसार, सेंट्रल नारकोटिक्स ब्यूरो को सूचना मिली थी कि गणेशगंज के होटल मनीषा में अपीलार्थी बाराबंकी के एक व्यक्ति से हीरोईन खरीदने वाला है। इस सूचना के आधार पर 27 फरवरी 1995 को ब्यूरो की टीम ने होटल में छापा मारा। छापेमारी के दौरान अपीलार्थी विनय कुमार शर्मा और कथित तौर पर हीरोईन बेचने आए मो. इस्लाम उर्फ फारुक को गिरफ्तार किया गया। उनके कब्जे से क्रमशः 120 ग्राम और 80 ग्राम हीरोईन बरामद की गई। सत्र अदालत ने 28 मई 1998 को अपीलार्थी को 10 साल के कारावास की सजा सुनाई थी। अपीलार्थी की ओर से न्यायालय को बताया गया कि छापेमारी के समय टीम ने एनडीपीएस एक्ट की धारा 50 का पालन नहीं किया। अपीलार्थी की तलाशी किसी राजपत्रित अधिकारी के समक्ष नहीं ली गई। बचाव पक्ष ने तर्क दिया कि यद्यपि टीम का एक अधिकारी स्वयं राजपत्रित अधिकारी था, प्रावधानों के अनुसार तलाशी टीम के बाहर के किसी राजपत्रित अधिकारी के समक्ष होनी चाहिए थी। न्यायालय ने अपने निर्णय में इस बात पर सहमति जताई कि अपीलार्थी की तलाशी के दौरान धारा 50 की अनिवार्य शर्तों का पालन नहीं किया गया, जिसके कारण बरामदगी संदिग्ध मानी जाएगी। न्यायालय ने जेल अधीक्षक, जिला कारागार, लखनऊ द्वारा भेजी गई रिपोर्ट का भी संज्ञान लिया, जिसमें बताया गया कि अपीलार्थी 72 वर्ष का है और वह छह साल, 11 महीने और 24 दिन जेल में बिता चुका है।
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