हरिद्वार के गुरुमंडल आश्रम में हुई बैठक में स्थानधारी और आश्रमधारी संतों ने 2027 में होने वाले अर्धकुंभ के आयोजन पर कई सवाल खड़े कर दिए हैं। बैठक में शामिल रहे जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर स्वामी परबोधानंद ने कहा कि सरकार को कुंभ और अर्धकुंभ की परंपरा पर फिर से विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा- अर्धकुंभ में न छावनी लगती है, न ध्वज लगता है, न शाही स्नान की परंपरा होती है। ऐसे में उसे कुंभ के रूप में कैसे मनाया जा सकता है? रविवार को हुई बैठक में कई संतों ने ये भी आरोप लगाए की प्रशासन आश्रमों के साथ सौतेला व्यवहार कर रहा है, संतों ने कहा कि कुंभ मेला, अखाड़ों के साथ ही सभी साधु संतों का भी होता है, इसलिए सरकार ने जिस तरह से अखाड़ा परिषद के साधु संतों से बैठककर सुझाव मांगें और कुंभ की तिथियों की घोषणा की। उसी तरह से आश्रम में रहने वाले साधु संतों के साथ भी बैठक की जाए, उन्हें भी व्यवस्थाएं दी जाएं। बैठक में ‘अखिल भारतीय आश्रम’ बनाने की भी घोषणा कर दी गई, जो आश्रमों की समस्याओं और कुंभ से जुड़े मुद्दों पर सरकार से बातचीत करेगा। हालांकि विवाद बढ़ता देख बैठक के कुछ ही घंटों बाद जूना अखाड़ा ने दो महामंडलेश्वर स्वामी यतींद्रानंद और स्वामी प्रबोधानंद को अखाड़े से निष्कासित कर दिया। पहले तीन प्वाइंट्स में पढ़िए आखिर संत क्यों नाराज… बैठक के बाद सामने आए संतों के बयान… विवाद के बाद दो महामंडलेश्वर निष्कासित इस बैठक के कुछ ही घंटों बाद पंच दशनाम जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष महंत मोहन भारती महाराज ने अपने दो संतों महामंडलेश्वर स्वामी यतींद्रानंद गिरी महाराज, महामंडलेश्वर स्वामी प्रबोधानंद गिरि महाराज को अखाड़े से तत्काल प्रभाव से निष्कासित कर दिया। जारी किए गए पत्र में उन्होंने लिखा- महामंडलेश्वर स्वामी यतींद्रानंद गिरी महाराज और महामंडलेश्वर स्वामी प्रबोधानंद गिरि ने एक बैठक में सरकार व प्रशासन के विरोध में अनर्गल बयान दिए व गाली गलौज की भाषा का प्रदर्शन किया। ये लोग सनातन धर्म को नुकसान पहुंचा रहे हैं व आगामी कुंभ मेला बिगाड़ना चाहते हैं। जिससे सनातन धर्म की छवि खराब हो रही है। ये सनातन विरोधी कृत्य कर रहे हैं। अब समझिए सरकार क्यों अर्धकुंभ को कुंभ की तरह आयोजित कर रही… उत्तराखंड सरकार 2027 के हरिद्वार अर्धकुंभ को पूर्ण कुंभ की तरह भव्य एवं दिव्य बनाने के लिए इसलिए पूरी तरह जुटी हुई है क्योंकि 2021 का कुंभ कोविड-19 महामारी के कारण सख्त पाबंदियों के बीच सीमित और प्रतीकात्मक शाही स्नान के साथ संपन्न हुआ था, जिससे लाखों श्रद्धालुओं को पूर्ण आध्यात्मिक अनुभव नहीं मिल सका। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपने बयानों में कई बार कह चुके हैं कि इस बार का कुंभ भव्य रूप से आयोजित किया जाएगा, सरकार ने अर्धकुंभ में शाही स्नान को भी शामिल कर ये भी साफ कर दिया है कि जो 2021 में नहीं हो पाया वो अब होगा। ताकि सनातन संस्कृति की यह महान परंपरा अपने पूरे वैभव के साथ जीवंत हो, देवभूमि उत्तराखंड की आध्यात्मिक पहचान विश्व स्तर पर और मजबूत हो और भक्तों को वह अविस्मरणीय अनुभव मिले जो 2021 में महामारी ने छीन लिया था।
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